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नो नेटवर्क

नो नेटवर्क

लेखक :–

अजय ओझा


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नो नेटवर्क

डाऊनलोड किया हुआ लेटेस्ट एसएमएस टोन बज ऊठा ।चल रही बस के भीतर कवरेज का आना–जाना बार–बार हो रहा था ।किसका मेसेज होगा ? जेब से मोबाइल निकालते हुए हरेश ने अंदाजालगाया । कोई मसखरे दोस्त की वल्गर जोक्स होगी । कोई शायरी याकाव्यपंक्तियाँ होगी । उसकी पत्नी दक्षा शायद ही कभी उसे मेसेजभेजती है, पर फिरहाल वो बाहर से आ रहा है तो हो सकता है दक्षा नेउसे कोई 'गुडन्युज' भेजा हो । फिर याद आया कि दक्षा का मोबाइलतो आज सुबह से ही खराब है । कब से मोबाइल से खेलते हुए पास मेंबैठे राजनने अब अपना मोबाइल जेब में रख दिया है तो उसके ारामेसेज भेजने की संभावना भी कम है । तो फिर कोई नई(?) प्रि–पेडओफर की लुभावनी स्कीम का मेसेज भी हो सकता है ।

हरेश ने मोबाइल 'अनलोक' करके मेसेज खोला ।भेजनेवाले का नंबर अनजाना था । पिक्चरमेसेज कुछ इस तरह काथा, '॥ ॐ नमः शिवाय ॥ अगले एक घण्टे के अंदर यह मेसेज अन्यग्यारह लोगों को फोरवर्ड करेंगे तो आज रात तक मनचाहा 'गुडन्युज'पायेंगे । मेसेज की अवहेलना करने पर प्रियपात्र को खो बैठने का भयरहेगा और विपरीत परिणाम भुगतना होगा ।' पिक्चर मेसेज में भगवानशंकर का चित्र भी था ।

हँसी और गुस्सा दोनो एक साथ हरेश के चेहरे पर उभरआये । लोग कौन से जमाने में जीते है ? पोस्टकार्ड से शुरु हुईअंधश्रद्धा एसएमएस तक आ पहूँची ।? ऐसी अंधश्रद्धा को प्रोत्साहितकरनेवाले लोग भी कैसे ?

'शीट्‌ ।' हरेश के मुँह से जरा जोर से उद्‌गार निकले । होरही हडबडाहट से राजन की आँखें खुली, 'क्या हुआ हरेशभाई ?'उसने कुछ इस तरह प्रश्न किया मानो जवाब की कोई उसे अपेक्षा हीनो नेटवर्कनहीं थी । हरेश ने सोचा कि राजेन उसे पहचानता है, उसका नाम भीजानता है ।

'कुछ नहीं ।' कहते हँसकर हरेश ने मोबाइल जेब में रखदिया। वैसे हरेश भी उसे पहचानता था । लेकिन दोनों रूबरू आजपहली बार बस की एक ही सीट पे मिले थे । राजेन दक्षा के ओफिस मेंमैनेजर था । बस निकली तब दोनो आमने–सामने पहचानी–सीमुस्कुराहट देकर चुप हो बैठे थे । दक्षा के आग्रहभरे दबाव में आकरहरेश नजदीक के शहर में जाने आज सुबह निकला था ओर काम खत्महोते ही शाम की बस से वापस आ रहा था । अभी और दो रविवारइसी तरह आना–जाना बाकी था । हरेश के चेहरे पर निराशा व ऊबटनछाई हुई थी । ऐसी थकान उसके चेहरे पर दिख रही थी मानो पन्द्रहदिन की यात्रा से लौट रहा हो । तभी तो राजेन के पास बैठने पर भीवह उससे कुछ बातें कर न सका । उसे बात करने का मुड नहीं था,वैसे भी राजेन के साथ बात करने का मुड तो उसे कभी नहीं होताथा।

उसके राजेन के बारे में कुछ अलग ही खयालात थे जोअपने दोस्तो के साथ कुछ इस तरह बयान होते रहते;'फ्रोड नंबर वन, राजेन यानि ? फ्रोड नंबर वन । अपनेओफिस में उसने कैसे कैसे कौभांड़ किये है जानते हो ?''बिलकुल बिनकार्यक्षम और नमकहराम । अरे, बिनाकेल्क्युलेटर तो वो दो अंको का जोड़ भी नहीं कर सकता, क्या ?'

'स्टाफ की महिलाओं को टार्गेट बनाये, उसीसेओवरटाइम करवाये, घण्टो तक अपनी चेम्बर में बिठायें रखें । ऐसानालायक आदमी क्या मैनेजर बनाने के लायक कभी हो सकता है ?''कुर्सी में गोल गोल घुमते रहने से कोई महारत थोडे हीहासिल हो जाती है ? सब दिखावा है दिखावा ।'

'ऐसे चालु किसम के आदमी को तो बराबर पाठ पढानाचाहिए ।'हरेश को कभी राजेन में कोई इन्टरेस्ट नहीं हुआ । इतनाही नहीं, मन ही मन वो राजेन को अपना तीव्र प्रतिस्पर्धी मान बैठाथा।

'आज हमारे ओफिस में नये मेनेजर हाजिर हुए; मि०राजेन शेठ । हैन्डसम एन्ड यंग, वेरी वेरी यंग । और जानते है हरेश,कम उम्र में ही उन्होंने काफी कामियाबियाँ हांसिल की हुई है ।'–दक्षाने कहा था ।–जिस दिन से दक्षा के ओफिस में राजेन की ऐन्ट्री हुई थीउसी दिन से दक्षा की बातें, सोच एवं बरताव में जबरदस्त बदलाव आरहा हो ऐसा हरेश को लग रहा था । फिर तो दक्षा की कई बातों मेंराजेन अनायास ही शामिल हो जाता;'आज एक बहोत कठिन कैस की फाइल मेरे टेबल परआई तो मैं तो बिलकुल नर्वस हो गई । थेन्क गोड, राजेन ने मेरी हेल्पकी ओर कैस निपटा दिया । वरना मैं तो ़ ़ ''आज ओफिस में सरप्राइज़ इन्सपेक्शन हुआ । लेकिनबेनमून संचालन व कार्यदक्षता को देख अधिकारीगण ने राजेन कोअभिनंदन दिए । इसी खुशी के उपलक्ष्य में कल हमारे ओफिस मेंराजेन ने एक पार्टी एरेंज की है । तो कल मुझे लेने जरा देर से आना,मुझे देर हो जायेगी ।'

'आज राजेन ने ग्रे कलर के चेक्सवाला क्रीम शर्ट पहनाथा, हरेश, तुम भी एक ऐसा ओफिसवेर शर्ट पहनो तो तुम्हें भी बहोतअच्छा लगेगा ।'

'राजेन के पास मल्टीमीडिया जीपीआरएस कलरमोबाइल विथ इन्टरनेट है और तुम ये 3315 को छोडने का नाम नहींलेते ।'हरेश सहेम जाता । दक्षा को कुछ कहने का कोई ठीककारण उसे सूझता नहीं । उसका दर्द भीतर ही ठंडा हो जाता । दक्षाके इस बदले व्यक्तित्व से दस साल पुराना शादीशुदा जीवन हरेश कोबोझिल लग रहा था ।

राजेन की पसंदीदा होटल में ही डीनर लेने के दक्षा केआग्रह को कभी हरेश टाल नहीं सकता था । वह सोचता; राजेन कीफेवरीट फिल्में ही देखना जरूरी है ? जैसी राजेन को है ऐसी लेटेस्टबाइक लेने की हमें कोई जरूरत नहीं है ये बात वह दक्षा को कभी नहींसमझा पाया । कई बार वह दक्षा को समझाने की कोशिश करता,'देखो दक्षा, हम लोगो को अपनी भी पसंद–नापसंद हो सकती है ।

हो सकता है वह सब्जी मैं देखना भी नहीं चाहूँगा जो राजेन को बहोतभाती हो । राजेन की पसंद की फिल्में और मेरी पसंद की फिल्में अलगभी तो हो सकती है । राजेन का मोबाइल नंबर याद रखना मुझे कभीजरूरी नहीं लगता । तो क्या ? देखो, हमारी ये पुरानी बाइक अभीअच्छा काम दे देती है, अप–टु–डेट है तो नई राजेन जैसी बाइक लेनेकी क्या आवश्यकता ? कल अगर हमारे भी बच्चे होंगे तो कुछ उनकेबारे में भी तो सोचना चाहिए कि नहीं ? नहीं तो हमारे बच्चे हमारेबारे में क्या सोचे ? और हां, मैं भी अपने ओफिस में कई बारकोम्प्लिकेटेड फाइलों के कैस सोल्व कर लेता हूँ । मुझे भी मेनेजमेन्टबधाईयाँ देता रहता है । कोई बार मैं भी छोटी–सी पार्टी देता हूँ । तोफिर ग्रे कलरके चेक्सवाला क्रीम शर्ट ना पहनूँ तो क्या हो जायेगा ?'

बच्चों की बात आते ही दक्षा गुस्सा हो ऊठती थी ।दक्षा बात को समजती हो या ना समजती हो, मन ही मनमें हरेश ने राजेन के बारे में कुछ अपने खयालात जरूर बाँध लिए थे ।जैसा कि दक्षा ने बताया था; राजेन यंग और हेन्डसम तोथा ही । अपने काम में निपुण भी होगा । स्मार्ट एवं काबिल होगा ।स्त्रियों के आकर्षण का केन्द्र बन सकता होगा । रंगीन मिजाज ववाचाल प्रकृति के कारण हरकोई पर अनोखी छाप छोड़ जाता होगा,तो दक्षा पर भी ऐसे सदाबहार व्यक्तित्व का बडा असर पडनाअस्वाभाविक नहीं । लेकिन दक्षा संपूर्णतः उसकी आभा में खो जाए येबात हरेश कैसे सहन कर सकता है ? शायद यही वजह है कि हरेशराजेन को अपना तीव्रतम प्रतिस्पर्धी मान बैठा था । ऐसा होने काकोई कारण उसकी समझ में नहीं आता था ।चल रही बस में सिर्फ राजेन उसके बगल की सीट पर नआया होता तो वातावरण हरेश को कभी इतना तनावपूर्ण महसूस नहींलगता । उसे लगा कि पास बैठकर राजेन उसके चेहरे को पढते हुएतनावों को परख रहा था । मानो खुद के भीतर चल रहे न् का राजेनबडी क्रुरता से आनंद ले रहा है ऐसा हरेश को लगता था ।

बस के अपने रूटीन शोर को छोडकर बस में बिलकुलशांति थी । दूसरी बहोत कम आवाजें इस शांति को तोड़ पाते थे;चाहे वो बीडी जलाते कंडक्टर के माचिस की आवाज हो या फिरखिडकी से टकराते पेड–पत्ते की सरसराहट हो । दरवाजे पर दी हुईअधखुली स्टोपर की आवाज हो या फिर खिडकी के जरिये आ रहीबाहर के अंधकार से भरी काले रंग की हवा की स्लाइस हो । कभीकभी बिना कवरेज के बजाये जा रहें मोबाइल रिंगटोन्स भी बस केशोर में घुल जाते थे । कोई झगडालु प्रवासी का तीखा 'रिंगटोन' औरनींद से भरे किसी बच्चे का रोना बस की इस शांति को कुछ तोड़सकते थे ।

सिटीबस में नियमित नौकरी पर जानेवाली दक्षा को उसवक्त बहोत आनंद हुआ था जब हरेश ने उसे बाइक पर छोडने और लेनेआना शुरु किया । रोज हरेश अपनी बाइक पर बिठाकर दक्षा को उसकेओफिस तक छोडने आता और शाम को समय से पहले ही उसे लेनेओफिस के दरवाजे पर आ खडा हो जाता । ऐसा करने के पीछे हरेशका आशय कुछ और था । उसे राजेन को पहचानना था । उसकीगतिविधयो को भाँपना था । लेकिन वास्तव में ऐसा करने से तो हरेशकी परेशानियाँ और बढ़ रही थी ।

होता यह कि दक्षा को ओफिस के दरवाजे पर छोडकरहरेश मेनेजर की चेम्बर की ओर देखता तो वहाँ राजेन रिवोल्विंग चेरपर बैठे दूर से हँसता । हरेश कभी कभी ही हँस पाता । राजेन कीमुसकान में उसे भारी धूर्तता दिखती । उसकी मुसकान मानो एकगाली थी । हरेश मुस्कान का जवाब न दे पाएँ तो राजेन अपने दोनोंहाथों से टेबल पर पडे पेपरवेइट को मसलने लगता । छाती से प्रचंडधोध निकलना चाहता हो ऐसा दबाव हरेश महसूस करता । शाम कोदक्षा को लेने आता तब संतृप्त शेर की तरह राजेन चेर पर गोल गोलघुम रहा होता । दक्षा का चेहरा बिखरा बिखरा–सा लगता । हालातको समझने के बजाय अपनी सोच को हालात में आरोपित करके देखनेकी हरेश को आदत–सी हो गई । असह्य परेशानियों से भरे हालातहरेश ने खुद ही खडे कर लिए थे ।

बेचारी दक्षा को कई बार ये समझ में नहीं आता कि हरेशउसे ट्रान्सफर करा लेने का आग्रह बारबार इतना जोर देकर क्यों करतारहता है ? बात की तह से अनजान दोस्तों को भी कभी समझ में नहींआता कि हरेश दक्षा के ओफिस के पूरे स्टाफ की इतनी बदबोई हमेशाक्युं करता रहता है ?

'मुझे ट्रान्सफर कराने की क्या जरूरत है ? यहाँ का स्टाफअच्छा है और जब तक राजेन है, मुझे चिंता का कोई कारण नहींदिखता ।' दक्षा ने एक बार पूछा ।

हरेश ने जवाब दिया, 'नजदीक के किसी ब्रांचओफिस मेंतुम्हारी जोब सेटल हो जाये तो बाइक का पेट्रोल भी बच जायेगा ।फिर कभी न कभी हमारे बच्चे होंगे तो भी हमें कोई परेशानी ना हो ।'

दक्षा वैसे तो हमेशा शांत स्वभाव की थी, पर बच्चे कीबात पे आक्रमक हो जाती थी, 'बच्चा ़ ़ बच्चा ़ ़ बच्चा ़ ़ , भूलजाओ अब इस बात को । दस साल में जो नहीं हो सका वो अब क्याहो सकता है ?'

'मतलब ? तुम क्या ये समझती हो कि ़ ़ ' इससे पहलेकि हरेश आगे कुछ बोले दक्षा ने उसे बीच में ही रोकते हुए कहा,'नहीं, नहीं, मैं तो कहाँ कुछ समझती हूँ ? मैं कुछ नहीं जानती ।

लाख उपाय आपको बताये लेकिन आपने एक भी कहाँ अपनाया ?'अब हरेश चीखा, 'तो ? तो क्या तुम ये कहना चाहती होकि मैं उस राजेन के बच्चे के बताये रास्ते पर चलूँ ? क्या बताया थाउसने, हां, उस साधुबाबा की दैवी भस्म लेने जाऊँ ? कभी नहीं,कभी नहीं हो सकता । मैने कई डाक्टर से बात की है । सब ने एक हीउपाय बताया है, धीरज से काम लो । हमने कहाँ उपाय बंद किये है ?

हमें भरोसा रखना चाहिए अपने नसीब पर, उम्मीद कभी नहीं छोडनीचाहिए ।'

'तो एक बार, सिर्फ एक बार उस साधुबाबा के पास जानेमें हर्ज ही क्या है ?' दक्षा बोली, 'राजेन बता रहा था कि साधुबाबाकी भस्म अकसीर इलाज है । दूर दूर से लोग वहाँ आते है । तुम एकबार भस्म ले आओ, फिर ठीक लगे तो और छे रविवार ही जाना होताहै ।'बस के अंधकार में एक चिंगारी सुलगी ।

'सिगरेट लेंगे ?' अपने मुँहमें एक सिगरेट जलाकर पाउचहरेश की ओर करके कोहनी से ठेला लगाकर राजेन ने हरेश कोसिगरेट ओफर किया । दक्षा ने शायद कभी कहा थाः 'राजेन को कोईव्यसन नहीं है । सिगरेट तो क्या चाय–कोफी भी नहीं ।'

सिगरेट को नकारते हुए हरेश ने पूछ भी लिया, 'आपसिगरेट पीते हैं ?'

'हां ़ ़ ? जी नहीं, कभी नहीं पीता ।' कहते राजेन जोरसे हँसने लगा । नजर के सामने सिगरेट पीते आदमी को ऐसेवाहियात सवाल करके हरेश खुद ही शरमिंदा हो गया । सिगरेट केनुकीले धुम्रवलय हरेश की आँखों में जाकर चोट पहूँचाने लगे ।दक्षा की मिन्नतों के बाद आखिर हरेश उस साधुबाबा केपास भस्म के लिए हर रविवार जाने लगा । आज पाँचवां रविवार था ।

अभी दो रविवार बाकी थे । दक्षा की इस महिने की तारीख बीत चुकीथी । वह आज शायद लेबोरेटरी में प्रेग्नन्सीटेस्ट कराने जानेवाली थी ।तभी तो उसने सोचा था कि शायद दक्षा ने ही उसे 'गुडन्युज' कामेसेज किया होगा, पर दक्षा का मोबाइल तो आज ही बिगडा था औरमेसेज भी किसी अनजाने का था ।

हरेश को शंकरभगवान की तसवीर वाला वह मेसेज फिरसे याद आया । जेब से मोबाइल निकालकर फिर से मेसेज पढने लगाः'॥ ॐ नमः शिवाय ॥ अगले एक घण्टे के अंदर यह मेसेज अन्य ग्यारहलोगों को फोरवर्ड करेंगे तो आज रात तक मनचाहा 'गुडन्युज' पायेंगे ।

मेसेज की अवहेलना करने पर प्रियपात्र को खो बैठने का भय रहेगाऔर विपरीत परिणाम भुगतना होगा ।'मेसेज में छुपा खौफ हरेश के चेहरे पर छा रहा था । बारबार वह मेसेज को पढने लगा । मेसेज की डीटेइल्स देखीं । रिसीवींगटाइम 8–35 था । इस वक्त 9–30 का समय घडी बता रही थी ।हरेश ने सोचा : 'गुडन्युज' पानेको ग्यारह लोगों को मेसेज फोरवर्डकरने में अभी पाँच मिनट का वक्त बचा है । हरेश को लगा कि वहखुद भी अंधश्रद्धा के बहाव में खींचा जा रहा है क्या ? जाने–अनजानेभी ऐसी हरकतों को बढावा देना भी अंधश्रद्धा फैलाने का काम हीमाना जा सकता है ।

'आप कोई दवा–दारु रेग्युलर लेते है क़़ि, हरेशभाई?'राजेन ने यकायक प्रश्न किया । हरेश को झटका लगा । वह सोचनेलगा राजेन को यह भी मालूम है कि मैं साधुबाबा की दवा लेता हूँ ।दक्षा ने ही बताया होगा । दक्षा अबुध की अबुध ही रहेगी ।'अं ़ ़ , आ ़ ़ , आपको किसने बताया ?' हरेश कीजबान हकलाने लगी, 'ऐसा क्युं पूछते हैं ?'

'यूं ही, बस, आपको देख के ऐसा लगा मानो कोई लंबीबीमारी से गुजर रहें हो ।' राजेन ने उत्तर दिया, फिर आगे बोला, 'मेरेयोग्य कोई काम–बाम हो तो बेहिचक बता देना, हां ?' फिर हँसनेलगा, इस तरह जिस तरह अपनी चेम्बर की खिडकी से हरेश की ओररोज मुस्कुराता था, एक धूर्ततापूर्ण मुस्कुराहट ।

हरेश को लगा कि राजेन उसके तिलतिल की बातें जानताहै । दक्षा के जरिये वह उसकी सारी सिलवटों को खुलकर पहचानगया है । उसे लगा कहीं ऐसा न हो कि मुझे मिलनेवाले 'गुडन्युज' कापता राजेन को पहले से हो, और वो ग्यारह मेसेजवाली बात मुझेपरेशान करने के लिए उसीने खडी की हो । हरेश के चित्त में जबकारहुआ । मेसेज सेन्डर का नंबर उसने तत्क्षण डायल किया । सोचा;राजेन ने यदि मेसेज भेजा होगा तो अभी उसकी जेब में मोबाइल बजउठेगा । पर ऐसा न हुआ । डायल किया हुआ नंबर स्वीचओफ होने कीकेसेट बजी । हरेश निराश हुआ । फिर सोचा की मेसेज सेन्डर कानंबर डायरी में लिख दूँ, और बाद में मेसेज ही डीलीट का दूँ । हरेशने जेब से गोल्डन पार्कर पोइंटेड पेन निकाली, यह गोल्डन पार्करपोइंटेड पेन दक्षा ने उसे दसवीं मेरेज एनीवर्सरी पर बडे प्यार से गिफ्टमें दी थी; कीमती एवं अद्‌भूत । डायरी खोलकर नंबर लिखने हीवाला था कि उसका ध्यान राजेन की जेब की ओर गया । उसकी जेबमें भी ऐसी ही एक गोल्डन पार्कर पोइंटेड पेन थी; कीमती एवंअद्‌भूत। बिलकुल वही । हरेश का दम घुटने लगा । कोई उसका गलादबा रहा हो ऐसा उसे लगा । ज्यादा कुछ सोचने के बजाय तुरंत हीहरेश ने अपने हाथ से पार्कर पेन खिडकी के बाहर के अंधकार में बडीतीव्रता से फेंक दी ।

उसी तीव्रता से मेसेज डीलीट करने हरेश की ऊँगलियाँमेसेज मेनु की ओर दौडने लगी । फिर मेसेज पढा । रहरहकर मेसेजकी आखरी बात उसके दिल को वाइब्रेशन दे रही थी; 'मेसेज कीअवहेलना करने पर प्रियपात्र को खो बैठने का भय रहेगा और विपरीतपरिणाम भुगतना होगा ।'

'गुडन्युज' पाने के लिए मात्र ग्यारह मेसेज भेज देने में हर्जही क्या है ? उसने सोचा; जो काम कोई न कर पाया है, हो सकता हैवो काम एक छोटा–सा मेसेज कर भी दे ।

ग्यारह मेसेज ़ ़ , सिर्फ ग्यारह मेसेज । हरेश कीऊँगलियाँ कांप रही । उसने समय देखा, एक घण्टा खत्म होने में हीथा । ग्यारह मेसेज ग्यारह लोगों को भेजने के लिए आखरी मिनट बचाथा । पहला मेसेज फोरवर्ड करने का यत्न किया तभी मोबाइल स्क्रीनपर 'बेडन्युज' चमके :