Jinnat ki Dulhan - 8 books and stories free download online pdf in Hindi

जिन्नात की दुल्हन-8

अगले पार्टमे हमने देखा की जिन्नात गुलशन के
पिता की हत्या कर देता है और गुलशन की माँ को डराधमकाकर अपनी बात मनवाने को राजी कर लेता है धर मे रोने का नाटक करके वो सबको यकिन दिलाती है कि अपने पति की अचानक मोत हो गई
दुसरी और गुलशन को अकेली देख उसको खलिल लिफ्ट ओफर करता है.. अब आगे
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गुलशन ने अपने अकडू मिजाज मे खलिल को सूना दिया!
"अगर मैं आपकि महेरबानी का ईनकार करू तो..? "
तूम कर सकती हो..! मगर मै जानता हूं तूम ऐसा नही करोगी..!"

खलिल ने भरपूर आत्मविश्वास से कहा!
ईतना यकिन है..? "
"खुद से ज्यादा..! " खलिले गुलशन की आँखो मे झाँकते हूये कहा था!
"ओह...! "
गुलशन जान बूज कर खलिल को छेड रही थी!
वो मन ही मन खलिल को पसंद करती थी!
और अब उसे यकिन हो गया था कि खलिल भी वही महसूस कर रहा है जो वो महेसूस कर रही थी!
उसने अब देर न करते हूये खलिल के पीछे बैठ जाना ठीक समजा!
खलिलने ईत्मिनान से बूलेट भगाया!
उसने कस कर खलिल को पकड लिया !
डर गई..? खलिल ने शरारत करते हूए कहा!
नही तो..! मै तो जान बूझ कर चिपकी हूं !
देख रही थी काफी लडकियाँ ईस तरा चिपक जाती है वो कैसा फिल करती होंगी..!
खलिल समज गया ये टांग खिचने में अपनी भी नानी है!
रास्ते मे पेड और हरियाली सभर एक टर्न पर उसने बूलेट खडा कर दिया..!
सामने ही कलकल निनाद करती एक नदी थी !
नदी पर ब्रीज बना हूवा था!
हरेभरे पेड थे !
स्वच्छ हवायें अपना जादु सांसो मे भर रही थी !
वह गुलशन का हाथ थामे नदी के तट पर पहोंच गया!
नदी के बहाव को दोनो देख रहे थे..!
एक नदी दोनो के भीतर बहेने लगी थी जिसकी! उफनती लहेरे दोनो को भीगो रही थी!
अपने उछल रहे दिल पर काबु करते हूये उसने कहा.!
"अब बोलो भी क्या केहना था आपको..?"
खलिल ने गुलशन की आंखो मे लज्जा साफ देखी!
बहोत ही खुबसूरत लग रही थी वो.!
पिंक सलवार कुर्ता उस पर बहोत जच रहा था!
कंधे पर लटक रहा दुपट्टा हवाआँ का बहाना ओढे बार बार उसके गुलाबी होठो को छू ने की जिद कर के फूदक रहा था!
उसकी बोलती आँखों मे झांकते हुये खलिल ने कहा!
सूनना चाहोगी..?!
हम बेताब है सूनने को..!
तो फिर आप अपनी आँखे बंद करलो.!
"क्यो..? आपको शर्म आती है..? "
हा, खलिल ने झूठा रोष प्रकट किया!
गुलशन ने अपनी आँखे मुंद ली!
खलिल अपने चहेरे को उसके मुह के करिब ले गया.!
उसकी नरम सांसे कुछ पल महेसूस करता रहा..!
वो बेताब थी उसकी सांसे अनियमित होने लगी थी!
धडकने अपने वजुद का अहेसास गुलशन के उछल रहे सीने से साफ बयाँ कर रही थी!
एक भी लब्ज बोले बगैर उसने अपने होंटो को गुलशन के कांप रहे अधरो पर लगा दिया!
एक किस.. हल्के से जैसे उसकी रूह को छू गई..
कुछ भी बोले बगैर गुलशन ने खलिल को अपने सीने से लगा लिया!
उसकी आँखे बंद थी दिल धडक रहा था!
और भीगी सी आवाज मे वो केह रही थी!
हमे कभी छोडकर कही मत जाना खलिल.. हम मर जायेंगे..!
हम आपसे बहोत प्यार करते है..!
अछ्या हूवा आपने हमे अहेसास दिला दिया!
वरना हमतो तुम्हारे ईन्तजार मे ही घूटघूट कर मर रहे थे!
हम आपको छोडकर कही जाने वाले नही है गुलशन..!
खुदातआला को साक्षी मानकर हम आपको वचन देते है ये हमारी सांसे हमेशां आपकी तलबगार रहेगी!
हम जियेंगे आपके लिये और मरेंगे..!
गुलशन ने अपना हाथ खलिल के मुख पर रख दिया !
फिर कभी एसी बात मत करना..!
उसकी आँखे भर आई थी!
आज दोनो ने जैसे सारा जहाँ पा लिया था!
कुछभी तो कमी नही थी!
जैसे सब कुछ अपना था ये धरती ये नजारे ये अंबर ये तारे... सबकूछ.. !
वो दोनो सूकुन से एक दुसरे को एसे सीने से लगाये खडे थे जैसे अब आखरी साँस तक जुदा होना नही था उन्हें !
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फिर क्या था खलिल और गुलशन दोनो का बार-बार मिलना आम हो गया!
प्यार का वो असिम अहेसास था जो जिंदगी को सवांरने का हूनर रखता था!
पर उन्हें क्या पता था कि यही साथ उनके लिये दोनो की बीच की दूरी मे बदलने वाला है.. !
सूब्ह जब गुलशन के अब्बु को दफना दिया गया तो सबसे अधिक खुशी गुलशन के चहेरे पर उसकी अम्मीने देखी. !
उसके चहेरे पर नजर आने वाली रहस्यमय मूस्कान कीसकी थी वो गुलशन की अम्मी समज चूकि थी..!
पूरा दिन वो हंसी गुलशन की अम्मी को चूभती रही.! हर वक्त वो उससे बच कर रहेती थी!
घरमे चुल्हा नही जलाया था!
अपने देवर-जेठ के घर से खाना भीजवा दिया गया था !
मा-बेटी दोनो ने वही खाया!
घर पर बैठने आ रहे महेमानो के बीच भी गुलशन की अम्मी खुद को तन्हा महसूस कर रही थी!
दिनभर गुलशन की अम्मी यही सोचती रही की कभी ये दिन ढले ही नही !
और रात ही न हो..!
पर सब उसकी सोच के मुताबिक तो होना नही था
रात का वक्त था!
परदे का आज उनका पहेला दिन था!
महोल्ले की औरते देर रात तक घर पर बैठी थी!
वो तो किसी को अपने घर जाने देना नही चाहती थी! पर ऐसा संभव भी तो नही था!
और किसी को रोकभी लेती तब भी जिन्नात के खौफ से कौन बचाता उसे.. वो गुस्से मे आकर कुछभी कर सकता था!
वो अपने फायदे के लिये किसी की जिंदगी खत्रे मे नही डाल सकती थी!
अब वो अपने कमरे से बाहर नही निकलना चाहती थी!
सो जीस कमरे मे बेठी थी वही जमीन पर सो गई!
वो जानती थी रात के वक्त गुलशन के कमरे मे जाना ठीक नही था!
अगले दिन बडी मश्शकत से अपनी जान बचा कर भाग आई थी वह.!
जब तक कुछ रास्ता नजर नही आता चूप रहेना उसकी मजबूरी बन गई थी!
बुराई हम पर छा जाती है तो एक बार मौका अच्छाई का भी आता है !
खुदा के घर मे देर है अंधेर नही!
जरुर वही ईस जाल से निकालेगा!
यही सोचकर गुलशन की अम्मी एक एक पल गुजार रही थी!
आँखो से निंद रुठ गई थी!
एक बजे के करिब एक जप्पी लेकर उसने आँखे बुदबुदाई तो उसके बिलकुल करिब गुलशन बैठी थी!
वही निर्जीव सी आँखे लिये..!
उसके बदन पर ईस वक्त वस्त्र नहि थे!
ईस बात की उसे जराभी परवा नही थी
गुलशन की अम्मी का दहेशत से बुरा हाल था!
"क्या सोच रही थी बूढिया..?"
गुलशन की अम्मी के सामने ही वो अपनी आंखे तरेर कर बोली थी!
"कुछ नही.. बस निंद आ गई थी"!
वो मिमियाई सी बोली थी!
"अपना वादा याद है ना..? मै तेरी बेटी को अपना ना चाहता हुं!
और तु मुजे साथ देने वाली है..!"
जानती हुं!
पर अभी कुछ दीन ठहेरना पडेगा!
क्युकि मै ईज्जत के दिन गुजार रही हुं फिलहाल गुलशन की शादी की बात एसे वक्त मे सबके सामने नही रख सकती !
बात तो तूजे करनी ही पडेगी!
चाहे कुछभी हो जाये मै ईन्तजार करना नही चाहता..! "
क्यो.. आप गुलशन से नही मिलते..?"
मिलता हुं वो मेरी ही है.. !
पर निकाह से मै उसे हमेशां के लिए अपनी बना देना चाहता हूँ जिससे खुदाभी हमे जुदा करने से दस बार सोचे..!
बस तु अपने देवर-जेठ के आगे गुलशन के रिश्ते की बात रख दे..!
"पर लडका..? " गुलशन की अम्मी अब संभल गई थी.
"अपनी बेटी से ही पूछ लेना!
बकरा तैयार है..! "
"या अल्लाह...!"
वो गबरा गई थी कौन होगा वो बदनसीब जिसकी जिंदगी ईम्तिहान के दौर से गुजरने वाली थी..? "
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क्रमश:

जिन्नात को आप लोगो ने बहोत सराहा.. धन्यवाद.. कहा कहा से लोगो ने जिन्नात के लिये अपनी उत्सुक्ता जताई और हमसे झुडे.. वादा करता हु कहानी बेहतरीन बनाने के हर संभव प्रयास करुंगा
-साबीरखान
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