Jinnat ki Dulhan - 9 books and stories free download online pdf in Hindi

जिन्नात की दुल्हन - 9

जिन्नात गुलशन की अम्मी को बता रहा था!
कि गुलशन कीसी लडके को जानती है जो उसे काफी पसंद करता है!
"ठीक है मुजे लडके के पेरेन्टसे् भी मिलना होगा ना..? "
तब जिन्नात ने जिक्र किया की
लडके की माँ तुम्हारे पास बैठने आने वाली है उसके सामने यह बात रख देना..!
वो मना नही कर पायेगी क्योकि वो दोनो पति पत्नी के लिये अपने बेटे की खुशी से बढकर कुछ नही है!
"ठीक है..!" गुलशन की मा ने हामी भरी
लडके की माँ को मिलने से पहेले अपनी देवरानी जेठानी को बुलाकर अपनी सेहत नादुरस्त है बताना..!
सीने मे दर्द हो रहा है एसा बोलकर केहना की मेरी जिंदगी का कोई भरोसा नही है! मै अपनी बच्ची के जल्द से जल्द हाथ पीले कर देना चाहती हुं ईससे कोई तूम्हारी बात का विरोध नही करेगें..! बस यही चाहेगे की सिम्पल तरीके से वक्त की नजाकत को देखते हुये निकाह किया जाये!
"ठीक है..!"
जिन्नात ने पढाई हर बात को जैसे गुलशन की अम्मीने मूहजुबानी कर लिया!
अपनी बात खत्म कर के वह बोला
मै अब चलता हुं..!
अपनी जान के साथ वक्त बीताना है..!
केहकर वो बेहयाई से उठकर वापस जाने लगी..!
उसके पुष्ट अंगो को देखकर गुलशन की अम्मी सोचने लगी!
यही जवानी ही उसके लिये कातिल बन गई थी..!
जिन्नात हर वक्त उस पर हावी रहेने लगा था..!
उसकी खुबसूरती को नोंच रहा था
जो सिर्फ वो जानती थी!
क्या करती कराह कर रेह जाती थी!
वो अपने कमरे मे चली गई पर पिछे खौफनाक सन्नाटा छोड गई थी!
5.00 बज रहे है!
फज्र का वक्त था!
गुलशन की अम्मीने वजु बनाकर नमाज पढी और अल्लाह से सबकी खैरियत की दुवा मांगी!
रात को गुलशन पर हावी जिन्नात अपनी गुलशन के साथ शादी के लिये उतावला हो रहा था!
बडी बडी आंखो से डरा रहा था!
फिलहाल उसकी बात को नजरअन्दाज करना मुमकिन नही था!
उसने जिन्नात को साथ देने पर अपनी रजामंदी जाहीर की थी!
साथ न देती तबभी जिन्नात अपनी मनमानी करने वाला ही था!
और वह जिंन्दा रहेगी तो ईस मुसिबत का कुछ हल ढूंढ पायेगी..!

***************
"जिंदगी किस मोड पर ले आई हमे आज..
मौत मांगी ,वोभी मुकर कर चल दी हमसे"
*** ****
मोसम बेपरवाह था कभी बरस जाता था तो कभी ठंड का समां बांध लेता था!
खलिल जब अपने प्यार के बारे मे सोचता था तो बरबस ही आँखें बरस जाती थी!
उदासी और उलझनो के बोज तले वो दबता सा जा रहा था..!
उसे लग रहा था जिंदगी मे कोई नही था.. अपना प्यार भी अपना नही था..!
बार बार वो दूर रहेने की धमकी देता था!
एसा प्यार जिसको अपनाने के लिये उसने अपनी जिंदगी भी दाव पर लगा दि थी..!
कौन करता है आज के दौर मे एसी महोब्बत..?
जब अपने प्यार के लिये जान देने की बारी आती है! तो.. प्रेम का दावा करने वाले अच्छे से अच्छे लोग मुकर जाते है..!
खलिल वैसा बिलकुल नही था!
किस्मत ही उसकी खराब थी जो लोग उसे बारी बारी छोडकर जा रहे थे..!
दिमाग पर काफी बोज लग रहा था..!
नसे फट रही थी... एसा लग रहा था जैसे बडे विस्फोट से दिमाग फट जायेगा..!
और सबकुछ खत्म..! एक लम्हे मे.. !
मगर ऐसा भी तो नही हो रहा था!
काफी सोचने के बाद गुलशन और घरवालो को ये केहकर निकल गया की दोस्तो से मिलना है! आज वो अपनी लिनिया लेकर निकला था..!
न जाने कितने दिन हो गये थे अपनी कार की सवारी किये हूये!
उसको याद आया.! गुलशन के मिलने से पहेले जिया बहोत सी बार उसके साथ ड्राईविंग पर आई थी!
जिया की कमी उसे आज महेसुस हो रही थी कमसे कम वो एक अच्छी दोस्त तो थी!
जिंदगी ने एक सबक दिया था उसे!
कभी किसी की अवहेलना न करे..! न जाने किसका कंधा कब रोने के लिये काम आ जाये..!
जिया के घर पहूंचा तो उसके दादा दादी को घरमे पाया!
जिया कहीं नजर नहीं आई !
उसका दिल धक्क से रेह गया..!
दादा दादी सून्न बैठे थे !
जिया को घर मे न पाकर जब वो दादा दादी के पास आया तो दोनो की आँखे भर आई थी!
"क्या हुवा दादी..? जिया कहाँ है..? "
ह्रदय मे घबराहट महेसूस करते हुये खलिल ने पूछा था!
दादी ने अपनी भर्राई आवाज मे कहा!
बेटे जब से आपकी शादी हुई वो बेजान सी हो गई थी!
वो तुमसे बहोत महोब्बत करती है!
मगर कभी तूम्हे बताने की हिम्मत नही जुटा पाई थी!
आखरी बार वो जब से गुलशन से वो मिली थी! काफि परेशान रहेने लगी थी ! बात बात पर गुस्सा करती थी और रो देती थी!
उसकी एसी हालत का जिम्मेदार हम तूम्हे ही मानते रहे है पर बेटे..!
अब हमे लगता है सिर्फ ईतनी बात नही थी! कुछ और भी बात थी!
कई बार उसको निंद मे बूदबूदाते हुये सूना था हमने की
"हमसे पाप हुवा है... दादी..!
बडा अपराध हुवा है..! "
और कभी कभी वह नींद मे चिखकर बैठ जाती थी..
हम कुछ पूछते तो रोती थी..!
कितने दिनो से उसका रो रोकर बुरा हाल था बेटे..!
दादी जिया के बारे मे बताते बताते टूट सी गई थी!
मुजे जियाने पहेले कभी बताया नही ये सब..!
कुछ बाते समजनी पडती है मेरे बच्चे! हरबात का जिक्र किया नही जाता!
उसके प्यार को तूमने महेसूस किया होता तो आज उसका ये हाल न होता..?
क्या हुवा है जिया को..?
और वो कहाँ है दादी..? "
खलिल परेशान सा हो उठा था..!
जिया के लिये ईतना अब अपनापन क्यो..!
वो होस्पिटल मे एडमिट है.. जहर खा लिया है उसने...!
देखना नई चाहोगे..? "
"क्या...? खलिल उछल पडा..!
दिल जोरोसे पसलियाँ को टकराने लगा था!
**** **************
"मै जिन्दा हुं आज तो तेरी वजह से
अय दिल मुझे तु आजमाया ना कर..! "
*** *** ***

पार्ट -18

अस्पताल निकलते वक्त खलिल ने अम्मी को कॉल कर दी थी की उसे आने मे जरा देर होगी.. गुलशन को बता देना..!
पर सामने से अम्मीने बताया की गुलशन तो उसके घरसे निकलते ही बाहर निकली है किसी को कुछ बताये बगैर..!
खलिल को हैरत जरूर हुई मगर आसपास ही कही होगी ये सोचकर दीमाग पर झोर नही दीया था!
ईधर दादी की बात सूनकर खलिल खुदको दुनिया का सबसे बदकिस्मक ईन्सान समझ ने लगा !
अपनी प्रेमिका अपनी न थी और जो उसको प्रेम करती थी वो खुदको बिखरा हुवा समझ कर जहेर निगल चूकी थी!
दादी को लेकर वो होस्पिटल पहूंचा.!
होस्पिटल काफि बडा था !
मगर दादी की वजह से जिया को ढूंढने मे दिक्कत न हुई!
स्पेशियल वोर्ड की एक बेड पर वो लेटी हुई थी.!
दादी ने उसके माथे पर हाथ फेरा!
फिलहाल उसे वेन्टिलेटर पर रखा गया था!
उसका पूरा बदन फूल गया था.. चहेरा लाल हो चूका था..!
बदन पर छोटी छोटी घमोरियां जैसी फोडीयां निकली थी
ये सब कैसे और क्यु हुवा दादी..? "
खलिल की आवाज सूनकर जिया ने आँखे खोली!
वो खलिल को देखकर घबरा गई !
उसकी आँखें चौडी हो गई!
उसके हाथमे सिरीज लगी थी!
फिरभी वह
खलिल को बाहर जाने का ईशारा कर रही थी!
खलिल समझ गया था कोई तो एसी बात थी जो जिया जानती थी..! मगर अब डर रही थी.!
दादी ने बताया की ईसने जहर पीया वो बात का अच्छा हुवा मुझे पता चल गया और मैने फोरन आटोमे ईसे अस्पताल पहूंचाया!
डाक्टर ने ईसे वॉमिट करवा कर जहर निकाल दिया है! मगर कुछ तो असर बाकी रहेना था..! सो.. धीरे धीरे ठीक हो जायेगी बेटे !
डोन्ट वरी दादी आप गबराओ मत..! ईसे कुछ नही होगा..! मै हू ना..!
कुछ नही होगा ईसे..!
जिया की आँखे झील मिला उठी!
खलिल ने जैसे एक अधिकार से कहा तो
जिया की पलको से पानी बहेने लगा था!
खलिल की समझ मे ये बात आ चूकि थी की जिया जिन्नात से खौफ खाई हुई है शायद..! पर जिन्नात जिया को नुकसान क्यु पहोंचायेगा भला..!
वो बात उसके भेजे मे नही घूस रही थी!
खलिल ने जिया की भीगी आँखो मे झांकते हूये कहा! "क्या बात है जिया तुम कुछ बताना चाहती हो.. क्या बात है जो आप हमसे छूपा रही थी..? "
जियाने ईशारे से कागज कलम मांगी!
खलिलने तुरन्त एक कागज और कलम की व्यवस्था की..!
जियाने अपने कांपते हाथो से लिखा.!
मै गुनहगार हुं! मेरी वजह से गुलशन की जान जिन्नात के कब्जे मे है..! उसकी मां की आँखो में मैने जिन्नात का खौफ देखा था..! तब जब गुलशन के अब्बु की जान गई..!
उन्हें भी मेरी वजह से ही जान गवानी पडी.!
मै जानती थी की जिया जिन्नात भूत प्रेत पर यकिन नही करती थी सो उस दिन मेरे चाचा की लडकी जो जिन्नात के साये मे थी..! उसको दीखाने गुलशन को मै साथ ले गई..!
गुलशन ने उसकी बेतूकि हरकतो को अपने मोबाईल मे विडीओ बना कर केद किया!
और तभी से वो ईसके साथ आ गया था!
"या अल्लाह..!
खलिल ने एक लम्बी सांस ली!
और कहा.. "तूम्हारा उसमे कोई कूसुर नही..!
तुम विडीओ बनाती तो वो तुम्हारे साथ भी आ सकता था..!
तुम ये सब करके क्या साबित करना चाहती थी..?
मुझसे प्रेम करती हो.. एसा..?
तुम्हें कुछ हो जाता तो.. मै तो जीते जी मर जाता..!
खलिल ने पहेली बार जिया से अपना चहेरा छूपाया!
उसके लिये प्यार उसकी आँखो से बहेने लगा था!
चलो दादी कौन सा डॉक्टर ईसका ईसका ईलाज कर रहा हैं मै उसे मिल लेता हुँ. !
दादीने डॉक्टर माथुर का नाम दिया.!
खलिल वहां से सीधा डॉक्टर माथुर को मिलने गया.!
तभी वहां गुलशन ने कदम रखा..!
जिया की आँखें फटी की फटी रह गई..!
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सुलतान की परखु निगाहो ने ताड लिया था !
खुशहाल रहेने वाला लडका अचानक चूप हो गया था वह..!
वजह जान ना जरुरी था कहीं ऐसा न हो कि बात फिर आपे से बाहर निकल जाये!
सुलतान भी बिना बताये घर से बहार निकल गया!
खलिल दोस्तों से मिलने का बहाना करके कुछ और ही फिराक मे था!
बात जो भी थी वह पता कर के रहेगा!
गुलशन और खलिल के बीच अनबन थी दूरी थी! उसकी तह तक जाने का फैसला करके सुलतान सीधा गुलशन के मयके पहोंच गया.!
इस वक्त धरके भीतर जाना वाजिब नही था तो उन्होने कटहरे मे से ही आवाज लगाई..!
"सायरा जी...!
कोई है धर पर..? "
असल्लामोअलयकुम ..! सलाम करती हुई संमधन की देवरानी बाहर आई!
आईये संबधी जी.. अचानक कैसे आना हुवा..
वालेकुम असल्लाम..! उन्होने मूल बात को दबाते हुये कहा!
बहोत जरूरी बात पूछनी है हमे समधन जी से ..!
मगर कश्मकश्मे थी की ऐसे हालात मे कैसे मिले ..!
जब वो परदे के दिन गुजार रही है..! "
ऐसी क्या बात है..? " देवरानी को जिञ्यासा हुई !
"वो सिर्फ उनको ही बता सकता हुं..!
ठीक है में भीतर परदा लगा देती हुं परदे की बाहरी तरफसे जो पूछना है पूछ लेना..!"
"आपका बहोत बहोत शुक्रिया..!"
परदा लगा कर सुलतान को परदे के करीब बुला लिया.!
आप बात कीजीये मै अभी आई केहकर उसकी देवरानी बाहर चली गई!
सुलतानने सलाम की..!
धबराई हुई आवाज मे उन्होने सलाम का जवाब दिया. और कहा.!
आपको यहां नही आना था.!
आपकी जानको खत्रा हो सकता है..? "
ऐसी क्या बात है में वही जानने आया हु..!
खलिल भी बहोत परेशान है..!
आपके शोहर की मौत के बावजुद आपने निकाहभी करवाया ईसी बातमे कहीं झोल था काश मुझे पहेले समझ मे आ जाता..!"
"प्लिज समधीजी अभी मै आपसे कुछ नही केह सकती बस आपकी सलामती की फिकर है मुझे ..
आप यहां से चले जाईये.!
असगर यहां से आगे की नुक्कड पर रहेता है !
आप उन दोनो को फोरन मिलिये, और पूछ लिजियेगा की आप की बेटी के साथ क्या हुवा था..?
फिलहाल जितना जल्दी हो सके ये घर छोड दीजिये
उनकी आवाज मे चिंता साफ झलक रही थी.!
फौरन सुलतान वहांसे निकल गया.!
और तेजी से चलते हुए असगर के धर पहुंचा.
दरवाजा ठोका..!
कुछ देर पश्चात ही दरवाजे के बीचो बीच असगर खडा था..!
वह एक दुबला पतला सा सांवला आदमी था
सुलतान को पहेचानते ही.. सलाम की.. और
'आईए... सुलतान भाई..! आज कैसे रास्ता भुल गए..? "
सुलतान ने सलाम का उतर देकर कहा.!
"मैं कुछ जानना चाहता हुं..!"
"जी कहीये..! "
"आप की बेटी के साथ कैसा हादसा हुवा था..? "
असगर की आँखे सिकुड गई..!
"सब ठीक तो है ना भाईजान..? "
ठीक कुछभी नही है मुजे बताओ मेरे लिये ये जानना बहोत जरूरी है..!
बात आजसे 10 साल पहेले की है..!
असगर अतित के अँधेरो मे देखता हुवा बोला!
जब रुक्साना 14 साल की थी.!
स्टेशन रोड पर बडा गर्ल स्कुल था वहां पर अपनी सहेलीयां के साथ वो पढने जाती थी.!
केहते है कि वहां स्कूलकी जगह पहेले अस्पताल था उसे गिराकर वहां स्कुल की ईमारत खडी कर दी गई थी!
जीसमे पीछे एक कमरा था पोस्टमोटम रुम उसको बंध करके छोड दिया गया था!
सारे स्कुली बच्चो को हीदायत दी जाती थी के उस बंद कमरे के पास किसी को जाना नही है!
एक दिन रुक्साना अपनी सहेलीयां के साथ खेलते हुये उस कमरे तक जा पहूंची!
जिञ्यासा वश भीतर देखा.!
दो लडकियाँ जो साथ थी उसमे मे एक ने चमकते हुये कहा.!
"आज ईस कमरे का दरवाजा खुला किसने रख दिया..? "
अंदर जाकर देखना चाहिये.. आखिर क्या है ईसमे..
नही यार भीतर जाने से सरने मना किया है..! "
"चल यार फट्टु सर को तु बताने वाली है..?" उसने अपनी फ्रेन्ड के सामने आंखे तरेरी.!
"नही.. पर ठीक होगा..? "
पहेले मै देख लेती हु फिर आप दोनो केहकर वो भीतर चली गई.!
ठीक 12 बज रहे थे.. धूप बढ रही थी.!
भीतर एक और कमरा लग रहा था जहा घना अँधेंरा दिखाई दे रहा था!
एका एक कुछ गिरने की आवाज से दोनो चौक उठी
दिया जो अंदर गई थी उसकी आवाज नही आ रही थी.!
रुक्साना ने भी जैसे ही भीतर कदम रखा की वही दरवाजे के पास ही वो गिर पडी.!
उसकी आंखोमे अंधेरा छाने लगा.!
बाहर खडी लडकीने दौडकर सर को सारी बात बताई.!
रुक्साना को वहां से तुरन्त निकाला गया.!
सब मिलकर अंदर गये जमिन मे बडा सा गड्डा हो गया था..!
और वहा पर किसी के घसीटे जाने के निशां थे.
दिया कहीं नही थी.!
सब लोग मान रहे थे की उसे जमिनमे खिंच लिया गया है..!
रुक्साना पर पानी डालकर उसे होश मे लाया गया मगर वो ईतनी डरी हुई थी की कुछ बता नही रही थी
सर लोग उसे हमारे घर ले आये!
वह लडकी का कुछ पता नही चला.!
स्कुलमे जैसे हडकंप मच गया था!
ईधर रुक्साना को फिवर उतरने का नाम नही ले रहा था.!
रातमे डर कर वो चिख उठती थी.!
घरमे कंम्बल ओढकर सोती थी!
केहती थी मुजे कोई दिखता है..! डरा रहा है..!
उसकी दिमागी हालत दिनबदिन खराब होती जा रही थी की एक दिन...!!!
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सामने दरवाजे मे गुलशन को देखकर जिया ओर उसकी अम्मी काफी डर गई
"ये तूमने क्या किया डीयर..?
गुलशन दौडती हुई जिया से लिपट गई..!
ईतनी पराई हो गई मै की तु मुजे छोडकर अपनी जिंदगी तबाह करना चाहती थी..?"
गुलशन का चहेरा काफी भावुक हो उठा था..
जिया कश्मकश्म मे थी..
अपने साथ हमदर्दी जताने वाली गुलशन अचानक गला भी पकड सकती थी
अंदर ही अंदर गबरा रही थी बस गुलशन को देखे जा रही थी
"बेटी पता नही क्यो जिया ने एसा कदम उठाया..? कुछ भी बताने को वो तैयार नही है पता नही क्या बात थी..?"
गुलशन की माँ भीगी हुई आवाज मे केह रही थी.
गुलशन जिया के चहेरे पे हाथ फेरती हुई केहने लगी..
"डर मत.. पगली...! तुजे जिन्दा रहेना है खुदको जिंदा रखना हैं.. अपने लीये न सही.. अपने प्रेम के लिये..!
क्या केह रही थी गुलशन जिया को बडा ताज्जुब हुवा..
"क्या वो जानती होगी मेरा प्यार कौन है..?"
जियाने अपनी आंखे गुलशन की आँखों पर गडा दी थी
"क्या सोच रही है.. यही ना की तेरे प्यार को मै केसे जानती हुं..?
पागल मैं सब जानती हुं..! मुजे तो खलिल से शादी करनी थी सिर्फ..! अब वो तेरा है सिर्फ तेरा.. मेरा उस पर कोई हक नही ईत्मिनान रख..! ठीक हो जा.. और उससे मिलने की तैयारी कर मै चलती हुं अपना खयास रखना..
केह कर उसने कुछ पैसे जिया की माँ को देते हुये कहा ये रख लो.. जरुरत पडे बोल देना.. मै भी आपकी ही बच्ची हूं..!
ईतना केहकर अपनी आँखे पोछती हुई गुलशन बाहर निकल गई!
जिया आवाक सी दरवाजे को गूर रही थी
एक लम्हा भी एसा नही लगा की गुलशन जिन्नात की असर मे थी
बडा प्यार जता रही थी..
मगर एक खयाल जिया के दिमाग मे आते ही वह चोक गई..
जिन्नात भी तो यही चाहता होगा..
गुलशन और उसके बीच आने वाली हर एक दिवार को वह हटा रहा था
शायद मुजे वो ईसलिये तकलिफ पहोंचाना नही चाहता था कि मै वही लडकी हुं जो खलिल का सहारा बन सकती थी
उसको गुलशन के बाद अपनी जिंदगी बना सकती थी.. कैसे खयाल आ रहे थे..
उन खयालो की वजह खुद गुलशन थी..
एसी हालत मे भी जिया की आँखे भर आई.. जिसको पाने के लिये ईतना तडपी.. जिसके लिये अपनी जिंदगी तक दाव पर लगाने तैयार थी वह मिला भी तौ किसी और का होकर..! क्या नसिब पाया था..! सब किस्मत का खेल होगा..!
"बेटी.. दादी ने कहा.. गुलशन की बाते मेरी समज से बहार थी..! खलिल अब तेरा है उसका क्या मतलब हुवा..? "
जिया ने दादी के हाथ पर अपना दाया हाथ रख दिया..!
शायद वह दादी का होसला बढा रही थी! और चींता करने की जरुरत नही है एसा मूक ईशारा था वो.!
दादी कुछ न बोली..! अपनी प्यारी पोती को जी भरकर देख रही थी..! बरबस ही उसकी आँखे झारझार होकर बरस रही थी
की तभी खलिल आ गया..!
डोन्ट वरी दादी..! डॉक्टर से बात हो गई है..!
वो जल्द से जल्द जिया को ठीक कर देंगे..!
दादी समज गई थी..! अस्पताल का सारा कर्जा वो अपने उपर ले आया था..! उसकी आँखे बोल रही थी.. !
"जिया..!
उसने जिया को पुकारा...! उसकी आँवाज दर्द से भीगी हुई थी..! पता नही उस पर क्या बीत रही होगी..!
"जलदी धर आजाओ यार..!. तुम्हारे बीना मै अघुरा हुं..!"
खलिल को अपने प्यार का अहेसास हो गया था और उसी की तडप थी जो उसे बेकरार कर रही थी..!
तुम्हारे बीना कुछ नही हुं मै..! वो रो पडा..! खलिल को ईस हाल मे देखना दादी के लिये सदमे की तरह था..!
"बेटे..! "
उन्होने खलिल का हाथ थामा..!
मुजे मेरी गलती का अहेसास हो गया है दादी...! मगर अब पता नही क्या होगा..!
जिया कुछ बोल नही रही थी मगर उसकी आंखो से बहेने वाला सैलाम उसके दिल का हाल बया कर रहा था..!
कैसी राह पर आकर रूकी थी जिंदगी..!
पता नही क्या होने वाला था..!
जिन्नात अपने मक्सद मै कामियाब हो रहा था..!
तो गुलशन की जिंदगी नर्क बनने वाली थी..!
उसका भी कुछ कसुर नही था..!
खलिल को वहाँ खडा रहेना मुश्किल हुवा
वो तडपता हुवा उस कमरे से निकल गया.!

***** ********

एक दिन एक सवाली दर पर आया.!
असगर कुछ पल ठीठका जैसे अतित से मीला वो नायाब तौफा उसकी आँखों की पूतलीयां को छूं गया!
रुक्साना उसे देखकर डर रही थी!
"क्या हुवा बेटी..? "
मैने रुक्साना को देखा !
आज पहेली बार मै देख रहा था की रुक्साना किसी ईन्सान को देख कर डरी हो!
उसके लिये कम हैरत की बात नही थी
फकिर को जब मै सदका देने आगे बढा तो फकिर जैसे चीख उठा!
"रुक जाओ आप...! मै ईस घरसे कुछ नही ले सकता..? "
"क्यो बाबा एसा क्या अपराध हुवा है हमसे..? "
आपसे कोई अपराध नही हुवा मगर..!
उन्होने रुक्साना की ओर देखते हुए कहा
"ये कहाँ से आया है यहां..? "
ईसके रहेते मुजे आपके घरका पानी तक पीना हराम है..!
कौन..? बाबा..किसकी बात कर रहे है आप ..? "
यह लडकी के साथ बैठा है वो..! उसका नाम लेना नही चाहता मै..!
फिर उसने अपने गले से एक ताविज उतार कर दिया..! ईसे पहेना देना बच्ची को.. वो कभी उसको छु भी नही पायेगा.. मगर जिस दिन..!
उसके गले से यह ताविज हटा.. उसकी जान खत्रे मे पड दायेगी..!
उस दिन के बाद कभी रुक्साना को तकलिफ नही हुई थी..!
उसकी शादी कर दी एक पांच साल की बच्ची भी है
अभी एक माह पहेले वो धर आई थी की जिन्नात ने अपनी चगुंल मे उसे फसा लिया..!
उसको दरगाह पर ले जाना था!
उस दिन जिया के साथ उसकी सहेली गुलशन भी आई थी..!
पता नही वो लोग रुक्साना की तसविरे ले रहे थे जब जीन उस पर हावी था..!
उस दिन के बाद से वो गायब था!
रुक्साना की सारी मुश्किले हल हो गई थी.. जैसे कोई और उस साये को ले गया था..!
ईसका मतलब वो गुलशन के साथ आया है..!
सुलतान सोचने लगा!
खलिल की जान को भी खत्रा है..!
सुलतान का अब लहां रुकना वक्त जाया करना बरोबर था..!
वह भागा वहां से..!

ये कहानी को लिखने का बहोत मजा आया..
आपके सुजाव जरुर दे