Khof - 24 books and stories free download online pdf in Hindi

खोफ - 24

“सोच लो फिर मै तुम सब की बेबसी पर दुबारा रहम नही खाऊंगी। हमें भी औलाद नहीं रहना है अपने बच्चों को जिंदा देखने के लिए हम कुछ भी करेंगे.!
प्रिया के भाई ने अपने भारी शब्दों में आत्मसमर्पण कर दिया।
"ठीक है, तो सूनो ..!"
आरती अपने घुँघराले बालों को सहला रही थी।
उसकी आँखें गोल गोल घूम रही थी। प्रिया के दिल की धड़कन बढ़ गई थी।
वो भी समझा गई थी कि पूरी जनजाति डायनो द्वारा बिछाए गए जाल में गिर गई थी।
जिसे कोई नहीं बचा सकता।
इसकी शर्तों के अाधीन हुए बिना कोई चारा नहीं था। जिसे कोई चुनौती नहीं दे सकता था।
वो एक एक व्यक्ति को देख रही थी।
एक मिनट के बाद उसने कबीला के लिए एक कठोर शब्द कहे जो एक तरफ से श्राप ही थे।
आपको कुछ भी करके मेरे लिए सप्ताह में एक जवान लड़के की व्यवस्था करनी होगी ..!
उसको महीने भर खिला पिलाकर मेरे लिए तगड़ा करना होगा। जिसका बलि देकर पूरा कबीला उत्सव मनाया और चावल में उसका खून डालकर प्रसाद बांटा जाएगा।
याद रखें उसकी कोई भी इच्छा पूरी नहीं रखनी है। उसे कभी लिखी औरतों और लड़कियों के साथ रतिक्रीड़ा में मग्न रखें कि वह इस कातिल और सुनहरे रिश्ता को छोड़कर जाने की कभी जुर्रत ही न करें।
यह माहौल उसकी जिंदगी में सपनों की दुनिया सा लगे और उसका जी भर जाए। आप लोग अपना वंश आगे बढ़ा पाएंगे।
ऐसा ही होगा मैं हम अपने होशियार लड़कियों को लगाकर जगह-जगह जवान लड़के उठाएंगे और आपकी निगाहों में उसकी बलि दी जाएगी।
प्रिया के भाई ने मंजूरी की मोहर लगा दी और कब से शुरू हुई श्राप की ऐसी परंपरा। जिस को खत्म करना इतना आसान भी नहीं था।
प्रिया ने खुद को विवश बता दिया। मेरे इस खूनी खेल का आगाज देखकर तड़प उठा।

जिया समीर और प्रिया को छोड़कर मजार की ओर भागी।
वह एक खतरनाक इरादे के साथ आई थी। अच्छा था कि दोनों मजार की चौखट में खड़े थे बाबा की कब्र से मात्र 10 कदम दूर। इसलिए उनके करीब पहुंचकर भी दोनों को छूने की उसकी हिम्मत नहीं थी। वह सिर्फ मजार के आसपास घूमती रही चाह कर भी वह कुछ नहीं कर सकती थी।
और इसीलिए समीर पर इमोशनल ब्लैक मेलिंग का आरोप लगाकर वहां से वह कुच कर गई। अभी उसके बदन में आग लगी थी। उनके साँसो से भाँप निकल रही थी।

किसी की राह तकती हो ऐसे वह बाहर कॉर्नर पर एक साइड पर खड़ी थी। बारिश उसके लिए रास्ते की सबसे बड़ी रुकावट बन गई थी। वह गुस्से से आसमा की ओर देख रही थी। उसमें हिम्मत नहीं थी कुदरती बारिश को रोक सके। उसका गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था। उसका बस्तर का कोई काले घने बादलों को उठाकर दूर फेंक देती। आसमा को खुला करके फिर से अपनी ताकत का परचम लहराती। मगर वह कसमसा कर रह गई।
मौके की राह देख रही थी।
वह जिस तूफान का आगाज करके आई थी उस को अंजाम तक पहुंचाने धून उसके मन में लग गई थी
एक तरफ जोरों की बारिश हो रही थी पहाड़ियों से पत्थर गिर कर नीचे आ रहे थे।