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स्त्री.... - (भाग-19)

स्त्री......(भाग-19)

माँ अपने इस सफर पर अकेले ही बिना कुछ कहे ही चली गयी....मैं बहु थी तो मुुझे घर पर रूकना था सफाई करने के लिए......बाकी सब भी लौट आए थे। घर मैं कुछ खाना बनना नहीं था तो मामा जी और उनका बेटा बाहर से खाना ले आए। कामिनी को घर जाना पड़ा क्योंकि निशांत परेशान कर रहा था.....घर में मामा मामी, मैं,सुमन दीदी और सुनील भैया रह गए थे और बच्चे अपनी दुनिया में मस्त खेल रहे थे। मामा जी का बेटा और जीजा जी घर चले गए थे। कितना अजीब लगता है न कि कुछ घंटे पहले इंसान "होता है" और अगले ही पल वो "था" में बदल जाता है। मैंने अब तक अपनी समझ में किसी करीबी को जाते हुए नहीं देखा था तो मैं समझ ही नहीं पा रही थी कि मैं क्या करूँ? बार बार एहसास हो रहा था कि माँ मुझे आवाज लगा रही है.....माँ तुम्हें अभी मेरे लिए जीना चाहिए था....मैं क्या आपको प्यार नहीं करती थी जो आप अपने बेटे के लिए अंदर ही अंदर घुटती रही। क्यों अक्सर ऐसा होता है कि जो पास नहीं होता हम उसके लिए ज्यादा तडपते हैं!!
शाम तकरीबन 7 बजे मेरे पति घर पहुँचे थे......अपने बहन भाई के गले लग कर खूब रोए....मामा ने उन्हें चुप कराना चाहा तो वो और रोने लगे। सुधीर बेटा अपने आप को संभाल, तू ऐसे हिम्मत हारेगा तो इन छोटों को कैसे संभालेगा!! अब तू और जानकी ही सुनील और सुमन के माँ और बाप हो...उठो हाथ मुँह धो कर आओ....... नीचे वाले पडोसी हमारे बहुत अच्छे थे। वो ही चाय वगैरह एक दो बार दे गयीं थी। मैंने अपनी बाई को बोलकर चाय बनाने का सारा सामान नीचे ही भिजवा दिया था और उसे एक दिन के लिए रोक भी लिया था तो उसे नीचे भेज कर चाय बनाने को भेज दिया। मेरे पति भी आ कर सबके साथ बैठ गए। फिर शुरू हुआ गिले शिकवे का दौर....सुमन दीदी सबसे पहले बोलीं," भाई साहब आप 2-3 महीने का बोल कर गए थे और 6 महीने बाद भी फोन करने पर आए वो भी माँ के जाने के बाद!! कितनी बार हम सबने आप को कहा कि एक बार आ जाओ माँ आपके लिए उदास हो गयी हैं,पर आप हाँ हाँ यही करते रहे और माँ आपको देखने की इच्छा लिए हमेशा के लिए हमसे दूर चली गयीं"!! सुनील भैया भी नाराज थे उनसे बोले,"आपको तो अंदाजा भी नहीं होगा की भाभी ने कैसे संभाला है माँ को अगर भाभी की जगह कामिनी होती तो कुछ भी न करती वो माँ और हम सब के लिए......आपने उनकी बात भी नहीं मानी? मैं मानता हूँ कि काम बहुत जरूरी है और तरक्की भी करनी है पर भाई साहब आप एक दिन आ कर माँ को मिल कर दूसरे दिन वापिस चले जाते"। मेरे पति सबको सुन रहे थे आँखे नीचे करके तब मामाजी ने बात खत्म करनी चाही, "चलो जो हुआ सो हुआ। इंसान के आने जाने के समय का पता किसी को नहीं होता और आगे सब कैसे करना है, इसके बारे में सोचते हैं"। मैं सब बातें सुन रही थी,क्योंकि किसी को दोष देने का भी कोई मतलब नहीं, अब माँ तो वापिस कभी आएँगी नहीं। 13वीं के बाद एक हवन करवा कर पंडितो को भोज करा दिया गया और माँ की आत्मा की शांति के लिए एक पाठ भी करवाया। माँ की कमी बहुत खल रही थी और आज भी खलती है क्योंकि एक वही तो थी जो मेरे साथ रहीं हर मायने में और आखिरी रात वो मुझे सब कुछ कह कर कितनी आसानी से मुझे छोड़ कर चली गयी। आँसू अपने आप कई दिन बहते रहे, रात को नींद नहीं आती थी ठीक से, अगर आ भी जाती तो झटके से खुल जाती,ऐसा लगता माँ ने मुझे बुलाया है। 13 वी के बाद सब अपने अपने घर चले गए। मेरे पति के जाने में एक हफ्ता था। मेरे पति ने सुनील भैया से बात करके अपने पुराने घर को बेचने की बात कर ली थी। भैया भी सहमत थे, क्योंकि उन्हें तो वहाँ नहीं रहना था। घर बेचने की जिम्मेदारी भैया को दे दी। भैया ने पूछा," भाई साहब आप वापिस आएँगे या भाभी को साथ ले कर जाओगे? अभी तो मैं अकेला जा रहा हूँ, इसका भी तो काम है यहाँ, ये यहाँ से अपना काम धीरे धीरे समेट पाएगी। फिर मकान का भी जितनी जल्दी हो जाए, अच्छा है मैं फिर आऊँगा तो जानकी को साथ ले जाऊँगा"। सुनील भैया क्या कहते बस इतना बोल कर रह गए,"भाई साहब वो अकेले कैसे रहेंगी"? वो चुप हो गए तो मैने कहा," आप बिल्कुल चिंता मत करो सुनील भैया, कुछ ही दिनों की तो बात है, मुझे डर नहीं लगता मैं रह लूंगी"! देखा मैं कह रहा था न कि जानकी अब इंडीपेंडेंट और कांफिडेंट है, कुछ दिन तो मैनेज कर ही सकती है। Yes, you are right i will manage.मेरा जवाब उनको खास पसंद तो नहीं आया पर भाई के सामने कुछ कहते नहीं बना तो गर्दन हिला चुप हो कर रह गए। सुनील भैया चले गए और हम दोनो थे तो दो पर बिल्कुल अकेले। कुछ देर इधर उधर घूमते रहे मैंने टेबल पर खाना लगा दिया।
सब रीति रिवाज खत्म होने के बाद घर बिल्कुल खाली हो गया था। जिंदगी तो फिर अपनी रफ्तार से चलती ही रहती है। खाना सामने रखा है, पर मेरे पति न जाने किन ख्यालो में गुम थे। आप खाना खा लो....कह कर मैं खाने बैठ गयी। मुझे खाता देख वो भी बैठ गए और खाने लगे। खाना खाने के बाद बोले,"मैं तुम्हें अपने साथ नहीं ले जाऊँगा, मैं तुम्हें तलाक देना चाहता हूँ" । उनकी बात सुन कर मुझे ऐसा लगा कि उन्होंने माँ और मेरी बातें उस रात सुन ली हो, "जी ठीक है, आप बता देना कि मुझे ये घर कब खाली करना है, मैं कर दूँगी"! कह प्लेट्स ले कर किचन में आ गयी। तुम कहाँ जाओगी? अपने गाँव वापिस? आप उसकी चिंता मत कीजिए मैं अपना ख्याल रख सकती हूँ।उनका पुरूष वाला अहं फिर जाग गया और तुम से तू पर आते इनको कुछ सेंकिड़ ही लगे।" हाँ मैं क्यों चिंता करूँगा तेरी, तूने तो काम के बहाने बहुत यार बना रखे हैं, तेरे सुंदर चेहरे के नीचे तेरी बदसूरती दूसरों से छुप सकती है पर मुझसे नहीं.....देखना एक दिन तुम्हारी बदसूरती सब देखेंगे"!! "हाँ बिल्कुल ठीक कहा आपने, बहुत लोग हैं जो मेरे नजदीक आना चाहते हैं, पर आपका क्या?? आपकी किस्मत में खूबसूरती आयी पर अच्छा पति बन सकते थे, कभी कोशिश ही नहीं की और कायरो की तरह भाग गए। आप किसी गुमान में मत रहना कि किसी को आप का सच पता नहीं, माँ सब जान गयी थी। मैं तो चाह कर भी उन्हें न कह सकी पर माँ अपने बच्चों को खूब पहचानती है। मैं खूबसूरत हूँ या बदसूरत ये जानने की समझ आप में नहीं है"। "जानकी कम बोल बहुत जबान निकल आयी है तेरी",कह मुझे मारने को हाथ उठाया पर इस बार वो हाथ मुझ तक पहुँच न पाया मैंने उनके हाथ को कस कर पकड़ लिया।
"आप मुझ पर हाथ उठाने की हिम्मत भी मत करना, अगली बार तोड़ दूँगी", कलाई को छोड़ते हुए कहा। वो चुपचाप कमरे में चले गए। मैं अपने काम में बिजी हो गयी और वो शाम तक बाहर नहीं निकले....रात का खाना बना मैं उनके कमरे में देने गयी तो दरवाजा बंद था, खटखटाने पर खोला और चुप करके खाना ले कर कमरा बंद कर लिया। सुबह मुझे अपने काम पर जाना था, मेरे पति जल्दी उठ कर बाहर चले गए और मैं अपना काम निपटा कर लंच और नाश्ता अपने पति के लिए रख कर फोन करके बोल दिया कि मैं शाम को घर आऊँगी खाना और नाश्ता बना है। चाभी थर्ड फ्लोर से ले लेना। उनका जवाब "ठीक है", सुन मैंने फोन रख दिया। जोश में कह तो दिया कि मकान कब खाली करना है बता देना पर मैं कहाँ और कैसे रहूँगी इतने बड़े शहर में अकेली? सोच कर मन घबरा गया था, पर जानती थी कि गाँव जाने का कोई फायदा नहीं। अब कहा है कि मैं रह सकती हूँ तो रहना होगा ही।
सारा दिन काम के बाद शाम को घर पहुँची तो मेरे पति लौट चुके थे, टी वी चल रहा था। किचन में खाना वैसे ही रखा था.....मैंने अपने लिए चाय बनायी तो एक कप उनके सामने भी रख कर अपने कमरे में चाय ले कर चली गयी। कुछ देर आराम करने के बाद मैं बाहर आयी तो वो कहीं जा रहे थे। मैंने टोकना जरूरी नहीं समझा......जाते जाते खुद ही बोले," मैं किसी काम से जा रहा हूँ, खाना मत बनाना"। मेरे जवाब का इंतजार किए बिना वो चले गए और मैंने अपने लिए सुबह का बना खाना ही गरम करके खा लिया। मैं माँ के कमरे में ही सो गयी। रात को 1:30 बजे वो आए और सीधा कमरे में चले गए। अगले दिन सुबह उठे और अपनी तैयारी करने लगे.....सुनील भैया और सुमन दीदी भी आ गए। उनसे पता चला कि वो वापिस जा रहे हैं। मुझे तो उनसे कोई उम्मीद वैसे भी नहीं थी तो उनका जाना या रहना मुझे कुछ नहीं खला। माँ के जाने के बाद वो मुझे इस घुटन भरे रिश्ते से आजाद कर रहे थे, ये सोच कर ही मैं संतुष्ट थी.....कहाँ जाऊँगी, कैसे सब करूंगी की चिंता तो थी, पर ये भी सच है कि आजादी सस्ती नहीं होती, उसकी भारी कीमत चुकानी पड़ती है, सो मुझे भी चुकानी पड़ेगी इनकी वजह से बने सब रिश्तों को तोड़ कर......!!
क्रमश:
स्वरचित
सीमा बी.