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स्त्री.... - (भाग-21)

स्त्री.......(भाग-21)

उसी रात मेरे पति का मेरे पास फोन आया था, उन्होंने मुझे बताया कि," तलाक के पेपर्स तैयार हो गए हैं, मेरा वकील आ कर कल दे जाएगा तुम साइन कर देना। मुझे नहीं लगता कि तुम्हें इससे कोई ऐतराज होगा। आपसी सहमति से तलाक लेना अच्छा रहेगा नहीं तो कोर्ट में केस जाएगा तो हम दोनों ही परेशान होंगे"...."जी आपने बिल्कुल ठीक कहा...मैं साइन कर दूँगी पर सबके सामने। आप को सुनील भैया ने बोला ही है आने के लिए तो जब आप आएँगे तो ये काम भी हो जाएगा", मैंने बिल्कुल शांति से अपनी बात बोल दी....वो बोले," तुम चिंता मत करो तुम्हारा हिस्सा तुम्हें मिल जाएगा"। "मुझे उसकी कोई चिंता नहीं"! उनकी बात सुन कर मुझे थोड़ा गुस्सा आ गया। ठीक है मैं 3-4 दिन में आ रहा हूँ। मैं समझ रही थी कि आने वाले कुछ दिन मेरे लिए परेशानी वाले होंगे और मुझे खुद को तैयार रखना मानसिक रूप से हर प्रॉब्लम का सामना करने के लिए।
कुछ भी हो जाए मैं न कमजोर नहीं पडूँगी....अपने पति की ओछी सोच का नमूना तो मैं देख चुकी थी, पर आगे तो बहुत ऐसे लोग मिलेंगे जो मुझे अकेले देख कर या तो मुझमें अवसर खोजेंगे या खोट......गाँव हो या शहर समाज बनता तो लोगो से ही है....लिखा पढा पति जब इतना गंदा बोल सकता है तो और क्यों नहीं? दिमाग मैं बहुत कुछ चलता रहता था, एक मन कहता कि गाँव से बाबा को बुला लूँ, पर दूसरे ही पल गाँव के लोगो का मेरे खुशकिस्मत होने का भ्रम टूट जाता और माँ पिताजी को लोगों की बातें सुननी पड़ती....ये सब सोचना भी तो बेटियों की जिम्मेदारी होती है।शायद एक औरत का जन्म ही कभी पिता, पति, भाई या बेटों से दबने के लिए होता है और जो कमी रह जाती है वो हमारा समाज और उसके तथाकित ढेकेदार पूरी कर देते हैं। मुझे भी तो डर पिता की इज्जत और समाज का था वरना चिल्ला चिल्ला कर न कह देती कि मेरे साथ शादी के नामपर धोखा हुआ है!! एक औरत की पवित्रता को नापने के मापदंड शायद हर घर में मिल जाएगा पर पुरूष तो स्वतंत्र है, कुछ भी करने के लिए, यहाँ तक की कमी को छुपाने के लिए भी। मेरा अशांत मन किसी भी बात पर नहीं टिक पा रहा था। मैं खुद को समझाती रहती कि जानकी तू मत डर तूने कुछ गलत नहीं किया है।
तीसरे ही दिन रात को मेरे पति का फोन आया कि वो ट्रेन से सुबह 5:30 तक घर पहुँचेंगे, वसीयत का काम और बाकी काम कल ही करने हैं तो अपने काम का देख लेना......मैं भी अपने काम का देखने लगी, 10 बजे तक सब आते हैं और सबके पास काम है तो नहीं भी जाऊँगी तब भी चलेगा। मैं अपने सूटकेस में सामान लगाने लगी....क्योंकि मैं जानती थी कि 1-2 दिन ही बचे हैं मेरे पास....अपने 2-3 साड़ी छोड कर सब पैक कर लिए। जो कुछ मेरा था मैंने वो रख लिया और अपने दोनो सूटकेस कमरे में ही एक कोने में रख लिया। सामान तो समेट ही लिया बस कुछ कड़वी यादें जरूर रह गयी थी, जिन्हें यहाँ ही छोड़ जाना बेहतर होगा। मैं माँ वाले कमरे में आ कर लेट गयी, माँ की फोटो देखते देखते आँख लग गयी। सुबह 6 बजे घंटी बजी तो नींद खुली।दरवाजा खोला सामने मेरे पति खड़े थे। मैं दरवाजे हट कर एक तरफ हुई तो वो अंदर आ गए।
वो सीधा बाथरूम में चले गए और मैंने चाय रख दी। वो फ्रेश हो कर माँ के बेड पर बैठ गए मैंने चाय और मठरी उनके सामने रख दी.....चाय पी कर कप किचन में खुद ही रखने आ गए, मैं आलू उबलने के लिए रख रही थी।सुनो, "सुमन और सुनील भी आ जाएँगे 9 बजे तक तुम अपने सारे काम निपटा लेना"। कह कर वो बिना जवाब सुने माँ के कमरे में जा कर टीवी चला कर बैठ गए और मैं नहाने चली गयी। मैं जल्दी जल्दी नाश्ता बनाने लगी पोहा और आलू और ब्रेड की टिक्की बना ली। पति के सामने नाश्ता रख खुद भी नाश्ता करने बैठ गयी....बाई ने आ कर सब काम कर लिया तब तक दीदी और भैया भी आ गए। दोनो घर सै नाश्ता करके आए थे तो हम तुरंत सुनील भैया की कार में बैठ कर माँ के वकील के पास चल दिए। इस बीच पूरे रास्ते सुनील भैया और मेरे पति बात करते रहे। मैं और दीदी चुपचाप उनकी बातें सुन रहे थे। सुमन दीदी कभी मेरी तरफ देखती तो कभी अपने भाई की तरफ। माँ के वकील के पास जा कर सबने साइन किए और उसकी कॉपी भी सुनील भैया ने ले ली। माँ का डैथ सर्टीफिकेट निकलवा कर बैंक में पहले ही दे चुके थे और उनके खाते में जितने पैसे थै, अभी वो वैसे ही रहने दिए, और जो भी जरूरी था वो सब फार्मेलेटिज पूरी करके सारी कैश निकाल कर मेरे एकाउंट में सुनील भैया ने डाल दिए। मैंने मना भी किया पर वो माने नहीं। FD का पैसा जब एकाउंट में आएगा तो माँ के दोनो बेटो को मिलना ही था.....वापिस घर आ कर मैंने माँ के गहने सुनील भैया और दीदी के सामने रख दिए। मैंने उन्हें बताया कि माँ ने अपने 2 कंगन कामिनी के लिए और 2 कंगन दीदी के लिए रखे हुए थे। गले की चेन और दोनो कान के माँ ने मेरे लिए रखे थे और दो अँगूठी माँ ने बेचकर उससे जो पैसे मिले वो किसी जरूरतमंद को दे दिए जाएँ या हमारे गुरूजी के आश्रम में दे दिए जाएँ। मैंने वहीं पर सबके सामने रख दिया, मगर मैं कहना चाहूँगी कि अगर आप मैं से किसी को ये गलत लगता है तो आप अपने हिसाब से अपनी पसंद का ले सकते हैं। नहीं भाभी, माँ ने जो बताया सब वैसा ही होगा...सुनील भैया ने कहा तो सुमन दीदी ने भी हाँ भाभी भाई ठीक कह रहे हैं....माँ जैसे आपको कह कर गयी हैं, वैसे ही होगा कह कर उन्होंने मुझे गले लगा लिया। मेरे पति चुपचाप सबकी बाातें सुन रहे थे। सुनील भैया नीचे से जा कर सबके लिए खाना पैक करा लाए। सुमन दीदी बहुत देर तक अपने भाई साहब से बात करना चाह रही थी,पर मौका नहीं मिल रहा था। अचानक सुनील भैया ने बात छेड़ दी...भाई साहब मकान का काम भी हो गया और वसीयत का भी। अब आप ये बताओ कि जानकी भाभी को कब ले कर जा रहे हो? मेरे पति अपने छोटे भाई की बात का तुरंत जवाब नहीं दे पाए.....वो अभी कुछ सोच कर जवाब देते, पर दीदी ने कहा सुनील भैया हमारे भाई साहब जानकी भाभी को डिवोर्स दे रहे हैं तो वो क्यों ले कर जाएँगे भाभी को! ठीक है न भाई साहब?? सुमन दीदी की बात सुन कर उन्होंने मुझे घूर कर देखा.....तो मैंने कहा, आज नहीं तो कल सबको पता चलेगा ही। मेरे जवाब से सुनील भैया बोले आप ये क्या कर रहे हैं भाई साहब? आखिर वजह क्या है,जो आप डिवोर्स देने की, हमें भी तो पता चले?? वो बोले क्योंकि हमारी शादी बेमेल है, हम दोनों ही खुश नहीं है इस शादी से तो अलग होना बेहतर है। सुनील भैया उनकी बात सुन कर गुस्से में आ गए और बोले,"ये बात आपको 6 महीने रह कर समझ आई यहाँ इतना समय साथ रहे तब क्यों नहीं सोचा तलाक लेने का?फिर शादी कोई माँ ने आपकी जबरदस्ती तो नहीं करवाई थी, आपने भाभी को पसंद करके शादी की थी, ठीक कह रहा हूँ न सुमन!! हाँ भाई आप बिल्कुल ठीक कह रहे हैं, भाई साहब आप ये ज्यादती कर रहे हैं भाभी के साथ कह कर वो रोने लगीं। "दीदी आप चुप हो जाइए, जो हो रहा है होने दीजिए आप दुखी न हों। मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं है। मेरे पति ने उस दिन अपने भाई बहन को सच नहीं बताया तो मैंने भी जरूरी नहीं समझा कि उन्हें कुछ बताऊँ। मैंने दोनो को माँ की अमानत दे दी। उन दोनों के जाने के बाद उन्होंने किसी के फोन किया तो कुछ देर बाद ही एक लड़का कुछ पेपर्स ले कर आ गया......मुझे बताया गया कि कहाअ साइन करने हैं, मैंने कर दिए। अब इसके आगे जो भी प्रोसेस होनी होगा वो होता रहेगा फिर क्या फर्क पड़ता है कि कितना समय और हम औपचारिक पति पत्नि रहते हैं.....। रात का खाना मेरे पति बाहर ही खा आए और मैंने दूध ही पी लिया। कमरे में सोने जाने लगे तो मैंने पूछ लिया, मिझे आपका घर कब तक खाली करना है आप बता दीजिए..आपको अहमदाबाद में आपके मालिक रहने को तभी देंगे जब मैंये खाली करूँगी, ये मैं जानती हूँ। हाँ ये तो है, अब तुम आजाद हो जब मरजी और जहाँ मरजी रह सकती हो.....उन्होंने कहा तो मैंने कहा कि," ठीक है, मैं एक दो दिन में खाली कर दूँगी......मैं सिर्फ कपड़े लायी थी, तो बस कपड़े ही ले कर चली जाऊँगी, बाकी का आप देख लो क्या करना है"?" मैं क्या करूँगा इन सबका!! तुम्हें जितना चाहिए ले जाना बाकी पूछ लेना सुमन या सुनील को कुछ चाहिए हो तो, उनको दे देना"। उनका जवाब इस तरह का होगा मैंने सोचा नहीं था।पर ठीक है, वो कहाँ सब उठा कर घूमेंगे वहाँ ले सकते हैं। "आपको बुरा लगा होगा कि माँ ने मुझे क्यों एक हिस्सा दिया? मैं अभी भी आपके नाम कर सकती हूँ!! मैं किसी के कुछ नहीं कहूँगी न किसी के पता चलेगा!!! "नहीं मुझे कोई दिक्कत नहीं कि माँ ने मेरी जगह तुम्हें क्यों दिया हिस्सा.....अब पैसा होगा तो तुम अपनी जिंदगी की नयी शुरूआत कर सकती हो.....मैं तो कमा लूँगा अपने लायक पर तुम्हारा क्या होगा? तुम तो घर वापिस भी नहीं जा सकती और इस शहर में रहना मँहगा है, ये तुम्हें अब पता चल ही रहा होगा"..... उनका जवाब मेरे स्वाभिमान पर चोट कर गया। "हाँ सही कहा आपने पर इस शहर में अकेले अपने बलबूते पर रहना मँहगा पड़ेगा पर उतना मँहगा नहीं जितना मुझे इस रिश्ते में रहने से पड़ा और ये जो सामान का रखने का एहसान जता रहे हैं न ये एहसान नहीं ये तो आप अपने अंहकार को संतुष्ट करने की बेकार कोशिश कर रहे हैं.....खैर मुझे इन सब बातों से कोई फर्क नही पड़ता"। कह मैं सोने की तैयारी करने लगी।
क्रमश:
स्वरचित
सीमा बी.