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स्त्री.... - (भाग-31)

स्त्री.......(भाग-31)

वो शाम बहुत सुंदर बीती, सोमेश जी मुझे छोड़ कर जल्दी मिलते हैं का वादा करके वापिस चले गए, कह रहे थे कि अब शायद सीधा अपनी डयूटी पर जाऊँगा।आरती अपने काम में लगी हुई थी और सब कारीगर अपने काम में.......हमेशा रेडियों धीमी आवाज़ में बजता रहता है।
कारीगर अपने अपने परिवारों की बातें भी एक दूसरे से करते रहते हैं और कई बार मैं भी उनकी बातों में शामिल हो जाती हूँ, अब तो ये मुझे अपना परिवार लगने लगा है....गुडडु भैया, अनवर चाचा, हाजी बाबा, सरोज दीदी, छोटू, मालती मौसी वगैरह वगैरह......पर काम के वक्त मैडम हूँ सबकी.......इस तरह हँसी मजाक से काम होते चले जाते हैं। गुस्सा करने की जरूरत कम ही पड़ती है। दूसरी शिफ्ट के लिए सब काम बता मैं ऊपर चली गयी....क्योंकि 6बजे के बाद हम मेनगेट बंद कर देते हैं तो कोई काम के लिए आ नहीं सकता था....सुबह की डिलिवरी की तैयारियाँ पैंकिग और फिनिशिंग हो कर शुरू करवा कर मैं ऊपर आ गयी....। तारा के हाथ की मसाला चाय पी कर फुर्ती वैसे भी आ जाती है...."दीदी सोमेश साहब तो बहुत अच्छे हैं न"!! "हाँ तारा मुझे भी अच्छे लगे। अब मैं उनको कैसी लगी ये नहीं पता मुझे कह कर मैं मुस्कुरा दी"।आप नीचे गयी थी तो मुझसे पूछ रहे थे कि मैं आपके साथ कब से हूँ, आप को क्या क्या पसंद है? अच्छा.....मुझे हैरानी हुई, पर अच्छा भी लगा कि किसी ने मेरी पसंद भी जानने की कोशिश की.....नहीं तो सबकी पसंद के हिसाब से चलते हुए जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा बिता दिया है.....एक बात परेशान कर रही थी कि विपिन जी पढे लिखे थे और स्टेटस भी था तो सोमेश जी तो डॉ. हैं, वो मुझ जैसी साधारण लड़की को कैसे पसंद करेंगे? मेरा और उनका भी तो जोड़ बेमेल ही है। ऐसी बातों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता....जो होगा अच्छा ही होगा सोच कर मैंने सोमेश जी के ख्यालों को झटक दिया क्योंकि जरूरी भी था, अभी मुझे अपना ध्यान कल के आर्डर पर और माँ पिताजी के आने की तैयारियों पर लगाना था....तारा को भी बताती चली जा रही थी कि राशन में क्या क्या ला कर रखना है...। रात को सब लिस्ट बना कर और अगले दिन जाने वाले आर्डर को चेक करके सोने चली गयी। तारा भी नीचे एक बार चाय दे आती है, तभी सोती है। लेटे लेटे याद अपने बचपन की बातें याद आ रही थी, माँ कितना डरती थी मेरे बाहर निकलने से, हर जगह राजन मन हो या न हो मेरे पीछे पीछे चलता रहता।छाया की मस्ती और मेरी उन दोनों से लड़ाई सब कुछ याद आने लगा। माँ ने मेरी शादी से पहले कितनी हिदायतें दी थी! मैंने किया भी सब वैसे, पर हुआ वो जिसकी उम्मीद किसी ने न की होगी.....माँ पता नहीं कैसे रियेक्ट करेगी? पिताजी को समझाना आसान है, पर माँ का गुस्सा याद आते ही लगा, शायद मेरी बात सुने बिना ही माँ भी मुझे ही गलत समझेगी....कोई बात नहीं जानकी तू अपनी जगह ठीक है, तो घबरा मत अपने आप को दिलासा दे कर सोने की कोशिश करने लगी.......आखिर नींद आ ही गयी और सुबह को दिल और दिमाग काफी हल्के लग रहे थे। रोज की तरह तैयार हो कर कमरे से बाहर आयी तो तारा रसोई रसोई में शायद नाश्ते की तैयारी कर रही थी, मैं उसे चाय नीचे लाने के लिए कह कर सीढियाँ उतर गयी। आर्डर बड़ा तो था ही क्लाइंट भी दूर ही था, मुंबई का ट्रैफिक तो वैसे भी हर वक्त भागता सा रहता है और अक्सर जाम लग जाता है...इसलिए जल्दी जाने का सोच कर सोई थी। क्लाइंट को भी पिछला चैक तैयार करने को कह मैं सामान रखवाने लगी, तभी सुनील भैया आ गए और उनके पीछे पीछे एक और गाड़ी। भाभी ये लो आपकी कार, कामिनी के पापा की है, 1-2 साल ही चली है अब गैरेज में ही खड़ी रहती है, तो उनसे बात की तो उन्होनें कहा अभी दे आओ, इसलिए सुबह सुबह आ गया। थैंक्यू भैया, उन्होंने कितने पैसे बताए हैं? आप लेते जाइए? भाभी वो आप खुद ही बात कर लेना,मैंने तो पूछा नही, कह कर ड्राइवर से कार लगवाने के बाद चाबी दे कर जाने लगे तो,भैया अगर ज्यादा जरूरी न हो तो 3-4 घंटे के लिए अपना ड्राइवर मुझे दे दीजिए, मुझे सामान की डिलीवरी करनी है...."आप ले जाओ, जब आप फ्री हो जाओ तो एक बार आप फोन कर लेना।मैं बता दूँगा कि इसे कहाँ भेजना है? ऑफिस या कोर्ट"! थैंक्यू भैया। भैया मुस्कुरा कर चले गए,उन्हें जल्दी थी तो मैंने भी नहीं रोका। जल्दी से चाय पी कर ड्राइवर को ले मैं चली गयी। गाड़ी में पैट्रोल डलवाने का सोचा तो उसने बताया कि कल शाम को सब चेक करवा कर पैट्रोल भी डलवा दिया था साहब ने..... कार वाकई अच्छी चल रही थी और नयी भी लग रही थी...। वापिस आने तक 3 बज ही गए थे, क्योंकि वहाँ भी सब चेक करके ही लिया जाता है, फिर चेक के लिए इंतजार उसके बाद और सैंपल्स दिखा कर आर्डर लेना। हर कोई बंसल सर से नहीं होते न जो विश्वास पर बिजनेस कर रहे हैं....खैर चेक पिछले पूरे हिसाब का था तो मूड़ अच्छा हो गया और आर्डर मिलने से ,पर इस बार टाइम ज्यादा लिया था। वापिस मुझे छोड़ कर सुनील को फोन किया तो उसने ड्राइवर को ऑफिस बुलाया था....मैंने उसे टैक्सी में जाने के लिए पैसे देने लगी तो बोला मैडम टैक्सी में ज्यादा टाइम लगेगा....मैं पास के स्टेशन से लोकल ले लूँगा, फिर भी मैंने उसे पैसे देकर कहा कि लोकल लेने के लिए ऑटो पकड़ लो तुम्हारे साहब को कहीं जाना न हो...भूख जोरो की लगी थी और मैं जानती थी की तारा भी भूखी बैठी होगी.....खाना खा कर मैंने राजन को फोन किया पूछने के लिए कि छाया भी आ रही है या नहीं तो उसने बताया कि वो भी आ रही है, बच्चे भी बहुत खुश हैं और माँ भी। तारा घर का सामान और फल सब्जियाँ ले आयी थी,
बस अब बच्चों के खाने पीने का सामान तो मैं कल खुद ही ले आऊँगी सोच कर तारा से जो बिस्तर हम इस्तेमाल नहीं कर रहे उन्हें धूप में रखने को कह दिया था। 2-3 दिन धूप में रख कर सही हो जाएँगे। माँ और छाया के लिए साडियाँ भी सोच ली थी....मैं कोई कमी नहीं छोड़ना चाहती थी अपने परिवार के आराम में.....तारा भी बहुत खुश थी कि कुछ दिन घर में रौनक होगी। मैं खुश भी थी और डरी हुई भी पर जो भी होगा, बाद में देखा जाएगा सोचने पर ही डर को हावी नहीं होने दिया, पर घबराहट होना भी स्वाभाविक था....। सुमन दीदी और कामिनी को भी फोन करके मैंने सबके आने के बारे में बताया और एक दिन समय निकालने को भी कह दिया। कामिनी नेफिर से माफी माँगी तो उसको समझाया कि तुम्हारी कोई गलती नहीं है। कामिनी के पिताजी से बात की और उनसे कार की कीमत पूछी, पर उन्होंने कहा कि पहले कुछ दिन चला लो फिर बता दूँगा। मैंने साडियाँ पहननी कम ही कर दी थी, अब मैं हर तरीके के कपड़े पहनने लगी थी, पर माँ पिताजी जब तक रहेंगे तब तक साडियाँ ही पहनूँगी सोच कर तारा के साथ सब साडियाँ आगे कर दी। आने वाले 2-3 दिन में काफी काम खत्म करना चाहती थी,जिससे मैं आराम से सबके साथ मजे कर सकूँ। दो जगह की डिलीवरी और करनी थी, उसके बाद काम एक बार बता दूँगी तो हो जाया करेगा......अपनी अलमारी लगा कर आराम करने बैठी तो सोमेश जी का फोन आ गया....अगले दिन मिलने की बात कर रहे थे तो मैंने उन्हें लंच की जगह डिनर पर मिलने को कहा तो बोले," ठीक है, कहाँ चलना चाहेंगी आप"? "सोमेश जी आपको बाहर का खाना खास पसंद नहीं है तो आप घर पर आ जाइए, इस बार मैं बनाऊँगी खाना"! "हाँ ये ठीक रहेगा, मैं भी यही सोच रहा था, फिर मैंने सोचा आप कुछ गलत न समझ लें"। "नहीं ऐसी कोई बात नहीं है, मुझे भी बाहर का खाना खास पसंद नहीं है और न ही आराम से बातें करते बनता है"। "ठीक है जानकी जी फिर मिलते हैं कल शाम को, मैं 6-7 के बीच आ जाऊँगा"। "जी बिल्कुल आइए, आप के पास टाइम हो तो आप और भी पहले आ सकते हैं"! मैंने कहा तो उधर से "ठीक है" की आवाज आयी और लगा कि जरूर मुस्कुरा रहे होंगे बोलते हुए और उनका मुस्कराता चेहरा आँखों के सामने आ गया....अगली सुबह बहुत सारे काम ले कर आयी थी।तारा को शाम के लिए जो सामान लाना था, उसे लिख कर दे दिया था। मैं एक जगह डिलीवर कर 2 बजे तक आ गयी, खाना खा कुछ देर आराम कर मैं डिनर की तैयारियों में जुट गयी।
शाही पनीर, मूंग दाल और करेले बनाने का सोचा था। थोडे़ चावल और मीठे के लिए गुलाब जामुन मँगवा लिए थे....पहले समय अलग था। खाने बनाने और फिर उसे गरम करने की भी कवायद रहती थी, अब तो घर में माइक्रोवेव ले आयी थी तो खाना तुरंत गरम हो सकता था। फिर भी सेहत का ध्यान रखते हुए इस्तेमाल कम ही करते थे। आइसक्रीम भी मंगवा ली थी, जो खाने का मन होगा वही सर्व कर देंगे....पीने के लिए नींबू पानी की तैयारी भी थी और छाछ का ऑप्शन भी था.... सलाद, पापड,चटनी और आचार। चावल और रोटी आने पर ही बनाएगें सोच लिया था......सब तैयारी कर मैं कपडे बदल कर मैं नीचे चली गयी काम देखने पर काम करते हुए भी ध्यान बाहर ही था...ठीक 6:30 उनकी कार रूकी और वो अंदर चले आए। उनको कोई जल्दी नहीं होतीये मैं देख रही थी। मेरी तरफ देख कर हल्का सा मुस्कराए और फिर कामको गौर से देखते हुए मेरे आगे आगे चल दिए.....ऐसे हैं सोमेश जी, लगा ही नही कि हमारी ये दूसरी मुलाकात थी।
क्रमश:
मौलिक एवं स्वरचित
सीमा बी.