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स्त्री.... - (भाग-35)

स्त्री......(भाग-35)

सोमेश जी चाहते थे कि उनका ड्राइवर ही हमें छोड़ आए, पर पिताजी ने मना कर दिया....क्योंकी ड्राइवर को फिर इतनी दूर वापिस आना पड़ता। राजन के साथ तारा, माँ,पिताजी और बच्चों को कार में भेज दिया। छाया और मेरे लिए टैक्सी सोमेश जी का ड्राइवर ही ले आया। घर आने तक 10 बज चुके थे। सब का पेट भरा ही था। बच्चे तो कार में ही सो गए थे। बच्चों को कमरे में सुला कर हम बड़े शादी को बारे में बातें करने लगे और काम सोचने लगे कि क्या क्या जरूरी है। पिताजी सुमन दीदी और सुनील भैया को भी बताना जरूरी है, परसो सुबह शादी पर ना भी आ पाएँ पर शाम को आने के लिए कहना जरूरी है.....मेरी बात सुन कर पिताजी ने कहा कि मैं भी वही सोच रहा हूँ, सुबह बात करते हैं उनसे। जो मंदिर उन्होंने चुना था वो बिल्कुल सेंटर में था तो बराबर दूरी थी.......माना कि उन्होंने कुछ भी लेने से मना किया है, पर फिर भी कुछ तो देना ही होगा, माँ ने पिताजी को कहा। हाँ तुम ठीक कह रही हो पर उनके पास रूपए पैसे कि कोई कमी नहीं है, तो हम उनकी बराबरी तो करेंगे नहीं। जो बन पड़ेगा वो करने से पूछे नहीं हटेगें। मैं उनकी परेशानी समझ रही थी.......पिताजी को क्या पता थी कि ये सब होगा नहीं तो वो पूरी तैयारी के साथ आते! पिताजी को गहरी सोच में देख मैंने उन्हें तसल्ली दी, माँ पिताजी आप लोग किसी भी चीज की चिंता मत कीजिए। सब हो जाएगा। बस आप लोगों का साथ और आशीर्वाद चाहिए। सोमेश जी की अगूँठी लेनी है, मिठाइयाँ, कपडे और सब कुछ कैसे होगा? माँ को चिंता हो रही थी। मैंने अपनी अल्मारी के लॉकर से पैसे निकाल कर उनके हाथ में रख दिए, ये लो माँ, कल हम सबसे पहले जा कर राजन, पिताजी और बच्चों के 2-2 जोड़ी कपड़े लेने जा रहे हैं। सोमेश जी को आने को कहेंगे जो अँगूठी उनको पसंद होगी वो ले लेंगे। फल, मिठाइयों का आर्डर दे देंगे...जहाँ से उनको पसंद होगी। तारा, माँ , मेरे और छाया के लिए हमारे पास बहुत साडियाँ हैं तो चिंता की कोई बात नहीं है। पर दीदी आपकी शादी की साड़ी या लंहगा तो लेना ही चाहिए न....छाया सब हो जाएगा, आप लोग चिंता मत कीजिए। बस खुश रहिए। पिताजी मेरी बातें ध्यान से सुन रहे थे और मुस्कुरा रहे थे। क्या हुआ पिताजी ऐसे क्या देख रहे हैं? देखा जानकी की माँ, कितनी समझदार है हमारी बिटिया! हाँ, राजू के पिताजी आप सही कह रहे हैं। जानकी ने अकेले बहुत मेहनत की है। बस मुझे एक बात की चिंता खाए जा रही है कि आगे भी बच्चे न होने की वजह से हमारी बेटी को फिर से दुख न झेलने पड़े, हमने उनसे जानकी की इस कमी पर बात भी नहीं की तो मन में डर समाया हुआ है.....पिताजी माँ की बात सुन कर कुछ देर चुप बैठे रहे, उनके चेहरे पर अलग अलग भाव आ जा रहे थे। माँ भी कुछ बोलते बोलते रूक गयी उनके चेहरे पर बढते तनाव और बदलते भाव देख कर....माँ अच्छे से जानती हैं कि ऐसे समय उनके सामने खड़े रहना ठीक नहीं, इसलिए वो रसोई में जाने लगी। जानकी की माँ तू आज तक जानकी और छाया की माँ नहीं बन पायी, बस राजन की माँ ही बनी है और बनी रहना चाहती है। ऐसा लगता है कि लड़कियों को तू बाहर सड़क से उठा कर लायी है, तभी हमेशा तू उनके साथ जरूरत से ज्यादा सख्ती करती रही और उनको दबाती रही.....तेरे लिए लड़के हमेशा सही काम करते हैं और लड़कियाँ गलत ही करती हैं.....किस गलतफहमी की शिकार है तू? माँ पिताजी की बात सुन कर चुप रह गयी। छाया ने भी बच्चों के पास जाना ही ठीक समझा और राजन वो पिताजी को देख रहा था। मैंने ऐसा कुछ तो कहा नहीं जो आप मुझे इतना कुछ कह रहे हैं, माँ हूँ तो चिंता होती है, कि कहीं फिर बेटी का घर भगवान न करे टूट जाए। तुझे पता है, इसने हमें पिछली बार अपना दुख क्यों नहीं बताया? क्योंकि ये अपनी माँ को अच्छे से जानती है और उसके ताने देने की आदत भी वो बचपन से देखती आ रही है। तुझे पता चलता तो तू उसकी तकलीफ बाद में बाँटती, पर ताने देनेे मों सबसे आगे होती,ये यकीन मुझे आज हो गया है.....!!पिताजी आप ये सब क्यों कह रहे हैं.....माँ तो अपनी बात कह रही थी ,मैंने पिताजी को चुप होने को कहा, वो तो चुप हो गए,पर माँ का रोना चालू हो गया। माँ को रोता छोड़ पिताजी कमरे में सोने चले गए। मैं और राजन माँ को चुप कराने लगे.....माँ, आपको वो सब नहीं कहना चाहिए था, जो आपने कहा। हमें खुश होना चाहिए कि दीदी को सोमेश जीजा जी जैसे अच्छे इंसान और इतना अच्छा परिवार मिल रहा है। बच्चे तो गोद भी लिए जा सकते है, फिर ये आगे की बात है, बेवजह पिताजी का इतना अच्छा मूड खराब कर दिया, राजन की बात सुन कर माँ उसकी तरफ देखने लगी। अब बाकी बातें हम कल करेंगे भाई, बहुत काम करने हैं तुझे कल, चल जाकर सो जा। मैंने उसे कमरे में भेजा और माँ कोएक बार फिर आश्वासन दिया कि सोमेश जी को सब पता है, आप चिंता मत करो। अब सब सही होगा....इसका मुझे विश्वास है, मैं उस दिन भी उन्हें सच नहीं बता पायी.....मैं सुनहरे सपने देखने के लालच में सोने की कोशिश करने लगी.....। अगली सुबह अफरा तफरी वाली थी.....सबसे पहले पिताजी को सुनील भैया से बात करायी और उन्हें शादी के बारे में बताया तो वो बहुत खुश हुए और बोले हम सब रहेंगे आपके साथ......उसके बाद नरेन जी और सुमन दीदी से बात की पिताजी ने तो उन्होंने भी वही कहा जो सुनील भैया ने कहा,सुनील भैया को चाची जी, और विपिन जी को भी डिनर पर साथ लाने को कहा तो वो बोले ठीक है...सुजाता दीदी को मैंने खुद ही फोन करके सब बताया, सोमेश जी से होटेल का पूछ कर डिनर के लिए उन्हें इंवाइट भी कर दिया....। कामिनी के पिताजी से पिताजी ने अलग से बात करके आने को कहा तो उन्होंने भी खुश हो कर आने का वादा किया...सुबह का नाश्ता और काम निपटा मैं, पिताजी, छाया और उसके बच्चों को ले राजन के साथ बाजार चले गए, माँ और तारा को घर छोड़ दिया। पिताजी और राजन के लिए सबसे पहले कपड़े लिए, फिर बच्चों के लिए कपडे और जूते भी ले लिए आखिर उनकी मौसी की शादी थी तो हक बनता ही था....। सोमेश जी को रिंग और कपडे लेने के लिए बुलाया तो उन्होंने कहा कि कपड़े वो खरीद लेंगे, अँगूठी लेने के लिए उन्होंने कुछ देर बाद अपनी अँगूठी का साइज और दुकान भी बता दी कि वहाँ से जो पसंद हो ले लाना और उन्हें पिताजी का या मेरा रैफरेंस दे देना।
दुकान थोड़ी दूर थी, उसे दुकान कहना गलत था,वो एक बड़ा सा शोरूम था। छाया अपने शैतान बच्चों के साथ अंदर जाने से हिचक रही थी, वो उनको ले कर सामने ही एक रेस्ट्रारेंट था, वहाँ बैठ गयी।बच्चों के लिए आर्डर कर दिया था कि खाते हुए कम से कम बिजी तो रहेंगे। हमने अँगूठी पसंद कर ली। सोने की सिंपल सी अँगूठी में तीन डायमंड लगे थे। काउंटर पर पहुँचे तो शायद मालिक ही बैठे थे, उन्हें मैंने बताया कि हम उनके वहाँ से आए हैं। उन्होंने नमस्ते किया और बिल तैयार करने में 10 मिनट लगेंगे कह कर हमारे लिए ठंडा लाने को कह हमें बैठने का इशारा किया।10-15 मिनट के बाद एक सेल्समेन हाथ में एक पैकेट ले कर आया और बोला मैडम ये रही आपकी रिंग......मैंने रिंग एक बार फिर देखी और काउंटर की तरफ जाने लगी तो वो बोले मैडम इस रिंग की पैमेंट साहब ने लेने से मना की है, वो कह रहे हैं कि बसंल जी ने मना किया है। मैं फिर भी उनके पास गयी, सर आप इसकी पेमेंट लीजिए प्लीज.....वो बोले नहीं, मैं आपसे नहीं ले सकता।आप उन्हें ही दीजिएगा। पिताजी ने कहा, यहाँ से चलते हैं। घर जा कर उनसे बात कर लेंगे। हम रिंग ले कर आ गए....मिठाइयों के बॉक्स हमें अगले दिन शाम को चाहिए थे तो हमने 51 बॉक्स मिठाई, एक बड़ी थाली ड्राईफूट की बनाने को कह और एडवांस पकडा कर घर आ गए। घर पहुँचे तो पता चला कि बसंल सर के घर से मेरे लिए सुबह पहनने के लिए साड़ी, मेंहदी और गहने आए थे....ये सब सामान देने मम्मी जी की जो केयर टेकर है वो आयी थी ड्राइवर के साथ.......तो माँ ने उन दोनों को शगुन के लिफाफे दिए और उन्हें चाय नाश्ता तरवा कर भेजा...साड़ी का ब्लाउज सिला हुआ नहीं था तो अब कौन सिलेगा कुछ घंटो में! सवाल ये बड़ा था। मैंने अपनी अल्मारी में ढूँढा कि मैचिंग मिल जाए, पर मेरे पास नहीं था......नीचे एक टेलर था साथ वाली बिल्डिंग में....तारा फटाफट उसके पास पूछने चली गयी। उसने डबल पैसे लिए पर रात तक ब्लाउज सिल ही दिया। रात का खाना खाने के बाद मैंने ऐसे ही मेंहदी का शगुन कर लिया दोनों हथेलियों में एक गोल सा टिक्का बना कर। नीचे कारीगरो को पता चला तो मैंने उन्हें एक दिन की छुट्टी दे दी, पर उससे अगले दिन सबको लंच के लिए 12 बजे तक आने का न्यौता दे दिया। मतलब 2 दिन की छुट्टी.....सुबह का बेसब्री से इंतजार था। राजन और पिताजी डिसाइड कर रहे थे कि परिवार वालों के लिए गिफ्ट न सही पर कुछ तो क्या दिया जाए, जिससे हमें भी लगे कि हमने कुछ किया....पिताजी आप चिंता मत कीजिए, हम सब करेंगे....। कल सुबह देना तो जरूरी नहीं है न, हम शाम को मिलेंगे तब दे देंगे। दीदी शाम को कैसे सब होगा राजन बोला ? अरे भाई, इतना परेशान मत हो सब हो जाएगा....पर दीदी आप तो मंदिर से अपने ससुराल चली जाओगी न.....राजन की बात सुन कर पिताजी बोले हाँ जानकी ठीक ही तो कह रहा है..... पिताजी आप सब लोग मंदिर से सुनील भैया के साथ वापिस घर आ जाना और राजन गाडी ले कर वहाँ चल पडे़गा, मुझे पग फेरे के लिए लेने आ जाएगा। फिर शाम को हम सब पहुँच जाएँगे होटल। हाँ ये ठीक रहेगा, नहीं तो हम यहाँ सब नहीं संभाल पाएँगे....माँ हमारी बातें सुन कर परेशान हो गयी। तब तक मैं भी परेशान हो गयी थी ये सोच कर की आने जाने में ही सब टाइम निकल जाएगा तो शॉपिंग कब करेंगे। खैर कुछ तो करेंगे ही.....दिमाग प्लानिंग कर रहा था कि कैसे बिना परेशानी के सब हो जाए.....शायद उस रात बच्चों कै सिवा कोई ठीक से नहीं सोया। मंदिर का टाइम जल्दी का था और हमें शाम की सब तैयारी कर के ही जाना था...! इसलिए 2-3 घंटे की नींद ले....बच्चो के सुबह पहनने के कपडे़ और शाम के अलग अलग रखे। पिताजी, राजन, माँ, छाया और तारा सबके शाम के कपड़े अलग एक सूटकेस तैयार कर लिया था।बच्चों को छोड़ हम सब उठ गए थे और बारी बारी से नहा कर तैयार हो रहे थे।मैं भी साड़ी और गहने पहन कर तैयार हो गयी।साडी के ऊपर से जो ओढने के लिए दुपट्टा था वो मैंने साथ के लिए रख लिया। बच्चों को नहला कर पहले दूध पिलाया, फिर उन्हें तैयार कर दिया।सुमन दीदी का फोन आया कि वो सीधा मंदिर पहुँचने वाले हैं और सुनील भैया तो 7:30बजे ही आ गए। बाकी लोग सीधा आने वाले थे।सुनील भैया ने एक पैकेट पिताजी के हाथ में पकड़ा दिया.....चाचाजी भाभी हमारे घर बहु बन कर आयी थी, पर वो कब माँ की बेटी बन गयी, हमें पता नहीं चला। माँ के जाने के बाद इन्होंने हमेशा एक माँ की तरह प्यार और बड़ी बहन की तरह साथ दिया है ये हम किसी को नहीं समझा सकते। आज मैं और सुमन उन्हें बहन की तरह विदा करना चाहते हैं, आप मना मत कीजिएगा। सुनील भैया आप दोनों रिश्ते में छोटे हो न तो मैं कैसे ले सकती हूँ। मैंने उन्हें समझाना चाहा, पर पिताजी ने कहा कोई बात नहीं जानकी, सुनील ने जो बहन भाई का रिश्ता बनाया है, वो हमेशा निभाना, फिर राजन और सुनील में कोई फर्क नहीं मेरे लिए, कह कर पैकेट रख लिया....हम सभी टाइम से तैयार हो कर सबके कपड़ो का सूटकेस भी कार में रख मंदिर की और चल दिए। हम टाइम पर मंदिर पहुँच गए और वो लोग हमसे पहले मौजूद थे। कामिनी दीदी, बच्चे और उनके पापा इधर से पहुँचे और पीछे पीछे सुमन दीदी और जीजा जी आ गए.....!
क्रमश:
मौलिक और स्वरचित
सीमा बी.