Stree - 39 books and stories free download online pdf in Hindi

स्त्री.... - (भाग-39)

स्त्री......(भाग -39)

सुबह मैं अपने टाइम पर उठ गयी तो सोमेश जी बोले इतनी जल्दी उठ कर क्या करना है, सो जाओ कुछ देर!! मेरी नींद अपने टाइम पर अपने आप खुल जाती है, तो दोबारा आएगी नहीं। आप सो जाइए, मैं फ्रेश हो जाती हूँ। मैं नहा धो कर तैयार हो गयी, तब तक सोमेश जी भी उठ गए और वॉक पर चले गए। मैं नीचे गयी तब तक 6:30 ही बजे थे। मैं मंदिर में पूजा करने चली गयी, वहाँ पूजा के लिए फूल टोकरी में ममता रख रही थी। मैं पूजा करके किचन में चली गयी। वहाँ कुक का हेल्पर चाय बनाने की तैयारी कर रहा था......तुम मुझे सामान बता दो सब, चाय मैं बना देती हूँ। आप नयी दुल्हन हैं, आराम कीजिए मैं बना लाता हूँ। क्या नाम है तुम्हारा? जी मेरा नाम किशन है? किशन तुम मुझे बता दो कि माँ और पापा कैसी चाय पीते हैं? जी वो फीकी चाय पीते हैं, आपके छोटे मालिक? वो अभी वॉक से आँएगे तो नींबू पानी शहद के साथ लेंगे। दोनो भाभी और साहब कॉफी पीते हैं सुबह उठते ही.....ठीक है किशन मैं माँ और पापा के लिए चाय बना रही हूँ, तुम दे कर आओ। मैंने चाय बना कर भेजी और तब तक दोनों भैया और भाभी की कॉफी तैयार हो गयी....वो आया तब तक तैयार कॉफी मैंने उसे दे दी। उसने झटपट ट्रै ली और चला गया। फिर मैंने अपने लिए चाय रख दी। किशन आया और नींबू पानी बनाने लगा, आप भी लॉन में चलिए, सब वहीं बैठे हैं। मैं चाय ले कर जाने लगी तो बोला, आप चलिए मैं लाता हूँ....माँ, पापा और सोमेश जी बैठे थे, मैंने माँ पापा के पैर छू कर आशीर्वाद लिया और एक चेयर पर बैठ कर चाय पीने लगी। जानकी बेटा आराम से उठा करो, माँ ने कहा। माँ मुझे सुबह जल्दी उठने की आदत है। मेरी बात सुन कर सोमेश जी बोले माँ रहने दो, अच्छी आदत है, बस कल से ये भी वॉक करेगी बाकी सब काम बाद में। पापा बोले हाँ बेटा ये ठीक है, अब तुम्हें किसी बात की चिंता नहीं करनी है, बस आराम से रहो। जी पापा ठीक है....। ममता बता रही थी कि तुमने पूजा भी कर ली, बहुत अच्छा लगा, काफी समय से तुम्हारे पापा ही कर रहे हैं, अब तुम किया करना। जी माँ,आप चिंता न करें, आज मीठे में हलवा बनाऊँ या खीर ? सोमेश जी बोले हलवा बनाओ, मुझे और माँ को हलवा पसंद है! माँ पापा तो चाय फीकी पीते हैं, फिर मीठा कैसे खाएँगे? मैंने पूछा तो पापा ने बताया कि चाय तो वैसे ही फीकी पीते हैं, पर हमें कोई ऐसी बीमारी नहीं है कि मीठा न खाएँ, तुम हलवा बनाओ.....ठीक है पापा और ब्रेकफॉस्ट में क्या बनेगा आज, जो सब खा लें। सोमेश बोला नाश्ता कुक बना लेगा, वैसे भी सबकी अलग अलग फरमाइश होगी, हम तीन लोग तो एक जैसा कर लेते हैं, आज बच्चे हैं और भाई लोग भी हैं तो तुम हलवा बना दो बस ! माँ की जगह सोमेश जी ने जवाब दिया, तो माँ बोली, बेटा सोमेश ठीक कह रहा है, फिर भी तुम्हारा मन है तो आलू के पराठे बना लो, हम तीनों और तुम्हारे दोनो जेठ भी खा लेंगे दही के साथ। दोनो बाकी सब जो कहेंगे वो बन जाएगा। पापा और सबका टिफिन भी तैयार होगा, उसके लिए कुक को सब बता दिया है और तुम भी अपना खाना ले कर जाना। मुझे तो लग रहा था कि मना करेंगे एक दो दिन काम पर जाने से, पर माँ तो मेरा हर काम आसान करती जा रही हैं। मैं किचन में आ गयी और किशन को आलू उबालने के लिए रखने को कह किचन में कहाँ क्या रखा है देखने लगी। तब तक कुक भी आ गया। शायद माँ ने उसे सब बता दिया होगा, इसलिए उसने हलवा बनाने का सारा सामान निकाल कर रख दिया। मैडम आप ही बनाएँगी या मैं बना दूँ? नहीं, मैं बना लूँगी मैंने कहा तो वो मुस्कुरा दिया।वो सबके लंच पैक करने के लिए सब्जियाँ काट रहा था और मैं हलवा बनाने में जुट गयी.....हलवा बनने तक आलू भी उबल गए, जिन्हें किशन छील रहा था। माँ ने 8 बजे नीचे बुलाया था उस हिसाब से मैं सोच रही थी कि सब आते ही होंगे ब्रेकफॉस्ट के लिए। माँ और पापा सबसे पहले डायनिंग टेबल पर आए। सोमेश जी और जेठ जेठानी भी आ गए। बस बच्चे अभी उठे नहीं थे। मैंने हलवा बाहर भिजवाया, और उबले आलुओं को मैश करके उसमें मसालें डाल कर सब तैयार करके बाहर गयी। ममता सब को सर्व कर रही थी....सब चुपचाप बैठे थे। मैंने दोनो जेठ, जेठानी के पैर छू कर गुड मार्निंग कहा....उन्होंने कहा कि आओ तुम भी बैठो, पर मैं अभी आती हूँ, कह कक किचन में आ गयी। मैॆने एक कटोरी में हलवा मंदिर में भोग के लिए रखा था। कुक ने कहा कि आप यहाँ भी भोग लगा सकती हैं, एक छोटी सी अलमारी बनी हुई थी कोने में उसमों भगवान जी की मूर्तियाँ भी थी। कुक ने बताया कि वो यहाँ पूजा करता है रोज, पर आज जल्दी जल्दी में नहीं कर पाया। मैंने वहीं भोग लगा दिया। सबके लिए आलू के पराठे बना कर मैंने बाहर भिजवा दिए तो कुक बोला, मैडम बाकी काम मैं कर लूँगा। आप भी सबके साथ बैठ कर नाश्ता कर लीजिए। मैं बाहर आ गयी और सबको सर्व करने लगी। दोनो भाभियो ने बस आधा आधा पराठा ही लिया। दोनो भैया और पापा बहुत तारीफ कर रहे थे हलवा और पराठों की। भाभियाँ भी सबकी हाँ में हाँ मिला रहीं थी। माँ और पापा ने मुझे शगुन में एक और सेट दे दिया। बड़े जेठ जेठानी ने डायमंड रिंग दी और छोटे जेठ जेठानी ने सेट दिया। ममता, कुक किशन और बाकी साफ सफाई करने वाले स्टॉफ को मैंने मुँह मीठा करने को कह दिया। कुक ने सब का लंच तैयार कर दिया था। सोमेश जी तैयार होने कमरे में आए तो मैंने पूछा, सबने मुझे गिफ्ट दिए , पर आपने नहीं दिया कुछ.....! मैं शाम को लाऊँगा तुम्हारे लिए गिफ्ट अभी एक किस से काम चला लो कह कर मेरे माथे को चूम लिया। तुम वर्कशॉप के लिए तैयार हो जाओ, पहले ड्राइवर मुझे छोड़ तुम्हे ले जाएगा और जब वापिस आने लगो तो ड्राइवर होगा ही, मैं 6 बजे तक फ्रा हो जाऊँगा, तुम तब तक फ्री हो जाओ तो तुम मुझे लेने आ जाना....मैं वर्कशॉप पर जाने को तैयार हो गयी। मैं और सोमेश जी एक साथ काम के लिए निकले....पर निकलने से पहले माँ से पूछ लिया क्योंकि जेठानियाँ और बच्चे अभी घर पर थे, पर माँ ने कहा कोई बात नहीं सब घर के ही हैं, तुम जाओ यहाँ की फिक्र मत करो, कोई कुछ नहीं कहेगा। उनके ऐसे कहने से ही बड़ी राहत मिल गयी थी....वर्कशॉप पहुँची तो सब कुछ वैसा ही चल रहा था, जैसे बता कर गयी थी। तारा के पास बहुत सारे सवाल थे और मेरे पास उसके सब सवालों के जवाब थे तो बस काम निपटा कर हम दोनो नें खूब बातें की.....तारा बहुत खुश दिख रही थी, मुझे खुश देख कर। मैंने उसके लिए भी खाना पैक करा लिया था।तकरीबन दस दिन मुझे रोज वर्कशॉप जाना ही पड़ा...पेंडिग डिलीवरीज निपटा कर मैंने और आर्डर उनसे नहीं लिया क्योंकि काम तो जरूरी था, पर मुझे अब परिवार को भी देखना था.....पर मैं कहाँ जानती थी की मेरे ससुर जी ने पहले ही सब कुछ सोच रखा था, हमेशा मुझे रास्ता दिखाने वाले बसंल सर अब ससुर बन कर भी मेरे साथ पहले जैसे ही थे।उन्होंने अपने शोरूम का एक फ्लोर जिसे स्टोर की तरह इस्तेमाल कर रहे थे, उसे मेरी वर्कशॉप में बदल दिया था। मुझे जब पता चला तो मैं हैरान और खुश दोनो हो गयी....क्योंकि वहाँ जाने में ज्यादा टाइम नहीं लगेगा। मैंने अपने कारीगरो से बात की तो वो तैयार हो गए, पर अब मैंने एक ही शिफ्ट में सब को बुलाना शुरू करना था क्योंकि अब मैं या तारा तो वहाँ नही हो सकते थे। महिला कारीगर जिन्हें पुरानी वर्कशॉप नजदीक थी, उन्होंने मना कर दिया। अब मेरे पास 20 लोग थे और काम करना मुश्किल नहीं था। मुकेश और आरती को परेशानी नहीं थी,ये मेरे लिए अच्छा था, क्योंकि मैं चाहती थी कि वो लोग भी मेरे साथ साथ तरक्की करें......कामिनी के पापा से जो कार ली थी, वो हम ले आए थे। मुझे कार चलाना जो सीखना था। वो महीना खत्म होते होते हमनें शिफ्ट कर लिया। उस महीने की पूरी सैलरी दे कर हमने 10 दिन उन्हें काम से छुट्टी दे दी और हम घूमने चले गए। शिमला घूम कर आए थे हम उस साल। बहुत मजे किए थे। अब तक का सबसे अच्छा टाइम बिताया था मैंने वहाँ पर ! सोमेश जी जैसे इंसान हो तो हर सफर खूबसूरत बन सकता है। दिन बीत रहे थे और हम एक दूसरे को अच्छी तरह से समझने लगे थे। घूमने जाने से पहले तारा को माँ पापा से मिला दिया था, उन्होंने तारा को खुशी खुशी रख लिया। मैं भी तारा को माँ का ख्याल रखना कह कर गयी थी.....10 दिन बिता कर हम जब घर पहुँचे तो माँ भी तारा की तारीफ करती जा रही थीं.....तारा को सर्वेंट क्वॉटर में रहने के लिए एक कमरा दे दिया था। पुरानी वर्कशॉप में जो ऊपर मेरा सामान था, उसमें से तारा के कमरे में सोमेश जी ने बैड और टी वी लगा दिया था और बाकी जो भी सामान यूज का था, वो बाकी नौकरों को दे दिया था जो सबसे अच्छा लगा मुझे।आगे के तीन महीनों मे सब सेट हो गया था। अब जो भी बना रहे थे, वो सब एक काऊंटर पर वीवर्स नाम लिखवा दिया था....बस अब अपने शोरूम के लिए मैं काम कर रही थी और काम पहले से कहीं ज्यादा हो गया था। क्योंकि हम कस्टमर के आर्डर ले कर भी साड़ी, लंहगे सब तैयार करने लग गए थे। पापा बहुत खुश थे। मैं दिन में एक बार एक दो घंटो के लिए चली जाती थी। बाकी काम मुकेश और आरती संभाल रहे थे....। इस बीच हम सोमेश जी के दोनो भाइयों के घर बारी बारी डिनर पर गए.....सब को धीरे धीरे जान रही थी। सुमन दीदी और सुनील भैया ने भी हमें अपने घर बुलाया था....सबसे मिल कर बहुत अच्छा लगा था । कामिनी ने बताया कि सुधीर बाबू कुछ दिन पहले आए थे अपनी फैमिली के साथ। मैंने कोई जवाब नहीं दिया। मुझे कुछ भी जानने की न तो जरूरत थी और न ही कोई उत्सुकता। मैं अपनी दुनिया में बहुत खुश थी....। राजन से और माँ पिताजी सबसे बात हो जाती थी। मैं न करती तो सोमेश जी ही हालचाल पूछ लेते थे। मैंने कामिनी के पिताजी से कार के पैसे पूछे तो उन्होंने मना कर दिया। फिर मैं कुछ न कह पायी......मेरे साथ पूरा घर खुशी से नाच उठा, जब पता चला कि मैं माँ बनने वाली हूँ....घर में खुशियाँ ही खुशियाँ बिखरी सी दिखती थी....मेरे लिए तो दो माँए हमेशा तैयार रहती देखभाल के लिए। एक माँ कम थी जो तारा भी उठते बैठते ध्यान रखती थी मेरा....!! माँ पापा रोज कोई न कोई अपनी योजनाएँ बनाते और पसंद न आने पर फिर कुछ और सोचने बैठ जाते। सोमेश जी चाहते थे कि मैं माँ को भी फोन करके बता दूँ, पर मैं नहीं बताना चाहती थी। बच्चा जब इस दुनिया में आ जाएगा तब उन्हें सरप्राइज देने का सोचा था। मैं माँ कैसे रिएक्ट करेगी यही सोच सोच कर मन ही मन खुश होती रहती थी। मोहन और आरती ने काम को बहुत अच्छे से संभाल लिया था। मैं तो बस उन्हें डिजाइन्स बता और रंग बात देती थी। वो हर काम संभाल रहे थे कुशलता से तो मुझे भी चिंता कम ही थी, पर काम को सिर्फ उन पर छोड़ देने का मन नहीं हुआ। मैंने सही समय पर बेटे को जन्म दिया.....उस दिन मुझे लगा कि मैं दुनिया की सबसे अमीर और खुश किस्मत हूँ। मेरे सब सपने भगवान ने पूरे कर दिए थे। मेरी तपस्या के फल थे सोमेश और हमारा बेटा आशुतोष। माँ और पापा तो थकते ही नहीं थे उसको गोद में उठा कर बैठे बैठे....सोमेश जी ने बताया कि दोनो भाभियों की डिलीवरी हर बार उनके मायके में हुई और फिर सीधा वो अपने घर चली जाती तो माँ पापा को मौका कम ही मिला बच्चों को खिलाने का। बेटे के नामकरण पर सुनील, सुमन दीदी और कामिनी की चाची सब को बुलाया था सोमेश जी ने। सोमेश जी ने राजन और पिताजी को फोन करके खुशखबरी दी और फंक्शन पर आने को कहा।सब लोग आए थे। माँ, राजन और पिताजी। छाया के ससुर जी बीमार थे तो वो लोग नहीं आए थे। पिताजी अपने नाती के लिए सोने के कड़े,चेन और लॉकेट लाए थे और कपड़ो के लिए कैश दिया था। इस बार सोमेश जी ने मना नहीं किया। विपिन और चाची की तरह माँ भी मुझसे नजरें मिलाने से बच रहे थे.....मैं इतनी खुश थी कि सबको माफ कर दिया था....पिताजी बोले ये तो बिल्कुल जानकी की तरह दिख रहा है! इधर माँ पापा तो इतने खुश थे कि समझ ही नहीं पा रहे थे कि क्या कर दे। राजन, माँ और पिताजी यहाँ से सीधा दिल्ली जाने वाले थे तो उनकी फ्लाइट की टिकट अगले दिन की बुक थी....। माँ पापा ने सबको बहुत सारे गिफ्टस दे कर विदा किया। माँ ने सुमन दीदी को जाते जाते पूछ ही लिया
बिटिया सुधीर बाबू ने जानकी को बच्चे न होने के लिए छोड दिया था, तो अब क्या कहोगे? सच तो सब के सामने है। मैंने भी अपनी बेटी से सच जानने की बजाय आप लोगो की बात को सच मान कर ताने दिए और वो सब सहती रही। मैं सब सुन रही थी और शायद सुनील भैया का ध्यान भी वहीं था। हाँ आँटी जी हम दोनो को भी समझ नहीं आ रहा कि भाई साहब ने झूठ क्यों बोला। भाभी ने भी कभी कुछ नही कहा तो हम भी उतना ही जानते हैं,जितना आप को बताया था। मुझे बीच में बोलना पड़ा, माँ आप अब इन दोनों को क्यों कुछ बोल रही हैं? आपको अपनी बेटी पर कभी यकीन नहीं था तो मैंने सफाई देना जरूरी नहीं समझा, अब इस तरह की बात न ही करो तो अच्छा है। माँ चुप हो गयी। उस दिन माँ के पास भी जवाब कहाँ था!! कभी कभी मुझे ऐसा लगता कि मैं कहीं इतना सुंदर सपना तो नहीं देख रही......सच में सोमेश जी और उनका इतना अच्छा परिवार जो अब मेरा भी है, मिल जाना किसी खजाना मिल जाने से कम नही है।
मैं अब सम्पूर्ण स्त्री हूँ, इसका एहसास ही बहुत करिश्माई रहा मेरे लिए.......।
क्रमश:
मौलिक एवं स्वरचित
सीमा बी.