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Rewind ज़िंदगी - उपसंहार - अंतिम भाग

माधव और कीर्ति ने आगे चल के शादी तो नहीं की पर दुनिया की नज़र में दोनों एक दूसरे के साथ पति पत्नी की तरह ही रहे। जब दो दिल जुड़ चुके थे तो फिर शादी के बंधन में बंधने की उन दोनों को कोई जरूरत नहीं थी। कुछ महीनों बाद दोनों I.V.F. सेंटर गए। वहां पर दोनों के रिपोर्ट्स कराए गए। सभी रिपोर्ट्स नॉर्मल थे।
फिर दोनों के साथ I.V.F. की पूरी प्रोसेस की गई। और कुछ महीनों की मेहनत के बाद कीर्ति ने गर्भ धारण कर लिया। इस बात से दोनों खुश थे। उनकी खुशियों की कोई सीमा नहीं थी। इन सब में ये दोनों भूल गए थे कि कीर्ति के पास वक़्त कम था। डॉक्टर से उन लोगों ने सलाह ली, कीर्ति के लिवर प्रॉब्लम की वज़ह से उसके गर्भ को नुकसान होने के चांस बहुत ही कम थे। उससे कीर्ति की भी जान को कोई खतरा नहीं था। डर सिर्फ इस बात का था कि लिवर के आसपास जो डेमेज कोशिकाएं थी वो बढ़ती जा रही थी। ट्रांसप्लांट के बाद ये 80% लोगों को ये दिक्कत आ सकती है।
“कितना वक़्त है मेरे पास?” कीर्ति ने माधव से पूछा।
“डॉक्टर ने कुछ साफ-साफ नहीं बताया, पर तू चिंता मत कर तुझे कुछ होने नहीं दूंगा मैं।”
“मुझे मेरी नहीं अपने होने वाले बच्चे की चिंता है, उसके इस दुनिया में आने से पहले मैं इस दुनिया को नहीं छोड़ना चाहती।” कीर्ति ने कहा।
“उसे या तुझे, किसी को कुछ नहीं होगा तू बस चिंता मत कर।”
माधव ने दिलासा तो दे दिया पर उसे ख़ुद अपनी बात पर भरोसा नहीं था। अब सब कुछ भगवान और वक़्त के भरोसे पर था।

“2 महीने मैक्सिमम! उससे ज़्यादा नहीं जी पाएंगी।” डॉक्टर ने कहा।
माधव ये सुनकर लगभग गिरते गिरते बचा। अभी कीर्ति के गर्भ का 5वां महीना चल रहा था और उसको 4 महीने बाकी थे पर कीर्ति के ज़िंदगी के सिर्फ 2 महीने। माधव ने फिर भी हार नहीं मानी और ये बात उसने कीर्ति को भी नहीं बताई। भगवान कई बार इतना क्रूर क्यों हो जाता है ये सोचकर माधव परेशान जरूर था, पर उसने इस चिंता की लकीर को कभी कीर्ति के सामने नहीं आने दिया।
भगवान इतना भी क्रूर नहीं होता बस हम अपने हालात के लिए भगवान को दोषी मान लेते है। एक दिन कीर्ति को बहुत ही दर्द हुआ उसे तुरंत हॉस्पिटल ले जाया गया। माधव को ये बात समझ नहीं आ रही थी कि ये दर्द लिवर की वज़ह से है या प्रेग्नेंसी की वज़ह से।
“डिलीवरी का टाइम आ गया है, हमें तुरंत ऑपरेशन करना होगा।” डॉक्टर ने कहा।
“पर अभी तो सिर्फ 7 महीने हुए है!” माधव ने कहा।
“I.V.F. में ऐसा होता है, वक़्त से पहले भी डिलीवरी हो जाती है।” डॉक्टर ने कहा।
“कीर्ति की जान को खतरा तो नहीं है ना?” माधव ने पूछा।
“कुछ कह नहीं सकते।” इतना कहकर डॉक्टर ऑपरेशन थिएटर में चले गए। दूसरी तरफ माधव भगवान को पूजने लगा। कुछ देर बाद उसे बच्चे के रोने की आवाज़ सुनाई दी।
“मुबारक हो आपको जुड़वा बच्चे हुए है, एक लड़का और एक लड़की। दोनों एक दम स्वस्थ है।” डॉक्टर ने कहा।
“और कीर्ति?” माधव ने पूछा।
“अफ़सोस उनके पास ज़्यादा वक़्त नहीं है। उनका बहुत सारा खून बह गया है। हम उन्हें अब नहीं बचा सकते। वो आपसे आखिरी बार मिलना चाहती है।” डॉक्टर ने कहा।
माधव बिना एक पल गंवाए कीर्ति के पास पहुंचा, उसने देखा तो कीर्ति के पास दोनों बच्चे थे, और कीर्ति के चेहरे पर मुस्कान। ये देख कर माधव अपने आप को रोक नहीं पाया और रोने लगा।
“रो क्यों रहा है पागल? ये तो खुश होने का वक़्त है। अच्छा मैं मर रही हूं इसीलिए? ये तो एक दिन होना ही था।” कीर्ति ने कहा।
“आप मत बोलिए मेडम आप का बहुत खून बह गया है, आपकी धड़कन भी तेज है। आपको कभी भी कुछ भी हो सकता है।” नर्स ने कहा।
“तुझे पता था तू मरने वाली है? ये जानते हुए भी तू मुस्करा रही है?”
“मुझे अपनी ज़िंदगी से कोई शिकायत नहीं है। मुझे जो चाहिए था वो सब कुछ मिला है मुझे और जो नहीं मिल पाया था वो तूने मुझे दिला दिया। अब मैं ख़ुशी से इस दुनिया से अलविदा लेना चाहती हूं। हां अपने बच्चों का ध्यान रखना और उनको भी यहीं सिखाना जो तूने मुझे सिखाया, उनसे कहना सिर्फ तेरी वज़ह से उनकी माँ अपने चेहरे पर मुस्कान लिए इस दुनिया को छोड़कर गई थी।” कीर्ति ने कहा।
नर्स ने उसे फिर से चुप कराया। कीर्ति ने इशारे से दोनों बच्चों को गोद में लेने को कहा। माधव ने पहले ख़ुद उन दोनों को गोद में लिया और फिर कीर्ति को दिया। वो अनुभूति ही कुछ और होती है जब आप अपनी औलाद को सीने से लगाते है। माधव के आँखों से आंसू रोके नहीं रुक रहे थे।
“माधव एक प्रोमिस कर वरना में ख़ुशी से नहीं जा पाऊंगी। तू मेरे बिना खुश रहेगा और इन बच्चों की भी अच्छे से देखभाल करेगा और ख़ुद की भी। प्रोमिस?” कीर्ति ने कहा।
“प्रोमिस!” माधव ने कहा।
“तेरी लिस्ट में से एक ख्वाहिश अभी भी बाकी है, माधव! मैंने तेरी लिस्ट में देखा था पर तू मुझे बोल नहीं पाया, पर वो मेरी लिस्ट में नहीं थी पर मेरे दिल में ये ख्वाहिश जरूर थी।” कीर्ति ने कहा।
“वो क्या?”
“कीस! पहली और आखिरी बार माधव! कीस दे मुझे।” कीर्ति ने कहा।
माधव ने एक पल भी गंवाए बिना कीर्ति को कीस किया और वो कोई ऐसी वैसी कीस नहीं थी। माधव ने कीर्ति के माथे पर पूरे प्यार से चूमा था। जब वो कीर्ति से दूर हुआ तो वो मुस्कान के साथ इस दुनिया को छोड़ चुकी थी। माधव बस यहीं सोच कर रो रहा था अब कीर्ति के साथ बिताई ज़िंदगी को वो कभी भी Rewind नहीं कर पायेगा। कीर्ति तो चली गई पर अब उसकी परछाई के तौर पर दोनों बच्चे थे। माधव ने उनकी ओर देखा और अपने आंसू पोंछते हुए सोचा कि अब यहीं दोनों इसकी पूरी दुनिया है। कीर्ति को उसने जो वादा किया था वो उसे हर हाल में निभाना था। माधव ने उन दोनों का नाम रखा, उज्ज्वल और उन्नति।



THE END

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✍️ Anil Patel (Bunny)