Andhera Kona - 14 books and stories free download online pdf in Hindi अंधेरा कोना - 14 - साये का साया 2 (2) 1.6k 4.1k मैं राजीव शुक्ल, इंकम टेक्स डिपार्टमेन्ट मे ऑफिसर हू, आपने पिछले दिनों में मेरी कहानी सुनी, मैं अनंतगढ़ शहर मे सिर्फ 6 महीने के लिए आया था, मुजे एक काले साए का अनुभव भी हुआ, लेकिन अब मैं मेरे परिवार को इधर लाना चाहता था, मैं मेरी पत्नी सुजाता और मेरे 6 साल की बेटी खुशी को इधर बुलवा लिया l अभी भी मुजे वो साया दिखता था, साये वाली बात मैंने मेरे घरवालों को नहीं बताई थी क्युकी मेरी पत्नी को दिल की बीमारी है और खामखा वे डर जाते l मेरी पत्नी सुजाता और मेरी बेटी खुशी हम तीनों घर मे शांति से रहते थे, वो साया मेरी बहुत मदद करता था, वो हमेशा मुजे मुसीबत के वक़्त मुजे बचाता था l एक दिन की बात है, मैं दोपहर को ऑफिस से घर आया, दरअसल मैं काम के पेपर लेने के लिए सिर्फ 15 - 20 मिनट के लिए आया था लेकिन मैंने घर आकर देखा कि नजदीक आए एक घर मे कोई रहने आया था l मैं जब अपने इलाके मे नया था तब वहा कोई नहीं था सब घर एक दूसरे से दूर थे, लेकिन अभी एक दो घर मे कुछ परिवार रहने आए थे, सिर्फ एक ही घर खाली था लेकिन अब उसमे भी कोई रहने आया था l मैंने ध्यान से देखा तो वो एक 75-80 साल के बीच की उम्र वाला एक बुढ़ा इंसान था, उसके बाल लंबे थे और चहरे पे मूँछ थी, उसका सिर भी बड़ा था, ईन शॉर्ट वो थोड़ा थोड़ा फिजिसिस्ट(Physicist) अल्बर्ट आइंस्टाइन जैसा दिखता था l मैंने उसे देखा और फिर वापस ऑफिस चला गया, शाम को घर आने के बाद सुजाता ने पानी दिया और फिर बाते शुरू की : सुजाता : राजीव, वो नए बुजुर्ग रहने आए है न, वो भी इन्कम टेक्स डिपार्टमेन्ट मे ही थे l मैं : तुम्हें कैसे पता? सुजाता : अरे उसके बगल मे मीना रहती हैं न उन्होंने बताया l मैं : वाह ये तो अच्छी बात है, अगर दिखे तो मिलेंगे शाम को l सुजाता : हाँ, सही रहेगा l मुजे खुशी हुई कि कोई नया रहने आया, अब हमारा मोहल्ला धीरे धीरे बड़ा हो रहा था, लोग रहने के लिए आने लगे थे l उस दिन शाम को मैं और सुजाता वॉक करें के लिए निकले, खुशी के ऑनलाइन क्लास चल रहे थे, तभी हमने उस बूढे आदमी को रास्ते पे खड़े देखा, उसने हमको देखा और स्माईल दी, हमने भी स्माईल देकर बाते शुरू की, उसने अपना नाम नरेश कुमार बताया : नरेश : हैलो जी, कैसे हो आप? हम : बढ़िया है अंकल जी l नरेश : हम्म सही है, मैं इधर मकान नंबर 18 मे रहने आया हू l आप कहा रहते हो? मैं : हम मकान नंबर 21 मे रहते हैं l नरेश : अरे वाह, फिर तो हम पड़ोसी हुए!!! सुजाता : चलिए न अंकल हमारे घर, चाय पीते है l नरेश : नहीं नहीं, अभी नहीं फिर कभी आऊंगा, अभी तो घर का काम करना है, थोड़ा सामान सेट करना बाकी है l मैं : मदद चाहिए तो हम आए? नरेश(स्माईल देकर) : नो डियर, थैंक्स अ लॉट! हम लोग वहा से वॉक करके घर को वापिस आ गए, एक दिन नरेश जी के घर को मैं गया था, तभी मुजे पता चला कि उन्हें चित्र बनाने का शौक है, उनके घर मे उनके द्वारा बनाई गई कई चित्र मौजूद हैं, उनसे बात कर रहा था तभी उनकी बात सुनकर मैं चौंक उठा l मैं : ये पेंटिंग कब बनाई आपने? नरेश : अरे ये तो बहुत पुरानी है डियर, सभी 30-40 साल पुरानी है l मैं : वाह अच्छा शौक है आपका l नरेश : अब उम्र हो चुकी है इसलिए बना नहीं पाता हूं, अखिर 770 साल का जो ठहरा, ओह!! सॉरी सॉरी,, 77 साल का जो ठहरा!! वो उन्होंने मज़ाक किया था, लेकिन बड़ा ही अजीब सा मज़ाक करते थे वो, कभी कहते थे कि 1857 के टाइम मे भी वो थे, कभी कहते थे कि अकबर को भी उन्होंने देखा है, मौहल्ले के लोग उसे पागल अल्बर्ट कहते थे l मैं भी उससे बहुत कम बात करता था l एक दिन रात को कुछ अजीब सा हुआ हमारे साथ l हम तीनों सोए हुए थे कि अचानक रात को खुशी की नींद खुली, उसे मच्छर परेशान कर रहे थे, तभी उसने अंधेरे में कुछ देखा और वो चिल्लाने लगी, खुशी : मम्मी, पापा उठो कोई बैठा है उधर, टेबल पे l हम दोनों उठ गए, कौन है उधर? एसा करके हम दोनों उससे पूछने लगे l खुशी : उधर कोई बैठा है और पेंटिंग बना रहा है l हमने उधर देखा तो उधर कोई नहीं था, हमने उसे ये कहकर सुला दिया कि उसे कोई बुरा सपना आया होगा l लेकिन अब मुजे उस नरेश पर शक हो रहा था, मुजे वो असमान्य लगने लगा था, मुजे लगता था कि या तो वो पागल है या फिर कोई चोर l एक दिन सुबह जब मैं ऑफिस जा रहा था तब उसने मुजे जबरदस्ती अपने पास बिठा लिया और बाते करने लगा, मैं उसे मना करने लगा लेकिन फिर भी उसने बिठा कर रखा, मैं गुस्सा होकर निकल गया, ऑफिस जा कर पता चला कि कुछ गुंडे आए थे और मेरे बारेमे पूछ रहे थे, उनके पास हथियार थे और मुजे मारना चाहते थे l मैं लेट हुआ इसलिए बच गया, तब से मुजे प्रोटेक्शन के लिए गन दी गई है l मैं एक ईमानदार ऑफिसर था कभी भी लांच लेना मुजे अच्छा नहीं लगता था इसलिए एसी मुसीबतें मेरे जीवन में आई थी l लेकिन अब धीरे धीरे सब ठीक हो गया था वो गुंडे एक अमीर आदमी ने मेरे लिए भेजे थे, जिसके घर पर हमने रैड की थी, उसको पुलिस ने धर-दबोचा और वो सारे गुंडों को भी, अब मुजे किसीसे कोई खतरा नहीं था सिर्फ ये ही एक शख्स था जिससे मुजे और मेरे परिवार को खतरा था l एक दिन नरेश मेरे घर आया, मेरे घर पे कोई नहीं था खुशी और सुजाता दोनों बार गए थे, मैं उधर न्युज चैनल देख रहा था, उसे देख मैंने बे - मन से वेलकम किया l उसके चहरे पर अजीब सी हंसी थी, . उसने मेरे हाथ में कुछ पेन्टिंग्स दिए, मैं उसे देखकर चौंक उठा, ये वही पेंटिंग्स थे जो मेरी लाइफ से जुड़े हुए थे, ये और कुछ नहीं ब्लकि मेरे और उस काले साए के बने हुए चित्र थे l मैं घबरा गया, मैंने पूछा मैं : कौन हो तुम? और ये सब के बारेमे तुम्हें कैसे पता? नरेश : जानता हूं कि मैं पसंद नहीं हू तुम्हें, जानता हू कि मुझ पर शक हो रहा है तुम्हें l लेकिन, तुम्हें बताना चाहूँगा कि मैं वहीं हू जो तुम सोच रहे हो l मेरी धड़कन धीरे धीरे तेज होने लगी थी l नरेश : मैं वहीं अंधेरे का काला साया हू जो तुम्हें दिखता आया है l उसका ये वाक्य सुनकर मैं ठंडा सा हो गया l उसके चहरे पर अभी भी वो मुस्कान थी l उसने आगे कहा, काला साया : तुम्हारे घरवालों पर भी खतरा था, तुम लोग सायों से डरते हो इसलिए इंसान बनकर आया मैं l लेकिन एक बात समझ लो बेटे, मैं तुम लोगों को मारने नहीं ब्लकि बचाने आया था l तुम्हें ये लगने लगा कि मैं कोई पागल इंसान हू इसलिए तुमने मुझसे बात करना बंद कर दिया लेकिन उस दिन रात को तुम्हारी बेटी को मैं ही दिखा था, तुम्हारी बेटी को उठाया भी मैंने ही था, एसा करने की वजह तुम्हारी पत्नी का स्वास्थ्य था l तुम्हारी पत्नी के दिल की धड़कन कम हो रही थी इसलिए मैंने सबको उठाकर उसे फिर से सही किया l और उस दिन मैंने तुम्हें इसीलिए बैठाकर रखा क्युकी तुम पर उस गुंडों की नजर थी वो तुम्हें रास्ते में ही मारने वाले थे l मैं(रोते हुए) : शु.. श...शु शुक्रिया, बहुत बहुत शुक्रिया आपका l मैं उसके पैर पड़ गया, उन्होंने मुजे उठाया और बिठाया, फिर मैंने उससे पूछा मैं : मैंने सुना है कि आप 50 साल की उम्र में चल बसे थे आपके साथ एसा क्या हुआ था? काला साया : मैं एक समाज़ सेवक था, अछूत प्रथा और जातिवाद मिटाना चाहता था और गरीबो की सेवा करना ही मेरी जिंदगी थी, ये उस ज़माने की बात है जब हुमायूं राज करते थे l यही, इसी जमीन पर मेरा गांव हुआ करता था, गांव मे एक बहुत ही बुरा ज़मींदार था, उसे मेरी ये सारी बाते पसंद नहीं थी, उसे लगता था कि मैं गाँव का मुखिया बनना चाहता हूं इसलिए एक दिन उसने कुछ लोगों को भेजकर मुजे मरवा दिया l मैं रो रहा था, उन्होंने आगे कहा तुम बहुत ही अच्छे इंसान हो और तुम्हारी पत्नी भी बहुत अच्छी है, यहा के कुछ और लोग भी अच्छे है, जैसे कि वो इंसान जिसने तुम्हें मेरे बारेमे बताया था l मैं उठकर उसे दण्डवत करने लगा, मेरी आँखों से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे, मैं : हे भगवन्, आप से विनती है कि भले ही मेरी जान ना बचाए, किन्तु कभी मेरा या मेरे परिवार का साथ मत छोड़ना l आप मेरे सभी जन्मों मे मेरे साथ रहना l काला साया : नहीं बेटे, मैं तुम्हें वादा करता हू कि जबतक अच्छाई का साथ दोगे मैं तुम्हारे साथ रहूँगा l उस वक़्त मेरे घर का माहौल ही कुछ अलग था मुजे एसा लग रहा कि मैं सच मे हुमायूं के समय मे पहुच गया हू और मानो कि वो काला साया मेरा दोस्त हो l अचानक मेरे दिमाग में एक प्रश्न आया, मैं : फिर उस ज़मींदार का क्या हुआ? काला साया : बुरे काम का बुरा नतीज़ा, उसी साल बारिश की मौसम में उसपर बिजली गिरी और उसकी मौत हो गई l.... ‹ Previous Chapterअंधेरा कोना - 13 - ऑफिस की लिफ्ट › Next Chapterअंधेरा कोना - 15 - श्मशान का रास्ता Download Our App More Interesting Options Hindi Short Stories Hindi Spiritual Stories Hindi Fiction Stories Hindi Motivational Stories Hindi Classic Stories Hindi Children Stories Hindi Comedy stories Hindi Magazine Hindi Poems Hindi Travel stories Hindi Women Focused Hindi Drama Hindi Love Stories Hindi Detective stories Hindi Moral Stories Hindi Adventure Stories Hindi Human Science Hindi Philosophy Hindi Health Hindi Biography Hindi Cooking Recipe Hindi Letter Hindi Horror Stories Hindi Film Reviews Hindi Mythological Stories Hindi Book Reviews Hindi Thriller Hindi Science-Fiction Hindi Business Hindi Sports Hindi Animals Hindi Astrology Hindi Science Hindi Anything Rahul Narmade ¬ चमकार ¬ Follow Novel by Rahul Narmade ¬ चमकार ¬ in Hindi Horror Stories Total Episodes : 20 Share NEW REALESED Fiction Stories परछाईया - भाग 1 Dr.Chandni Agravat Film Reviews ऐ वतन मेरे वतन फिल्म रिव्यू Mahendra Sharma Moral Stories खलनायक कौन ? 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