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ग्लोबल विलेज

ग्लोबल विलेज

गाँधीजी के आर्थिक स्वराज का सपना अब साम्राज्यवाद की गोद में खेल रहा है। हमें बताया जा रहा है कि इस देश की समस्याएँ साम्राज्यवाद ही हल कर सकता है। क्योंकि 21 वीं सदी में साम्राज्यवाद ने मानवीय चेहरा प्राप्त कर लिया है। पूँजीवाद की विश्व विजय को वैश्वीकरण कहा जा रहा है इसका नेतृत्व जी-8 के देश कर रहे है, इन देशों का सिरमौर संयुक्त राज्य अमेरिका है। विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष और विश्व व्यापार संगठन के जरिये जी-8 के देश पूरे विश्व में मुक्त विचरण (व्यापार) की सुविधा के लिए दबाव बना रहे है, विदेशी पूँजी, विदेशी तकनीक, विदेशी कर्ज और विदेशी वस्तुएँ भारत को कुछ ही वर्षो में जापान बना देगी और फ़िर अमेरिका, बस उन्हें थोडी सुविधाएँ दीजिए, उनकी सलाह (शर्ते) मानिए प्रतिबन्ध हटा लीजिए फ़िर देखिए भारत स्वर्ग की सीढियाँ चढने लगेगा इस ग्लोबल विलेज में सबके लिए सुख-सुविधा होगी, गरीबी, बेरोजगारी व अभाव विश्व के नक्शे से मिट जायेंगे एक नयी सभ्यता करवट लेगी। मुक्त बाजार के पैरोकारों का यह सपना सचमुच पूरा होने वाला है, बस इनका मार्च मत रोकिए।

लेकिन हमारी जी-8 के देशों से एक ही विनती है कि हमने तो प्रतिबंध हटा ही लिए है और बाकी बचे भी आज नहीं तो कल हटा ही लेंगे, लेकिन आप भी तो अपने देश में हमारे प्रवेश पर लगे प्रतिबंध हटाएँ, श्रम को भी तो मुक्त विचरण करने दें, फ़िर देखते हैं विश्वविजयी तिरंगा प्यारा कहाँ-कहाँ नहीं फ़हराता। तब 2 अक्टूबर के दिन आर्थिक स्वराज्य का सपना हम भारत में नहीं जी-8 के देशों मे देखेंगे। आमीन्।

उदारह्दय

आप बहुत उदार है, इसलिए आपका समय उदारवादी कहलाता है आप उदार है निजी हितों के लिए, निजी लाभ के लिए। तमाम प्रतिबन्ध हटाओ कि निजी क्षेत्र विस्तार चाहता है, कि बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ अपना साम्राज्य विस्तार चाहती है। अब सरकार हमारी नहीं रह गई, यह तो चेम्बर आँफ़ कामर्स एवं ईंडस्ट्रीज, बहुराष्ट्रीय निगमों और उनकी वकालत करने वाली अन्तराष्ट्रीय संस्थाओं की हो गई है। आपके वित्तमंत्री अपनी नीतियों के अनुमोदन के लिए उद्योगपतियों की संस्थाओं पर कितने निर्भर है! बार-बार उनसे बैठके की जाती है, उन्हें समझाया जाता है बल्कि उनसे समझा जाता है, किसानों-मजदूरों के साथ बैठके करते है? उनसे अपनी नीतियों का अनुमोदन करवाते हैं? मजदूर किसान क्या जाने! वे तो निपट अपढ और अज्ञानी हैं। क्या उद्योगपतियों को अपने हित की नीतियां मनवाने के लिये किसान-मजदूर की तरह सड़क पर उतरना पड्ता है? क्या कभी उद्योगपतियों व कोर्पोरेट घरानों पर लाठी-गोली चली?

जब भी कुल्हाडी गिरनी होती है इन जैसे गरीबों पर ही क्यों गिरती है?

सरकार को मार्ग निर्देश कहाँ से मिलते हैं? विश्व बैंक, अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व व्यापार संगठन आपको मुफ्त की सलाह क्यों देते हैं? सलाह मानिए, नहीं तो उनकी फैंकी बोटियाँ आपको नहीं मिलेगी। सरकार लपकेंगी फैंकी बोटियाँ की ओर क्योंकि विकास के लिये पूंजी चाहिए, हेमामालिनी के गाल जैसी सडकें चाहिए, बडे-बडे माँल चाहिए, सेज़ चाहिए, इस पूंजी का 15% विकास पर और 85% नेताओं, सरकारी अफ़सरों, ठेकेदारों, एन्जिनियर, सप्लायरों, उद्योगपतियों व कोर्पोरेट घरानों की तिजोरियों में जाकर काला धन बन जाता है। काला धन बेईमानी से इकट्ठा किया जाता है इसलिये वह काले कारनामे करता है।

पूंजी निवेश बढेगा तो रोजगार बढेगा। अरे पूँजी तो पूरे विश्व में अपना नंगा नाच नाचने के लिए तैयार है। यह वह नर्तकी है जिसके नाच पर सभी देशों की सरकारे फ़िदा है। देशी दलाल पूंजी, विदेशीपूंजी के साथ ताल मिलाकर नाचेगी सरकार फ़िर मुज़रे देखने का काम करेगी या विदेश यात्रा मे डिस्को व केसिनो देखेगी।

अभी बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ गर्वनेस मे भी उतर रही है तब हमारी सरकारों को प्रशासन कि जिम्मेदारी से भी मुक्ति मिल जाएगी। सरकारे केवल वे नीतिगत फ़ैसले लेगी जो उसे तश्तरी में परोस कर दिये जाएंगे। संसद केवल बहस करेगी, बहुमत न हो तो खरीद लिया जायगा। परमाणु करार में यही तो हुआ। अब देखिये ये टेंडर किसको मिलता है ?

डाकुओं की संगठित गेंग के बारे में हलफिया बयान

पुलिस के बारे में एक जज साहेब ने टिप्पणी की थी कि पुलिस डाकुओं की एक संगठित गेंग है। भई! यह तो बहुत ही सख्त टिप्पणी है पुलिस सेवा के बारे में। चूंकि जज साहब को तो सरकार चलानी नहीं, इसलिए वे तो ऐसी टिप्पणी कर सकते हैं लेकिन यह तो सरकार ही जानती है कि पुलिस किस कदर जनता की सेवा व सुरक्षा में चौबीस घंटे लगी हुई है।

आलतू-फालतू आन्दोलनों को तोड़ने, फोड़ने, मरोड़ने व कुचलने का कार्य भी यही गेंग सरअंजाम देती है। विरोधियों के छक्के छुड़ाने व छठ़ी का दूध याद दिलाने का काम भी इसी के जिम्मे है। क्योंकि सरकार यह काम नहीं कर सकती इसलिए यह काम पुलिस से करवाया जाता है जिससे देश में अमन चैन बना रहता है।

और फिर उन्हें डकैत कहना तो खुला झूठ है, डकैत हमेशा खुले में लूटमार करते हैं जबकि पुलिस कभी ऐसा नहीं करती, वह हमेशा प्रछन्न तरीके अपनाती है। उसके लिए बकायदा प्रत्येक थाने में, पहुँच रखने वाले लोग होते हैं, वे राजनैतिक दल के कार्यकर्ता हो सकते है, कुछ छटे हुए बदमाश भी यह काम करते हैं कुछ वकील लोग भी यह काम करते हैं क्योंकि यह उनकी प्रेक्टिस की परिभाषा में आता है। इन लोगों का काम है मुर्गी फांसना और फिर थाने में होती है मुर्गी हलाल। जो मुर्गी फांसकर लाते हैं थाने में, उनकी समाज में बड़ी इज्जत होती है, इससे ही अंदाज लगाइये कि पुलिस की समाज में कितनी इज्जत होगी! इनसे पंगा लेना, मौत को दावत देना है। ऐसे इज्जतदार लोगों से आम जनता हमेशा थरथराती रही है। अब आप ही बताइये कि वे कौनसे कारनामे हैं जिसकी वजह से सरकार को यह नियम बनाना पड़ा कि थानेदार किसी स्त्री का बयान थाने में बुलाकर नहीं ले सकता। फिर भी लेते हैं बेल्ट से पीटते है क्योंकि इसके बिना वे सच्ची बात नहीं उगलते मोबइल फोन आने से लोग थाने के भी विडियो बना लेते है और वायरल कर देते हैं सरकार मजबूर होकर उन्हें सस्पेंड करती है लेकिन फिर यही कर्म दूसरे थाने में होने लगता है। नियम का खुद पालन नहीं करेंगे और दूसरों से कहते हैं कि तुमने कानून तोडा कानून हाथ में लिया।

पाठ पढ़ाने में हमारी पुलिस का कोई सानी नहीं है। थर्ड डिग्री क्या होता है ये वे लोग ठीक से जानते हैं जिनके घुटनें की टोपियाँ टूट गई या हाथ-पाँव की हड्डियाँ टूट गई, जिनके मुहॅं में मूता गया और गवाही चाहिए तो जुगता की लो जिसका लिंग तक उन्होंने काट दिया।

यह सब इसलिए किया जाता है कि अपराधियों में हाथ–पाँव टूटने का डर नहीं होगा तो अपराध रूकेंगे कैसे! सरकार के वक्तव्यों और भाषणों से तो अपराध रूकने से रहे। न ही कोर्ट कचहरी के भरोसे अपराध रूकेंगे। पुलिस जब सीधी और स्वविवेक से कार्यवाही करेगी तब ही अपराध जगत में दशहत फैलेगी।

लेकिन ऐसा क्यों होता है कि दशहत आम लागों में फैल जाती है और अपराध जगत के बीर बांकुरे थाने में बैठे मूंछों पर ताव देते रहते हैं।

जोगराफिया

भारत के भूगोल की किताबों में वह सब कुछ है लेकिन वह चीज नदारद है जिसने भारत के जोगराफिये को बदल दिया मसलन नेहरू के जमाने में एक बदलाव हुआ गोवा जो कभी पुर्तगाल कि टेरिटरी थी भारत में मिला लिया गया और भारत का नक्शा बदल गया। नेहरू के जमाने की ही बात ले, चीन ने भारत का नक्शा बदल दिया, मैकमोहन लाइन नक्शे पर पड़ी रही और चीन ने भारत के नक्शे पर सड़कें और चौकियां बना ली और वे चीन के नक्शे में चली गई। कहते हैं तब से चीन का नक्शा यों का यों है और भारत इस सम्बन्ध में चीन से वार्तालाप किये जा रहा है यह बातचीत अब भी चालू है।

भारत के उत्तर में नेपाल से लगा एक राज्य है सिक्किम, कभी ये भारत का प्रोटेक्टरेट था लेकिन इतिहास में एक ऐसा जलजला आया कि भारत की मिलिटरी ने वहाँ के राजा को अपदस्थ कर उसे भारत का 22 वा राज्य बना दिया। चाहते तो हम यह भी है कि भूटान, नेपाल और श्री लंका भी भारत में आ मिले। लेकिन अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य को देख मन मसोस कर रह जाते है। इंदिरा गाँधी जिसे वाजपेयीजी रणचंडी दुर्गा कहते थे, उन्होंने भारत का तो नहीं लेकिन पाकिस्तान का जुगराफिया हमेशा के लिये बदल दिया पूर्वी पाकिस्तान को नक़्शे से मिटाकर ‘बंगला देश’ बनवा दिया। झटका तगड़ा था पाकिस्तान के लिये। युद्ध में हार भी ऐतिहासिक थी इससे हम हमेशा के लिये एक दूसरे के दुश्मन बन गए।

जब भी पाकिस्तान की मरम्मत होती है भारत के लोग बहुत खुश होते है चाहे वे क्रिकेट में पिटे या जंग में। दुनिया में 150 से ऊपर देश है लेकिन तुलना हम पाकिस्तान से करते है हमने ओलम्पिक में पाकिस्तान से ज्यादा मैडल जीते। फिर भी पाकिस्तान की हिम्मत देखिये उसने भारत के सियाचिन का छोटा हिस्सा चीन को सौँप दिया इससे भारत का जोगराफिया बदल गया। हमने इस वाकये को जोग्राफी में न रखकर इतिहास में रख दिया। इतिहास में चीजे जरा सुरक्षित रहती है इससे ये हुआ कि चीन भारत की छाती पर आकर बैठ गया।

पाकिस्तान भारत का जोगराफिया बदलने को बहुत उत्सुक है।उसने खालिस्तानियों के खाडकू भारत में भेजकर आतंक मचवा दिया। फिर भी खालिस्तान नहीं बना सके। जिससे भारत की जोग्राफी को कोई नुकसान नहीं हुआ। पाकिस्तान की खासियत है कि वह हार नहीं मानता उसने कश्मीर में लड़ाके भेजे आतंकवादी गतिविधियां बढती गई और कश्मीर में स्वतंत्रता की जंग छेड़ दी लेकिन ये जंग कश्मीरी नहीं लड़ रहे थे ये किराए के टट्टू थे। सफल नहीं होना था नहीं हुए लेकिन कोशिश जारी है। देखते हैं, इससे किसका जोगराफिया बदलता है।

जब भारत जम्हूरियत का जश्न मना रहा था संसद में बहस मुहसबे हो रहे थे, जनाब मुशर्रफ ने कारगिल में पाकिस्तान की चैकिया बना डाली, मालूम हुआ तो देश में बवाल मच गया वाजपेयी जी का राष्ट्रवाद उबाल पर आ गया एक बार फिर रणचंडी को याद कर कारगिल से उन्हें खदेड़ दिया। लेकिन हमारा राष्ट्रीय चरित्र कुछ ऐसा है कि हम जल्दी उंघने लगते है चौकस हम रह ही नहीं सकते। अमन चैन होते ही झपकियाँ आने लगती हैं। लोग तो संसद में ही ऊंघने लगते है। जब भी पार्लियामेंट का सेसन चलता है अखबारवाले ऐसे फोटो खूब साया करते है यह दिखने के लिए कि वतन के चौकीदार कितने चौकन्ने हैं। वैसे इन तस्वीरों से लोगों का मनोरंजन भी होता है।