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दस व्यंग्य कथाएँ

गर्मी

अप्रत्याशित ही मध्यावधि चुनाव का ऐलान हुआ जनवरी का महीना कड़ाके की ठण्ड हाथ - पाँव ठंडे हो गये ।

- वोट तो देना ही है भाई किसे दें? क्यों दें? और फिर ठंड में हाड कँपाने क्यों जाएँ?

- आप उसकी फिक्र न करें. कार्यकर्ता ने आश्वस्त करना चाहा

- तो भई गरम कोट का इन्तजाम हो जाये ।

- हो जायेगा, तुम चलो तो सही, पिछ्ली बार कम्बल बाँटे थे कि नहीं ।

- सो तो ठीक है मगर---

-अच्छा- अच्छा चलो. कार्यकर्ता परेशान होकर बोला.

- वे जीप में बैठ गये । लाईन में खड़े, कोट पहने काँप रहे थे. हाथों को रगड़कर गर्मी लाने का उपक्रम कर रहे थे

-कार्यकर्ता से बोले- भाई हाथ गरम करो, बड़ी ठंड पड़ रही है. कार्यकर्ता ने झुँझलाकर कुछ नोट उसके हाथ पर रखे और हिदायत दी - ध्यान रखना ।

-यह भी कोई कहने की बात है । उन्होंने दाँत निपोरते हुए कहा ।

अब वे पूरी तरह गरम हो चुके थे

दौरा

एस. पी. साहब का दौरा है. सिपाहियों में हरकत है. थाने में भाग दौड है. सभी दौरे के बन्दोवस्त में लगे है.

‘हिरन का शिकार करने भेज दिया है न ?’

‘हाँ साहब ’

‘उन्हें हिरन का गोश्त पसंद है. स्कॉच शहर से मंगवा लो. यहाँ तो मिलेगी नहीं. ”

“आदमी भेज दिया है साब, आती ही होगी. ”

“और सुनो, देहरादून का बासमती चावल मंगवा लिया ?”

“जी साब,सेठ रामरतन ने भिजवा दिया था. ”

“गेस्टहाउस सज जाना चाहिए. मेमसाब हो सकता है साथ आएं. ”

“अच्छा साब !’

“सा’ब का दौरे पर खुश रहना जरुरी है. वरना बीच साल में थाना बदल गया तो नुकसान ही नुकसान. फिर फेकेंगे तो वहाँ, जहाँ मांड खाकर लोग पेट भरते हैं. वहाँ क्या मिलेगा !” थानेदार यही सब कुछ सोच रहा था.

कस्बे में पीतल और चांदी पर नक्काशी का काम अच्छा होता है. विदेशों तक में माल जाता है. एक-से-एक बेहतरीन चीजें थीं. मेमसाहिबा यह जानकार ही साथ आई थीं. उन्होंने एक-से-एक बढ़िया शो पीस ख़रीदे. अर्दली सामान उठाता रहा, सबइन्स्पेक्टर पेमेंट करता रहा,

दौरा समाप्त होनेवाला था. थानेदार ने सलाम बजाया. निवेदन करते हुए बोला, “सर !एक तुच्छ भेंट स्वीकार करें. गए बार सोने के बिस्कुट पकडे गए थे, सोचा,दो चार आपके लिए रख लूँ. ” और उन्होंने एक छोटा सा डिब्बा भेंट कर दिया.

वे क्या बोलते ! उनकी बोलती बंद थी.

लाइसेंस

शराब निरोधक समिति के मेम्बरान क्षेत्र का दौरा कर रहे थे. यह यों भी जरुरी था क्योंकि इस इलाके में कच्ची शराब खूब खींची जाती थी और खूब सप्लाई की जाती थी राज्य में शराबबन्दी पूरी तरह लागू थी.

“तुम्हारी आमदनी ही क्या है ? उसे भी शराब में डुबो रहे हो ! न बच्चों का पेट देखते हो, न बीमारी. शराब तुम्हारे शरीर को खा रही है. ” एक मेंबर समझा रहे थे.

“और फिर तुम कच्ची- पक्की निकालते हो, जेल जाओगे, समझे !”

वह गिडगिडाया, “माई–बाप, आप बजा फरमाते हैं, मगर इसी से तो घर चल रहा है. हैं-हैं-हैं, भला मैं कच्ची- पक्की क्यों निकालने लगा. आपकी मेहरबानी होगी माई–बाप,आप तो लाइसेंस दिलवा दीजिए. ”

मेंबर उसके मुंह की ओर देखते रहे.

दाल –रोटी

“तो तुम कुत्तों से प्यार करते हो !आदमी तुम्हें काटता है !”

“मुझे कुत्ते अच्छे लगते है. ”वह मुस्काया.

“क्या कुत्ते आदमियों से बेहतर हैं ?”

“हाँ, जब तक उनके मुंह में हड्डी होती है तब तक वे न भौंकते हैं, न काटते है. ”

“तुम्हारा मतलब है, हम तुम्हारी फेंकी गई हड्डियों को चूसते रहें. ”

“अरे ! तो बिगड़ते क्यों हो ?हम कौन–सा मुर्ग-मुसल्लम खा रहें हैं. ” फिर धीरे व मीठे शब्दों में बोला, ”लेकिन भाई ! दाल –रोटी का जुगाड़ तो सभी को करना पड़ता है. ” मैनेजर ने उसे समझाते हुए कहा.

“तो क्या उसके लिए कुत्ता बनना जरुरी है. ”

“बौखलाते क्यों हो ! मैंने यह तो नहीं कहा. ”

अवसरवादी

शासक पार्टी टूटने के कगार पर थी. सत्ता के लिए रस्साकशी थी. आरोप-प्रत्यारोप का बाजार गरम था. जो लोग विधानसभा में बैठकर उबासियाँ लिया करते थे,एकाएक हरकत में आ गए.

शासक दल के एक ग्रुप को शासन में बने रहने के लिए अधिकाधिक विधायकों का सहयोग चाहिए था. निर्दलियों और बैक-बैंचर्स को न्यौता गया. जनप्रतिनिधि पेशोपेश में थे. जाएं तो किधर जाएं. ऊंट पता नहीं किस करवट बैठेगा. राजनीति के ऊंट का क्या भरोसा! कब किसकी आस्तीन से सांप निकल आए?

हाईकमान कोई कम नहीं था. उसने पैंतरा बदला. निर्दलियों ने पार्टी के साथ सहयोग करने की घोषणा कर दी. बैक-बैंचर्स यकायक महत्वपूर्ण पदों पर पहुँच गए. उनके रुके हुए काम निकलवाए गए. दो नंबर का खजाना स्विस बैंक से मंगवाया गया. किसानों को राहत देने की घोषणाएं की गई. उद्योगपतियों को छूट दी गई.

सत्ता स्वर्ग है, कल्पवृक्ष है. उसके लिए जितना भी किया जाय, थोडा है.

मंत्री-पद की शपथग्रहण करते हुए निर्दलीय विधायकों ने वक्तव्य दिया –हम राजनीति में स्वच्छता एवं नैतिकता के पक्षधर हैं. अवसरवादी नेता अपने निजी स्वार्थों के लिए सरकार पर दबाब डालते हैं और पार्टी को तोड़ने पर उतारू हो जाते हैं. हम इस तरह की दबाब और अवसरवादी राजनीति के सख्त खिलाफ हैं. अत: हमने निर्णय लिया है कि ऐसे कठिन दौर में हम माननीय मुख्यमंत्री के हाथ मजबूत करें.

फैसला

हीरा ने पंचायत में अर्जी दी कि उसके पट्टे की जमीन के एक फुट अन्दर तक प्रेमा ने कब्ज़ा कर लिया है और उस पर उसने मकान बनाना भी आरम्भ कर दिया है.

पहले तो हीरा और प्रेमा में खूब कहासुनी हुई. कुछ लोग बीच-बचाव को भी आए. पर कोई हल नहीं निकला. अत: हीरा को मजबूर हो पंचायत में जाना पड़ा.

पंचायत बैठी. पहले दिन दोनों तरफ से सुनवाई हुई, काफी नोक-झोंक के साथ. दूसरे दिन वे दोनों पंचों के पास दौड़ते –दौड़ते गए. उनकी अपनी –अपनी जाति के पंचों ने उन्हें आश्वस्त किया. अब प्रेमा और हीरा ने मूंछें फड़काई. अभी तक सरपंच के पास वे नहीं पहुंचे थे और वहां पहुँचना जरुरी था.

हीरा और पञ्च, प्रेमा और पञ्च, सरपंच से मिले. सरपंच ने बारी –बारी से उनके साथ गुपचुप बातें की. दोनों ने केस के हिसाब से सरपंच को थैली भेंट की. फिर क्या था, दोनों की बांछें खिल गई.

फिर पंचायत बैठी. कोई निर्णय नहीं हुआ. मामला आगे की तिथि में चला गया. फिर उससे भी आगे की तिथि में. अनिर्णय की स्थिति चलती रही. मकान पूरा बन गया.

“मकान अब तोडा तो नहीं जा सकता !” सरपंच ने हीरा को समझाया, “कुछ ले देकर केस रफादफा करो. क्यों आपस में बैर मोल लेते हो. ” फिर दोनों में बाकायदा समझौता कराया गया. सरपंच अभी भी उनको देखकर मुस्करा देता है.

तुम्हारे लिए

एक जंगली सूअर अपने दांतों की दरांती को एक पेड़ से तेज कर रहा था. खरगोश बड़े असमंजस में पड़ गया. उसने पूछा, “आप तो अहिंसा के उपदेश देते हो, फिर इन दरातियों को क्यों तेज कर रहे हो ?”

वह मुस्कराया, फिर तेज दरांतियों को दिखाकर बोला, “ये दुश्मन के लिए हैं. ”

“कौन दुश्मन ?” खरगोश ने पूछा.

“बाहरी और भीतरी. भीतरी दुश्मन ज्यादा खतरनाक होता है, विभीषण की तरह सत्ता हड़प लेता है. ”

“मगर हिंसा का जबाब हिंसा नहीं है. ” उसने सख्त आवाज में कहा.

“बिलकुल ठीक कहते हो, मेरे भाई. तुम्हारे लिए उचित ही है कि तुम गोली कांडों का जबाब प्रदर्शन और हड़ताल से दो. लोकतंत्र तुमसे यही अपेक्षा रखता है. मगर मुझे लग रहा है, तुम धैर्य खो रहे हो, इसलिए मैं अभी से तैयारियों में जुटा हूँ. ” और वह अपनी दरांतियों को तेज करने लगा.

दबाव

शासक पार्टी टूट रही थी राजधानियों मे भगदड़ मची हुई थी । दिल्ली में ब्रेकअवे ग्रुप की बैठक चल रही थी । कुछ विधायक भोपाल से भी गए थे । मुख्यमंत्री पर दबाव डालने का इससे सुनहरा अवसर कौनसा हो सकता था ।

मुख्यमंत्री भी चौकन्ने थे.

दिल्ली की बैठक से लौटे तो मुख्यमंत्री ने खबर ली ।

‘तो आप हमारे घटक के मजबूत कार्यकर्ता हैं’

वे बगलें झाँकने लगे ।

‘मंत्रीपद का आश्वासन मिला है ?’

‘नहीं ऐसी बात नहीं है …’

‘ठीक है एडजस्ट कर लेंगे अगले महीने मंत्रीमण्डल का विस्तार कर रहे हैं । तब तक ये लो हवाई टिकट, अगले सप्ताह डेलीगेशन टोक्यो जायेगा घूम फिर कर आइये । दर्द उठे तो हमें कहिए क्यों सीधे दिल्ली भाग जाते हैं ?’

‘जी. अच्छा’ और लौटते समय वे आश्वस्त और सतुष्ट थे ।

विरोधी

जब वह पहली बार विधानसभा के लिए चुना गया तो हमें लगा, वह कुछ करके रहेगा, तेज तर्रार और आक्रोश से भरा, बोलने में इतना आकर्षण कि पूरी विधानसभा ध्यान देकर सुनती, वह बेरोजगारों और दलितों का हिमायती था

' सरकार अपनी सही नीतियों के बावजूद गलत निष्कर्षों पर क्यों पहुँचती है ? सामान्यजन क्यों पिस रहा है ? युवा क्यों बेकारी भोग रहा है ? वह बारी - बारी विश्लेषण करता, और हम सब के चेहरे तन जाते, हम सब उसके हाथ मजबूत करना चाहते थे । सरकारी खेमों मे उसने खलबली मचा रखी थी । मंत्री और सचिव तक उसका आदर करते थे ।

' सर कुत्ते को रोटी का टुकड़ा क्यों नहीं फेंकते ' सचिव ने स्वामीभक्त नौकर की तरह चिंतित मंत्री को सलाह दी ।

' लेकिन कुत्ता भूखा न हो तो’ ? मंत्री का प्रश्न सूचक चेहरा सचिव के सामने लटक गया ।

' तो … को छोड़िए, कुत्ता भूखा है तभी तो चिल्ला रहा है । ' ठीक है प्रयास कीजिए. सचिव आश्वस्त होकर अपनी सीट पर बैठा ही था कि विधायक आ गये ।

' आइये - आइये मंत्रीजी याद कर रहे थे ' सचिव ने दरवाजा खोलते हुए कहा ।

' मंत्रीजी ने खड़े होकर तपाक से हाथ मिलाया, बेरोजगारी पर आपका भाषण तेज तर्रार था । सरकार को खूब आड़ो हाथ लिया, विधायक का सीना फूल गया ।

' बताइये, क्या सेवा करुं ?… हिचकिचाइये नहीं, बोलिये,

'मेरा छोटा भाई इंजीनियरिंग कर बैठा है '

'आप एप्लीकेशन लाए हैं ? विधायक महोदय ने ब्रीफकेस से एप्लीकेशन निकाल दी ।

' सचिव साहब, सप्ताह भर में इन्हें नियुक्ति पत्र मिल जाना चाहिये ।

' अवश्य सर ' एड हाक नियुक्ति पत्र कल ही भिजवा देता हूँ ।

इतना छोटा सा काम बताया आपने । आप जैसे योग्य विधायक तो शासक पार्टी में होने चाहिए ताकि बेरोजगारी और दलितों के लिए अच्छी योजनाएं बना सके ।

' मैं मुख्यमंत्री से बात करुंगा, आपका ग्रुप इधर आ जाये तो राज्यमंत्री का दर्जा दिलवा दूंगा ।

' विधायक की तो बांछे खिल गयी । काँच की गोली माँगी थी और हीरा मिल गया ।

वे झुके - झुके बोले ' बड़ी मेहरबानी '

न्याय होगा

“हजूर मेरे बच्चे को गुंडे उठा ले गये हैं” पुलिस के सामने वह कातर स्वर मे बोला । ‘ “वायरलेस कीजिए, जीपे दौड़ाइये, सी. आई. डी. को खबर कीजिए, नाकाबंदी कीजिए, किसी तरह मेरे बच्चे का पता लगाइये” ।

“जरूर लगायेंगे हमारी ड्यूटी है” पुलिस अफसर ने उसे तसल्ली देते हुए कहा “तुम निश्चिंत रहो” फिर मन ही मन कहने लगे ‘’तू साला क्या वी. आई. पी. है जो तेरे बच्चे का पता लगायेंगे’ ।

”हाय मेरा बच्चा । इंस्पेक्टर साहब कहीं तो पता लगाइये”

“तसल्ली रखो खोज जारी है । बच्चा मिलेगा। तुम्हारे साथ अन्याय नहीं होने दिया जायेगा । यह व्यवस्था सभी को न्याय देती है” ।

“मुझे न्याय नहीं चाहिए, मुझे मेरा बच्चा चाहिए”।

“क्यों न्याय काटता है” पुलिस अफसर ने कटाक्ष किया । ‘ “पूरे हिन्दुस्तान में ढूढेंगे, गली - गली ढूढेंगे, तुम्हारा बच्चा फिर भी न मिला, तब भी तुम्हारे साथ न्याय होगा” ।

“कैसा न्याय? मुझे मेरा बच्चा चाहिए” ।

‘ “न्याय शत प्रतिशत न्याय ! बच्चा न मिलने पर पांच हजार रूपये का मुआवजा और लाश मिली तो दस हजार का मुआवजा सरकार देगी, समझे । लेकिन देगी हमारी सिफारिश पर, एक हजार हमारी दक्षिणा होगी, समझे” ।

“कुत्तों के पिल्लों, तुम्हारे मुंह में मरा सांप क्यों नही घुस गया यह सब बोलते” ।

“सिपाही, इस पागल को बाहर करो” ।

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