Sumandar aur safed gulaab - 1 - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

समंदर और सफेद गुलाब - 1 - 1

समंदर और सफेद गुलाब

पहला दिन

1

शताब्दी टे्रन को मैंने नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर छोड़ दिया और मैट्रो टे्रन लेने के लिए मैट्रो स्टेशन की तरफ बढऩे लगा। ट्रॉली बैग को पहियों पर घसीटता हुआ मैट्रो की ओर बढ़ गया। बीच-बीच में बैग को उठाने की भी जरूरत पड़ती और मैं उसे झट से उठा लेता, कभी फिर से उसे पहियों के बल घसीटता हुआ आगे को निकल जाता। मुझेे पता ही नहीं चला कि कब मैं मैट्रो स्टेशन में दाखिल हो गया। वहां हर तरफ रास्ता दर्शाने के लिए तीरों के निशान (ऐरो साइन) लगे हुए थे। मैं उन्हें पढ़ता हुआ ही आगे की तरफ बढ़ रहा था। देखते-देखते मैं एयरपोर्ट की तरफ मैट्रो स्टेशन के प्लेटफार्म में दाखिल हो गया था। यहां से टिकट लेकर आगे बढ़ा तो कुछ औपचारिकताएं निभाता हुआ प्लेटफार्म पर जाकर खड़ा हो गया। वहां कई लोग पहले से ही खड़े थे। कुछ ही समय में मैट्रो ट्रेन प्लेटफार्म पर थी। जैसे ही गाड़ी के दरवाजे खुले, मैं अंदर घुस गया। मैट्रो में बैठकर तो ऐसा लगता ही नहीं कि आप हिंदुस्तान की किसी रेल में सफर कर रहे हैं। दरवाजे अपने आप खुल जाते हैं और अपने आप ही बंद हो जाते हैं। देखते ही देखते ट्रेन हवा से बातें करने लगती है। साथ-साथ में एनाऊंसमैंट का दौर जारी रहता है और गाड़ी के डिब्बे में डिस्पले में यह भी आ जाता है कि अब कौन-सा स्टेशन आने वाला है।

स्टेशन आने से पहले ही यह एनाऊंसमैंट होनी शुरू हो जाती है कि दरवाजे बाईं या दाईं तरफ खुलेंगे। और भी कई प्रकार की सूचनाएं समय-समय पर मिलती रहती हैं। मैं सोच जरूर रहा था लेकिन मेरी निगाह डिस्पले स्क्रीन पर किसी गिद्ध दृष्टि की तरह चिपकी हुई थी। खैर, मैंने देखा.. अगला स्टेशन जो आएगा मुझेे उसी पर उतरना है। मैंने बैग को थोड़ा-सा सरकाया और दरवाजे की तरफ लेकर आ गया। हालांकि मुझेे पता नहीं था कि दरवाजा किस तरफ खुलेगा। जल्दी ही स्टेशन आने का आभास हुआ, क्योंकि एनाऊंसमैंट हुई कि दरवाजे बाईं तरफ खुलेंगे। सब लोग अपना-अपना सामान लेकर बाईं तरफ होने लगे। गाड़ी रुक गर्ई, तो मैं जल्दी से बैग उठाकर बाहर की तरफ हो गया। अभी बाहर नहीं निकला था कि वहीं से पता चला कि एयरपोर्ट तक जाने के लिए बस के टिकट मिल रहे हैं। मैंने वहीं से टिकट लिया और बाहर की तरफ निकल गया। सामने ही बस खड़ी थी और बस कंडक्टर जोर-जोर से आवाजें लगा रहा था। एयरपोर्ट को जाने वाले लोग उस बस की तरफ भाग रहे थे। मैं भी उसी तरफ लपका और जाकर सामान उस बस में रखकर सीट लेकर बैठ गया।

मैंने देखा, लोग धीरे-धीरे चढऩे लगे हैं। देखते ही देखते मिनी बस खचाखच भर गई... लेकिन ड्राइवर था कि चलने का नाम ही नहीं ले रहा था।

मैंने साथ वाले से पूछा, ‘बस तो सवारियों से भर गई है, फिर यह ड्राईवर क्यों नहीं चला रहा?’

वह तुरंत बोला, ‘असल में मैट्रो का इंतजार कर रहा है। सोच रहा है कि कुछ सवारियां और मिल जाएं, तो चलूं।’

देखते ही देखते कुछ और लोग बस में आ गए और मुझेे समझते देर नहीं लगी कि एक और मैट्रो टे्रन प्लेटफार्म पर आ चुकी है। खैर, वह इंतजार खत्म हो गया और कंडक्टर ने चलने के लिए व्हिसल बजा दी। कुछ ही पलों में बस आगे की तरफ बढ़ गई।

*****

मैं बस से उतरकर सीधा एयरपोर्ट की तरफ बढ़ गया। वहां लिखा था ‘मुंबई जाने वाली सवारियां जो डोमैस्टिक एयरपोर्ट से जा रही हैं, वह दूसरी मंजिल पर चली जाएं।’

वहां तक जाने के लिए भी चैकिंग हुई। चैकिंग करवाकर मैं लिफ्ट की तरफ बढ़ा, जहां से दूसरी मंजिल की तरफ जाने वाली लिफ्ट लगी थी। वहां भी लाइन लगी हुई थी। लिफ्ट में चढक़र दो नंबर पर बाहर निकला तो वहां का नजारा ही बदला हुआ था। इंडिगो एयरलाइंस के कांऊटर तक जाना मुझेे मुश्किल लग रहा था क्योंकि उससे पहले भी फॉरमैलिटी थी, चैकिंग की।

एक एयरलाइंस कर्मचारी आया और वहां मौजूद यात्रियों से बोला, ‘अपने-अपने आई काड्र्स अपने हाथों में रखें।’

मैंने बैग को साइड में रखकर अपना आई कार्ड निकाल लिया और फिर से लाइन में लग गया। वहां चैकिंग करवाकर अंदर घुसा तो मैं समझ नहीं पा रहा था कि अब कहां जाना है। हालांकि मैं पहली बार हवाई यात्रा नहीं कर रहा था लेकिन लगभग 35 साल पहले की हुई यात्रा की औपचारिकताएं भूल चुका था।

खैर, मैंने किसी से पूछा तो उसने मुझसे कहा, ‘आपकी टिकट कौन-सी एयरलाइन्स की है?’

मैंने फौरन जवाब दिया, ‘इंडीगो एयर लाइन्स।’

मेरी बात सुनते ही उसने कहा, ‘आप इंडीगो एयरलाइन्स के काऊंटर पर चले जाएं, बाकी सब कुछ वही बता देंगे।’

मैं इंडीगो एयरलाइन का काऊंटर ढूंढने लगा तो मेरी निगाह वहीं पर जाकर अटक गई। मैं जल्दी से उस तरफ गया। वहां जाकर मैंने अपनी टिकट दिखाई तो उन्होंने मेरा ट्रॉली बैग पकड़ लिया और कहा, ‘पीछे की तरफ गेट नंबर पांच पर चले जाएं।’

बैग कारगो में जमा करवाकर मैंने सुख की सांस ली। मैं अपने हाथ लटकाकर टहलता हुआ गेट नंबर पांच की तरफ चला आया। वहां पर सिक्योरिटी काफी टाइट थी। वहां बहुत सारी टोकरियां पड़ी थीं। वहां लोग अपनी जेबें खाली करके सब कुछ उसी में रख रहे थे। यही नहीं, अपने मोबाइल फोन एवं हाथ में पकड़ा हर सामान उस टोकरी में रखकर टोकरी को रोलिंग मशीन पर रख रहे थे। सामान दूसरी तरफ जा रहा था और हर आदमी को सिक्योरिटी वाले चैक करके दूसरी तरफ भेज रहे थे। मुझेे भी सिक्योरिटी वालों ने चैक किया और मैंने लपककर टोकरी में रखा हुआ सामान उठा लिया। सीढिय़ां उतरकर नीचे चला गया। वहां देखा कि जगह-जगह पर जहाज खड़े हुए थे।

लोग सीटों पर बैठे हुए थे। मैं वहां टहलने लगा और वहीं पर बनी हुई एक दुकान से सैंडविच लिया और सीट पर बैठकर खाने लगा। मैं सचमुच आज बहुत खुश था। जितना मुझेे लग रहा था, उससे भी कहीं ज्यादा। सच में, मैंने इस खुशी का इंतजार भी बहुत किया था। मैंने सैंडविच खत्म किया और मोबाइल से कुछ फोटो लेने लगा। कुछ सैल्फी भी लीं और सोचा क्यों न फेसबुक पर पोस्ट कर दूं.. ताकि सबको पता चल जाए कि मैं अपने सपनों की उड़ान की तरफ निकल चुका हूं।

*****