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श्री सूर्यकांत त्रिपाठी निराला व्यक्तित्व और कृतित्व

व्यक्तित्व और कृतित्व के धनी श्री सूर्य कांत त्रिपाठी निराला अपने नाम के सदृश ही हिंदी साहित्य में भी निराला स्थान बनाए हुए हैं। किसी भी कवि के कृतित्व पर उसके व्यक्तित्व की छाप पडना अवश्यंभावी है यथा नाम तथा गुण के अनुसार ही निराला जी क्रांतिकारी विचारधारा के कवि हैं। बंधन उन्हें किसी भी रूप में पसंद ना था अतः उनकी कविता भी छंद के बंधनों से मुक्त रही उनको स्वच्छंद छंद का आविष्कारक माना जाता है संवेदनशील व्यक्तित्व होने के कारण दलित और पीड़ित वर्ग के प्रति आपकी सदैव ही सहानुभूति रही है और इसी अनुभूति के आधार पर उन्होंने अपने काव्य के माध्यम से अत्याचार के विरोध में विद्रोह का स्वर फुकने हेतु संपूर्ण देश का आह्वान किया है उनकी काव्य में विराट और कोमल का अभूतपूर्व समन्वय दृष्टिगोचर होता है। "राम की शक्ति पूजा" में असाधारण असंदिग्ध रूप से विराट है तो दूसरी ओर उद्यान की स्मृति के समय कोमलता का ही प्रावधान है। उनके काव्य में नयनो का गुप्संभाषण है ,उन्मत्त पलकों का गिरना है ,अधरों का कंपन है और आशा के विहंगो का मधुर कलरव भी है

कृतित्व

बहुमुखी प्रतिभा संपन्न निराला जी के कृतित्व में भी विविधता दिखाई देती है आपने कविता कहानी उपन्यास जीवनी रेखाचित्र खंडकाव्य मुक्तक काव्य आदि सभी साहित्यिक विधाओं पर अपनी लेखनी चलाई है आप हिंदी के युग प्रवर्तक एवं युग विधायक कवि माने जाते हैं आपने कला की जड़ता का बहिष्कार कर सदैव ही सचेतन एवं प्रगतिशील मांग की ओर कदम बढ़ाया है निराला जी के काव्य में विद्रोह और ललकार होने पर भी उच्छखलता और वाचालता नहीं आने पाई है अनामिका, परिमल ,गीतिका, कुकुरमुत्ता, वेला ,नए पत्ते, आराधना ,अर्चना ,गीत कुंज आदि अनेक प्रसिद्ध मुक्तक काव्य की श्रेणी में आते हैं

उनके साहित्य में क्रांतिकारी विचारों की तीव्र ज्वाला भी धधक रही है तो दूसरी ओर प्रेयसी के प्रेमालापो की शीतल हिम सरिता भी प्रवाहित हो रही है उसमें प्राचीन परंपराओं एवं रूढ़ियों के विध्वंस का तीव्र स्वर सुनाई पड़ता है तो दूसरी ओर नवीन समाज रचना का मधुर राग भी गूंज उठा है साम्राज्यवादियों एवं पूंजी पतियों द्वारा प्रताड़ित सर्वहारा वर्ग की चीख- पुकार सुनाई पड़ती है तो दूसरी ओर अन्याय एवं असमानता को अपने सशक्त बाहुबल से पूर्णतया समाप्त कर देने की सिंह गर्जना भी सुनाई पड़ती है गुलाब को प्रतीक मानकर पूजी पतियों के प्रति उनका विद्रोह दृष् टव्य है

अबे सुन बे गुलाब

भूल मत गर पाई खुशबू रंगो आव
खून चूसा खाद का तूने अशिष्ट

डॉल पर इतरा रहा कैपिटलिस्ट

भिक्षुक कविता में गरीबों के प्रति उनकी मानसिकता के दर्शन होते हैं

वह आता
दो टूक कलेजे के करता
पछताता पथ पर आता
मुंह फटी पुरानी झोली का फैलाता

इसी प्रकार तोड़ती पत्थर कविता में मजदूरों के प्रति आस्था की झलक दिखाई देती है

वह तोड़ती पत्थर
देखा मैंने उसे इलाहाबाद के पथ पर

निराला जी के काव्य की आत्मा उनके व्यक्तित्व की भांति बड़ी उदात्त ऊर्जस्वित और पौरुषमय है व्यक्तित्व की जैसी निर्वाध अभिव्यक्ति निराला जी की रचनाओ में हुई है वैसी अन्य छायावादी कवियों में नहीं हुई ऐसा क्रांतिकारी कवि एक और अपनी कविता में ओजस्विता का स्वर् फूकता है तो दूसरी ओर नारी के दिव्य सौंदर्य की अलौकिक झांकी प्रस्तुत करता हुआ प्रेम के मर्मस्पर्शी गीत गाता है

प्रेम की महोमि माला तोड़ देती क्षुद्र तट
जिसमें संसारियो के सारे क्षुद्र मनोवेग
तॄण सम बह जाते हैं
दिव्य देहधारी ही कूदते है इसमें प्रिय
पाते हैं प्रेम अमृत पीकर अमर होते हैं
जूही की कली में प्रेम की पूर्ण अभिव्यंजना हुई है


निर्दय उस नायक ने
निपट नीठराई की
के झोंकों की झाड़ियों से
सुंदर सुकुमार देह सॉरी झकझोर डाली

निराला जी के काव्य की भाव भूमि प्रारंभ से ही विस्तृत रही है कवि ने संध्या सुंदरी, वसंत आया, बादल, वसन वासंती लेगी, नरगिस आदि अनेक कविताओं में प्रकृति सुंदरी के अनूठे चित्रों का अंकन किया है संध्या का मानवीकरण दर्शनीय है

दिवस अवसान का समय

मेघमय आसमान से उतर रही है
वहां संध्या सुंदरी परी सी
धीरे धीरे धीरे
सृष्टि में व्याप्त ब्रह्म के चेतन स्वरूप के स्पर्श का अनुभव कवि प्रकृति के माध्यम से ही करता है कवि कहता है

तुम तुग हिमालय श्रंग


और मैं चंचल गति सुर सरिता

उनकी आत्मा इसी प्रकाश में लीन होने के लिए सरिता की भांति गतिशील होती है वही उनकी वेदना व्यथित होकर ईश्वर से प्रार्थना करती है

डोलती नाव प्रखर है धार
संभालो जीवन खेवनहार

वस्तुतः निराला मानवीय भावनाओं के ही कवि है सरोज स्मृति आधुनिक हिंदी काव्य की अपने ढंग की अकेली कविता है

दुख ही जीवन की कथा रही
क्या कहें आज जो नहीं कही
कन्या! गत कर्मों का अर्पण
कर सकता मैं तेरा तर्पण

ऐसा शोक गीत हिंदी जगत में दूसरा नहीं है रहस्य आध्यात्मिक या दर्शन की गहराई या ऊंचाई पर वे अधिक देर नहीं टिक पाते वस्तुतः मानवता के सम धरातल पर चलना होने अधिक प्रिय है इसी कारण वह भारतीय विधवा की पवित्रता सुचिता शांति दुर्भाग्य शीलता दीनता एवं दलित अवस्था का प्रभावशाली चित्रण बड़ी ही मार्मिकता से कर सके हैं

वह इष्ट देव के मंदिर की पूजा सी
वह दीप शिखा सी शांत, भाव में लीन
वह क्रूर काल तांडव की स्मृति रेखा सी
वह टूटे तरु की छूटी लता सी दीन
दलित भारत की ही विधवा है

उनके काव्य में करुणा की अनुगूंज कहीं बाहर कि नहीं ,अपितु उनके अंतर तम प्रदेश की है ठूंठ और मैं अकेला जैसी रचनाओं में इसी का करुण क्रंदन सुनाई देता है

मैं अकेला
देखता हूं आ रही
मेरे दिवस की सांध्य वेला

वास्तव में निराला जी यथा नाम तथा गुण के सशक्त प्रमाण से उन्हें उन के निराले व्यक्तित्व के कारण सैकड़ों में सरलता से पहचाना जा सकता था जिस और भी उनकी निराली लेखनी चली, उधर ही से विजयनीं होकर लौटी उनके भाव पक्ष के समान ही कला पक्ष भी अत्यंत सबल एवं प्रौढ़ है निराला जी की भाषा शुद्ध खड़ी बोली है जिस पर संस्कृत का प्रभाव अधिक है बंगला और फारसी का कम। इन सभी भाषाओं के सम्मिश्रण से उन्होंने अपने भावों को वाणी दी उनकी शैली भी उनकी प्रकृति के अनुरूप ही बिल्कुल निराली और अपनीं ही शैली है स्वच्छ छंदों का प्रयोग करना इनकी शैली की विशेषता है नए-नए प्रतीक और उपमान ओं का प्रयोग भी उनकी अनूठी विशेषता है


उन्होंने अपने निराले व्यक्तित्व से हिंदी जगत को निराला पत्र दिखाया निराला रूप दिया निराला भाव दिया निराली दिशा दी और निराली वाणी प्रदान की हिंदी साहित्य संसार अपनी इस निराली विभूति को कभी विस्मरण नहीं कर सकेगा कविवर नागार्जुन ने ठीक ही लिखा है

हे कविकुलगुरु हे महिमामय हे सन्यासी
तुझे समझता है साधारण भारतवासी
राज्यपाल या राजप्रमुख क्या समझे तुझको
कुचल रही जिनकी संगीने कुसुम कुसुम को
सुखमय कृतज्ञ सम दृष्टि वह जन युग जल्दी आ रहा है
इस मिट्टी का कण कण सुनो गीत तुम्हारे गा रहा है

अंततः हम कह सकते हैं कि ओजस्विता और प्राणवता मौलिक सद्भावना संगीतमयता निर्मम व्यंग चित्र व्यंजना तथा अनुभूति कल्पना और विचार तत्व का समन्वित उत्कर्ष निराला के काव्य की मूलभूत विशेषताएं हैं उन्होंने अपने काव्य की विषय में स्वयं लिखा है मेरे पास कवि की वाणी है कलाकार के हाथ है पहलवान की छाती और दार्शनिक के पैर हैं कविवर पंत ने भी अपने काव्यमय शब्दों में इस महान आत्मा को स्वीकारा है

छंद बंद ध्रुव तोड़फोड़ कर पर्वत धारा
अचल रूढ़ियों के कवि तेरी कविता धारा
मुक्त अबाध अमंद रजत निर्झर सी नि: सूत
ग हित ललित आलोक राशि चिर अ कलर्स अ वि जीत
स्फटिक शिलाओंसे तूने वीणा का मंदिर
शिल्पी बनाया ज्योति कलश यश धर चिर

श्री वियोगी हरि ने इस महान साहित्यकार के महत्व का प्रतिपादन करते हुए लिखा है कि
निराला चला गया भारत माता ने एक अमूल्य रत्न खो दिया निराला अर्थों में कवि था दृष्टा था क्रांतिकारी था लोक ह्रदय के स्पंदन का स्पर्श उसने किया था कितने क्षणों में अपनी कोमल कठोर उंगलियों से निराला का हास्य गभीत रुदन और करुणा सिंचित हास्य हम में से कितनों ने समझा होगा निराला ने अपनी अमर वाणी को कभी बेचा नहीं और उसे खरीदने का साहस कर भी कौन सकता था? उनके महान जीवन से बहुत कुछ सीखा जा सकता है

वस्तुतः बे महान पथ प्रदर्शक तथा दीपस्तंभ शंकर आज भी विद्यमान हैं जैसे बसंत आकर चला जाता है परंतु अपनी अनोखी महक सदा के लिए छोड़ जाता है ठीक उसी प्रकार वसंतोत्सव पर अवतरित होने पर यह निराला का सूर्य ढल अवश्य गया परंतु उसका आलोक हिंदी साहित्य में सदा के लिए शाश्वत है उस निराले पुष्प की महक सदैव ही हमारे मन को आनंदित करती रहेगी किसी कवि के शब्दों में


सूर्य जो ढल गया पर ज्योति प्रखर बाकी है
काव्य के सिंधु में वाणी की लहर बाकी है
क्या हुआ रोशनी को ढक लिया अंधेरे ने
दीप तो बुझ गया किरणों का सफर बाकी है

इति