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स्त्री.... - (भाग-26)

स्त्री........(भाग -26)

काम के वक्त सिर्फ काम ही याद रहता है। थोड़ा आराम करने बैठो या खाली समय मिल जाए तो दिल कभी गाँव तो कभी पुरानी बातों की तरफ चला जाता है। अब पिताजी से कभी कभार फोन पर बात कर ही लेती थी। पिताजी रिटायर होने वाले थे और उसके बाद राजन की जहाँ नौकरी होगी, वो लोग वहाँ चले जाएँगे, पर वक्त का कोई भरोसा नहीं। ज्यादातर लड़कियों को सास ससुर के साथ अब रहना पसंद नहीं आता, ये कामिनी को देख कर समझा। यह बात और है कि गाँवों में लोग ससुराल भरा पूरा पसंद करते थे.......चलन था कि अगर रिश्तेदार किसी के कम हो तो सोचा जाता था कि जरूर सामने वाले का व्यवहार अच्छा नहीं है, उन्हें बना कर रखनी नहीं आती....अब तो माहौल बदल रहा है..... लोग भी छोटे परिवार खोजने लगे हैं,ताकि उनकी बेटियों पर जिम्मेदारी कम से कम हो। क्या पता गाँवो में भी ऐसी हवा चल पड़ी हो। इधर अनिता, तारा और मुकेश जैसे लोगो का साथ मुझे हिम्मत दे रहा था और मेरे सब कारीगर बहुत अच्छे से साथ निभा रहे थे.....। रोज की तरह उस दिन भी मैं सब काम समझा कर किसी का आर्डर देने जा ही रही थी, कि कामिनी अपने चचेरे भाई के साथ फिर आ गयी।
मैं इतनी जल्दी दोबारा उन्हें देख हैरान थी। फिर कामिनी ने बताया कि चाची जी को बहुत पसंद आया है तुम्हारा काम। इसलिए उनको कुछ और साड़ियाँ चाहिए अपने रिलेशंस में गिफ्टस देने के लिए।
ये तो मेरे लिए खुशी की बात थी, पर विपिन जी का होना मुझे असहज कर रहा था.....इस बार उन लोगो ने डिजाइन्स पसंद करके अपने पसंद के रंग बता दिए थे। 10 साडियों का आर्डर मिला था, काफी वक्त लग गया सब कुछ उनसे समझने और नोट करने में। जब हमें ऐसे काम मिलता है तो हम थोड़ा थोड़ा बना कर उन्हें पहले ही दिखा देते हैं। जिससे कोई बदलाव करना हो तो हो सकता है, क्योंकि पूरी तैयार होने के बाद बदलाव की गुँजाइश नहीं रहती। खाने का टाइम हो गया था तो उन्हें खाना खिला कर ही भेजा और उन्हें बोल दिया कि एक बार आप देखने आ जाना अगर आपको ठीक लगेगा सब तो हम बना देंगे। आप अपना ने दे दिजिए माँ ने कोई बात करनी होगी तो आप से कर लेंगी। विपिन जी ने पूछा तो मैंने बोल दिया कि कामिनी के पास है आप ले लीजिएगा। मेरी इस बात पर वो बोले क्यों आप को डायरेक्ट बताने में कोई दिक्कत है? मैं उनकी बात सुन कर झेंप गयी, नहीं दिक्कत कोई नहीं है, ठीक है आप नोट कर लीजिए। नं नोट करने के बाद बोले, इतना बढिया काम करते हैं आप लोग तो कम से कम विजिटिंग कार्ड ही छपवा लीजिए तो मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ और मैंने तुरंत अपने पर्स में से एक कार्ड निकाल कर दे दिया। थोड़े और विजिटिंग कार्ड मुझे दे दीजिए, कोई पूछेगा तो दे दूँगा। मैंने चुपचाप उन्हें कुछ कार्डस दिए। विपिन जी की सधी हुई आवाज, गहरी नजरें और स्मित मुस्कान में कुछ तो आकर्षण था जो मुझे बाँध रहा था......क्यों मैं ऐसा महसूस कर रही हूँ, समझ नहीं पा रही। अब मैं 13-14 साल की बच्ची जानकी नहीं हूँ, जिसके लिए ये अहसास नया हो पर सब जानते हुए भी कुछ अच्छा सा महसूस कर रही थी।बहुत उठा पटक चल रही थी दिमाग में पर दिल भी समझ तो रहा था, पर मान नही रहा था। क्या पता ये मेरा वहम ही हो, पर मैंने जो उसकी आँखो में देखा था, उसमें कुछ तो था। औरत तो झट से पहचान जाती है की सामने पुरूष उसको किन नजरों से देख रहा है, विपिन की नजरों में गलत भाव नही था। जब दिमाग और दिल दोनों में शोर बढने लगा तो मैं सारा काम एक तरफ कर लेट गयी.....दिल दो हिस्सों में बँट कर वाद विवाद कर रहा था। एक हिस्सा कह रहा था कि कोई अच्छा लग रहा है तो हर्ज क्या है, पर दूसरा हिस्सा ये मानने को तैयार न था।उसके अपने तर्क थे, जो मुझे कह रहे थे कि मेरे अंदर की जानकी कितनी मैली सोच लिए हुए है, जो इतना कुछ होने के बाद भी अपने मन को काबू न करके फिर किसी को देख कर आकर्षित हो रही है। मेरे अंदर की जानकी जिसे कभी वो नहीं मिला जो उसको चाहिए था....मुखर होती जानकी को चुप कराना आसान नहीं हो रहा था। मुझे तो ऐसा लगता है कि पुरूष और स्त्री अंदर से एक जैसे ही होते हैं, फिर न जाने क्यों हम औरतें अपनी इच्छाओं को मार डालती हैं, शायद समाज का खौफ क्योंकि पुरुष प्रधान हमारा समाज ऐसी औरतों को एक मिनट में चरित्रहीन करार कर देता है.....मेरे अंदर का शोर तब बंद हुआ जब फोन की घंटी बजी। फोन किसी अनजान नं से था, हैलो बोलने पर दूसरी तरफ से आवाज आयी, जानकी जी ये मेरा नं है, सेव कर लीजिए..आवाज विपिन की थी। जी ठीक है.....सेव कर लेती हूँ, कह कर फोन रखने लगी तो दूसरी तरफ से आवाज आयी आप हमेशा इतनी जल्दी में क्यों रहती हैं? या आप मुझसे डरती हैं? नहीं ऐसी बात नहीं है और न ही मैं किसी से डरती हूँ.....छोटे छोटे जवाब देते देते ही न जाने कब मैं आराम से बातें करनी लगी और उनकी सुनने लगी। बातें मेरे काम को ले कर और आगे क्या और कैसे करना चाहती हूँ, बस यही सब थी पर मैं उस दिन बहुत खुश थी। मैंने दिल और दिमाग की लड़ाई को ये कह कर बंद कर दिया कि जिंदगी को इतना सोच सोच कर बिताना जरूरी नहीं। कोई अच्छा लग रहा है तो लगने दो क्यों और किसके लिए मैं अपने आप को रोकूँ......काम को ले कर मैं कोई लापरवाही न करती थी न किसी को करने देती थी.....विपिन जी जब तब फोन करने लगे थे तो मैंने उन्हें सीधा बता दिया की मैं रात को 9 बजे के बाद फ्री होती हूँ, तो तभी बात कर पाऊँगी। शायद विदेश से आ कर कोई दोस्त अभी तक नहीं बना होगा, तभी फ्री होने पर मुझे ही फोन करने लगते हैं......मुझे भी उनसे बात करना अच्छा लग रहा था, पर मैं सावधान थी कि कुछ ऐसा न करूँ जिससे मैं धोखा खाऊँ। कामिनी बदल गयी थी या बदलने का नाटक कर रही थी, पर मैं उससे एक दूरी बनाए हुए थी।
काम बढ़ रहा था तो स्टॉफ भी बढना ही था। काफी दिनों के बाद सुमन दीदी का फोन आया था उस दिन काफी देर बात हुई तो उन्होंने बताया कि वो पिछले दिनों बहुत काम होने की वजह से बात नहीं कर पायीं......उनके वहां जन्मदिन से लौटने के बाद ये पहला फोन था दीदी का। मैंने भी कहा कि कोई बात नहीं दीदी, मुझे भी यही लगा कि काम ज्यादा होगा आपके पास तभी आपने फोन नहीं किया और मैं भी पिछले कुछ दिनों से काफी बिजी थी तो मैं भी आपको फोन नहीं कर पायी......आप बच्चो और जीजा जी के साथ कभी आने को प्रोग्राम बनाओ, बहुत दिन हो गए आप लोगों से मिले हुए.....। हाँ भाभी उसी के लिए फोन किया था अगले रविवार को हमारी शादी की सालगिरह है तो आपको लंच पर आना है, आप अभी से लिख लो दिन और तारीख। ये भी कोई कहने की बात है जरूर आऊँगी...दीदी लंच घर पर है या कहीं बाहर ? घर पर ही है, सुनील भाई,कामिनी और उनकी फैमिली पापा और चाची को कह दूँगी...देखते हैं कौन कौन आता है !! हाँ दीदी आप तो कह देना....फिर वो आएँ या नहीं वो देख लेंगे बाकी कामिनी और सुनील भैया तो बच्चों के साथ आ ही जाँएगें......भाभी आपको बुरा लगा होगा न मैंने बच्चों के जन्मदिन पर भाई साहब को उनके परिवार सहित बुला लिया था, पर क्या करती यहाँ सब ने फोर्स किया तो बुलाना पड़ा ये सब शायद मैंने आपको पहले भी कहा होगा और पता नहीं आपको मेरी इस बात पर कितना यकीन होगा पर सच यही था, मैंने तो ऐसे ही कह दिया था और बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी की वो चले आएँगे पर यकीन मानो भाभी न मैं भूली हूँ और न सुनील भाई जो उन्होंने माँ के साथ किया। हम दोनों बहन भाई हमेशा आपके साथ हैं.....दीदी आप भी पुरानी बातों को ले कर बैठ गयीं, मुझे बुरा नहीं लगा और आगे भी नहीं लगेगा तुम दोनों अपने भाई से मेरी वजह से रिश्ता तोड़ कर मत रखना और आपस में आते जाते रहना......माँ के समय वो नहीं आए, पर गलती को पकड़ कर बैठे रहने से क्या होगा.....खून के रिश्ते यूँही नहीं तोड़े जाते।भाभी बहुत बड़ा दिल है आपका, न जाने कौन सी मिट्टी की बनी हो, मेरी बात सुन कर जब दीदी ने कहा तो क्या कहती उनको? बस इतना ही बोल पायी कि "ऐसा नहीं है दीदी दर्द तो मुझे भी होता है पर अब सहन करना सीख लिया है, नहीं तो ऐसे अकेले कमजोर जानकी कैसे सब संभालती!! आप दोनों के साथ की वजह से ही ये सब संभव हुआ है और माँ ने हमेशा साथ दिया था मेरे हर काम में तभी तो आत्मनिर्भर होने की हिम्मत कर पायी थी"!! अच्छा दीदी मिलते है रविवार को कह कर मैंने फोन रख दिया। दीदी की शादी की सालगिरह की तैयारी भी करनी हैं, सोच कर फिर काम में लग गयी। विपिन जी और कामिनी का फिर आना हुआ, इस बार मैंने ही बुलाया था सैंपलंस देखने के लिए......दोनों ने देख कर फाइनल कर दिया तो काम करने के लिए दे दिए.....कामिनी को देखते ही तारा अपने आप चाय नाश्ते की तैयारी करने चली जाती है, बस यही छोटी छोटी बातों का जो ध्यान रखती है न बस बहुत प्यारी लगती है मुझे तारा.....कामिनी ने चाय पीते हुए सुमन दीदी की सालगिरह की बात छेड़ दी। मैंने बताया कि हाँ दीदी का फोन आया था 1-2 दिन पहले मुझे इंवाइट करने के लिए.....कामिनी चाहती थी कि दीदी के लिए एक अच्छी सी साड़ी उसकी तरफ से मैं तैयार करवा दूँ और जीजा जी के लिए मार्किट से गिफ्ट ले लेंगे......मैंने कहा ठीक है, मैं तैयार करवा दूँगी। आप भी जा रही हैं लंच पर विपिन जी ने पूछा तो मैं अचकचा गयी। हाँ भाई, भाभी जाएँगी हम दोनों का रिश्ता सुमन दीदी से बराबर का है।
क्रमश:
स्वरचित
सीमा बी.
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