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ये सब ताड़न के अधिकारी

आज मैं आपसे श्री रामचरितमानस की एक ऐसी चौपाई पर चर्चा कर रही हूं जो लंबे समय से विवाद का विषय बनी हुई है। हां जी, आप बुद्धिमान है, आपने बिल्कुल ठीक समझा। आपने तो हमारी बात को कहने से पहली ही ताड़ लिया। हां जी यह वाक्य आपके ही लिए हैं ।परंतु आज मैं इसी वाक्य के माध्यम से अपनी बात को स्पष्ट करना चाहूंगी। श्री गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है
ढोल गवार शूद्र पशु ना
यह सब ताड़न के अधिकारी
जैसे उपर्युक्त
वाक्य में ताड़न शब्द का अर्थ आप को मारने पीटने से कदापि नहीं है ठीक उसी प्रकार इस चौपाई में भी ताड़न का अर्थ प्रताङना देने से या मारने पीटने से ना होकर उन्हें भली प्रकार समझने से ही है। यह बात अलग है कि हर वस्तु या व्यक्ति को समझने का तरीका भिन्न-भिन्न हो सकता है। दूसरी बात यहां यह भी समझना परम आवश्यक है कि शब्दों का विभिन्न अर्थों में भी प्रयोग होता है आप भलेहीअपने बुद्धि स्तर के अनुकूल किसी एक प्रचलित सामान्य अर्थ को ही किसी शब्द का अर्थ मानते रहे हो परंतु भाषा की दृष्टि से और शब्द के और भी अनेक अर्थ हो सकते हैं। समय वपरिस्थितियों के अनुकूल हम शब्दों के अर्थ , भाषा की तीन शक्तियों ----अभिधा ,लक्ष्णा तथा व्यंजन। के अनुसारअभिधार्थ ,लक्ष्य।र्थ तथा व्यंग्य अर्थ रूप में भी ग्रहण करते रहते हैं और यह बहुत सामान्य सी बात है ,जैसे बुद्धिमान शब्द का अभिधा अर्थ बुद्धि से संपन्न विद्वान या चतुर होने पर भी ,व्यंग मे कहे जाने पर उसका अर्थ मूर्ख भी ग्रहण कर लिया जाता है ।इस चौपाई में ताड़न शब्द का अर्थ प्रताड़ित करना ना होकर उन्हें समझने से है यह तो आप समझ ही गए होगे ,परंतु अब शेष शब्दों ---ढोल, गवार ,शूद्र ,पशु एवं नारी--- को भी समझने की आवश्यकता हैl सर्वप्रथम इनके वास्तविक अर्थ को समझा जाए ।दूसरा यह कि तुलसीदास जी ने जो ताङन शब्द द्वारा इन पांचों को समझने की बात की है तो हमें यहां यह देखना होगाकि इन सभी को कैसे समझ। या समझाया जा सकता है-------
(1) ढोल ----यह एक संगीत वाद्य यंत्र होने के कारण इसे स्वरों के अनुकूल समझने की आवश्यकता है उसकी कौनसी डोरी को कितना और कैसे खींचे जावे ,जिससे ढोल से सही रूप में स्वरों को निकाला जा सके।
(2) गवार -----इसका शाब्दिक अर्थ तो गांव में रहने वाला भी हो सकता है ,परंतु नहीं ,यहां इसका लक्ष्य।र्थ ग्रहण करते हैं अर्थात्अल्प बुद्धि वाला या कम समझ वाला। अतः हमें उसे समझाने के लिए किसी पांडित्य ज्ञान या शास्त्र सम्मत ज्ञान की आवश्यकता ना होगी अपितु सरल व व्यवहारिक ज्ञान के रूप में है उसे समझाया जा सकता है।
(3)शूद्र ----मनुस्मृति में कहा गया है -----
जन्मना जायते शूद्रः l
संदस्कारात् द्विज उच्यते l
अर्थात् प्रत्येक व्यक्ति जन्म से शूद्र ही उत्पन्न होता है तदुपरांत संस्कारों द्वारा संस्कारित होने पर ही वह द्विज (दूसरा जन्म लेने वाला )कहलाता है यहां पर ---शूद्र एवं द्विज ---दोनों ही शब्दों का अर्थ किसी जाति विशेष से ना होकर क्रमशः संस्कार रहित अपवित्र तथा संस्कारवान होने से है अतः संस्कार हीन होने के कारण अशुद्ध विचारों से युक्त शुद्र को संस्कारों द्वारा ही समझने योग्य बनाया जा सकता है और यह उसका अधिकार भी है कि उसे संस्कारित किया जाए l
(4) पशु---- पाशविक व्रृतियों से युक्त होने के कारण ही उसे पशु कहा जाता है lपशुओं में विवेक तथा चिंतन शीलता का अभाव होता है lइस चिंतनशीलता के गुण के अभाव के कारण ही हम अनेकों वार हम
मानव को भी गधा ,उल्लू ,कुत्ता ,ऊंट ,जैसे जानवरों की उपाधि दे देते हैं lपशु की विवेक शून्यता का एक उदाहरण दृष्टव्य है l--------
एक बार एक धोबी प्रतिदिन गधे पर कपड़े लादकर नदी किनारे ,कपड़े धोते समय, उस गधे को रस्सी द्वारा खूॅटे से बांध देता था lपरंतु एक दिन वह रस्सी ले जाना भूल गयाl उसे चिंतित देखकर ,किसी विद्वान के परामर्श के अनुसार धोबी ने गधेे को खूॅटे के पास ले जाकर, रस्सी ना होने पर भी केवल क्रिया द्वारा गधे के गले से रस्सी लेकर खूंटे से बांध दिया और गधा भी अपने को बंधा हुआ सोच कर दिनभर चुपचाप खड़ा रहा lशाम को भी उसी प्रकार की क्रिया द्वारा वह गधे को खोल कर ले गया lअब देखिए यहां पर उस विवेक शून्य पशु को समझाने हेतु उस विद्वान का परामर्श कितना उपयोगी सिद्ध हुआ lउसकी विवेक शून्यता का प्रयोग भी सकारात्मक गतिविधि के रूप में किया गया l
(5 ) नारी. नारी शब्द की निष्पत्ति नार् शब्द से हुई हैl जिसका अर्थ है ---(जल)--- इस बात की पुष्टि" नारायण" शब्द से भी होती है l नार आयन= नारायण अर्थात जल (समुद्र )में निवास करने के कारण ही विष्णु भगवान को नारायण कहा गया lनारी शब्द का उपयोग स्त्री के अतिरिक्त अन्य अर्थों में भी प्रयोग किया जाता रहा हैl
(1) पूर्व काल में ग्रामीण क्षेत्रों में खेतों में पानी देने हेतु चमड़े के चरस द्वारा कुऍ से पानी निकाला जाता था lउसमें जिस विशेष रस्सी का उपयोग किया जाता था उसे नारी कहा जाता था क्योंकि उस रस्सी को मुलायम बनाए रखने हेतु नार अर्थात जल में डुबा कर रखा जाता था lउस नारी के उपयोग को समझने हेतु उस पर प्रयोग के सही तरीके को समझना होगा l
(2)---नार (जल )की अर्थात आद्रता की अधिकता के कारण ही स्त्री को नारी कहा जाता है lइस बात की पुष्टि राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी की पंक्तियों द्वारा भी होती है -----
नारी तेरी यही कहानी l
आंचल में है दूध और आंखों में पानी l
दूध और पानी दोनों ही शब्द "---आद्रता व जल"---- की अधिकता की ओर ही इंगित करते हैं परंतु पुरुष वर्ग का दुर्भाग्य है कि वह इन दोनों को ही उसकी कमजोरी के रूप में देखता रहा और उसे अवला बना बैठा lवह नारी के आंचल के दूध में सृष्टि के पालन पोषण की क्षमता को ना देख सका lउसकी आंखों के आंसुओं में दूसरों के लिए द्रवीभूत होने तथा दूसरों के दुख से पीड़ित ह्रदय की भावनाओं को अश्रुधारा में बहते हुए न देख सकाl इसका एक प्रत्यक्ष प्रमाण --"रोमन चैरिटी "--के नाम से प्रसिद्ध एक ऐतिहासिक घटना से समझा जा सकता है जिसमें इटली के सिमोन नामक व्यक्ति को भूखा रखकर मारने की दृष्टि से जेल में डाल दिया गया था परंतु उसके"-- पैरों"-- नामक बेटी ने मिलने के बहाने से पिता को अपना स्तनपान करा कर कई वर्षों तक जीवनदान दिया lकई वर्षों तक उसके न मरने का रहस्य जब उजागर हुआ तो शासक को भी उस नारी की ममता के आगे नतमस्तक होना पड़ा और उस व्यक्ति को बंधन से मुक्त कर दिया गया नारी में जड़ता नहीं अपितु जल के समान गति हैl कठोरता नहीं बल्कि सहृदयता तथा कोमलता है lभावनाओं का सागर है , जो अश्रु बन कर झलकता दिखाई देता है lजल (नार )की इस अधिकता के कारण ही उसे नारी कहा जाता है lअतः नारी को समझन( ताङने )के लिए उसकी भावनाओं को , कोमलता को , त्याग को , समझना आवश्यक है l
(3) न अरि अर्थात् जिस की दृष्टि में कोई भी उसका शत्रु नहीं है lवह सभी को समान रूप से ममत्त्व व
अपनत्व प्रदान करने वाली है lसमाज भी नारी के इसी गुण को स्वीकार कर उसे सदैव देवी के रूप में मानता रहा है l वह सदा यूं ही पूजनीय रही है ----
"यत्र नार्यस्तु पूज्यंते , रमन्ते तत्र देवता "
आइए अब हमें समझना है चौपाई का अंतिम शब्द "--"-"अधिकारी"--" अधिकार और कर्तव्य "--दोनों शब्द परस्पर पूरक है जो कार्य एक का अधिकार होता है वह दूसरे के लिए कर्तव्य बन जाता है l श्री गोस्वामी जी द्वारा अधिकारी कहने का लक्ष्य यह है कि इन पांचों का यह अधिकार है कि समाज में लोग उनको उपर्युक्त बताए गए प्रसंग अनुसार समझे और जब तुलसीदास जी उन्हें यह अधिकार प्रदान कर देते हैं तब हम सभी का यह कर्तव्य बन जाता है कि हम इन शब्दों को ,--अपने मस्तिष्क में बिठाए हुए उन घिसे पिटे अर्थों से निकलकर, शब्दों के अर्थों को गहराई से समझने का प्रयास करें तथा अनावश्यक विवादों से बचे l हमारे अधिकांश शास्त्र व साहित्यक ग्रंथ प्रतीकात्मक भाषा में लिखे गए हैं lअतः उनके सही अर्थ समझने हेतु शब्द शक्तियों को गहनता से समझना होगा केवल राजनीतिक लाभ हेतु महान साहित्यकारों के साहित्य से खिलवाड़ न करें l

इति
डाॅ श्रीमती ललित किशोरी शमाॅ
से नि प्राध्यापक