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मैं नन्हा सा दीपक

दीदी--- देखो बच्चों !यह तो आप सभी जानते हैं कि दीपावली का पर्व हिंदुओं का एक पवित्र त्यौहार है। इसे रोशनी या प्रकाश का त्यौहार भी कहा जा सकता है क्योंकि इस दिन सभी अपने घरों में ढेर सारी रोशनी करते हैं और बहुत सारे छोटे छोटे नन्हे नन्हे से दीपक भी जलाते हैं। यह मिट्टी का दीपक स्वयं तो नन्हा सा होता है परंतु दूसरों को ढेर सारा प्रकाश देता है।

लड़की---- दीदी दीपावली का क्या अर्थ होता है? इस त्यौहार का नाम दीपावली क्यों पड़ा?

दीदी---- दीपावली शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है दीप अवली। दीप का अर्थ है दीपक और अवली का अर्थ है पंक्ति। अर्थात दीपों की पंक्तियां। इस त्यौहार पर बहुत सारे दीपको को पंक्ति बद्ध रखकर जलाते हैं। दीपकों को पंक्ति बद्ध जलाने के कारण ही लोग इस पर्व को दीपावली कहने लगे।

लड़की--- दीदी ! मुझे दीपावली पर एक कविता याद है मैं सुनाऊं क्या?

दीदी--- हां हां अपने भाई बहनों को दीपावली की कविता अवश्य सुनाओ।

लड़की---- दीपों की अवली का पावन , पर्व हमें तो भाता है।
आंगन आंगन दीप जलाकर , घर जगमग कर जाता है।। 1।।

रावण मार अयोध्यापति जब राम अयोध्या लौटे थे।
लक्ष्मी स्वरूपा सीता जी को, घर घर पूजा जाता है। । 2।।

घर आंगन में खुशियां छाई, दीप जले द्वारे द्वारे।
नवोल्लास मैं सब जन डूबे ,मन पुलकित हो जाता है।। 3।।

दीदी--- तुम्हारी कविता तो वास्तव में बहुत अच्छी है । अरे ! देखो वह कौन आ गया।

लड़की ---अरे भाई ! तुम कौन हो? क्या करते हो? और हमें क्या बात लाने के लिए आए हो?

बालक---( दीपक के रूप में) मैं ! मैं कौन हूं? क्या तुम मुझे नहीं जानते? तो सुनो

गर अंधेरे कभी आपको घेर लें
बार लेना हमें, तम निगल जाएंगे।
भोरकी हम पहली किरण तो नहीं
हम दिए हैं, अंधेरे में काम आएंगे।।

लड़की ---अरे ! यह तो एक नन्हा सा दीपक है और बातें इतनी बड़ी बड़ी।

बालक--- जी हां, तुमने बिलकुल ठीक पहचाना मैं एक नन्हा सा दीपक हूं परंतु बड़ा बनने के लिए आकार में बड़ा होना कोई जरूरी नहीं है। मैं नन्हा सा दीपक होकर भी सारे जग को ढेर सारा प्रकाश देता हूं अभी तो तुम दीदी के साथ बैठी दीपावली की बात कर रही थी और मेरा ही गुणगान कर रही थी। मेरे प्रकाश के कारण ही तो लोग इस त्यौहार को दीपावली के नाम से जानते हैं।

लड़की---- हां, यह तो हमें अभी दीदी ने बतलाया कि तुम कितने महान हो । स्वयं जलकर भी दूसरों को प्रकाश देते हो।

बालक--- हां , तुमने बिल्कुल ठीक कहा मैं अपने प्राणों की आहुति देकर भी आप सब को प्रकाश देता हूं।

दीदी ----परंतु बच्चों क्या तुम जानते हो कि दूसरों को कुछ देने से पहले स्वयं को त्याग और तपस्या के लंबे दौर से गुजरना पड़ता है।

बालक ----हां दीदी ने बिल्कुल ठीक कहा । मुझे भी सारे संसार को प्रकाश देने के लिए कोमल मिट्टी से लेकर ठोस इस दीपक के रूप तक आने में त्याग और तपस्या की एक लंबी यात्रा तय करनी पड़ी है।

लड़की ---आहा ! नन्हा सा दीपक और बात करते हो त्याग तपस्या की लंबी यात्रा की।

बालक---- देखो ना दीदी ! अब आप ही इसे समझाइए ना, कि इस दीपक ग्रुप में आने तक मुझे कितनी लंबी यात्रा करनी पड़ी। कितने कठिनाइयों से गुजरना पड़ा । मानव के निष्ठुर पैरों तले मुझे रौंदा गया । कर्मठ हाथों द्वारा मसला गया और चाक पर भी चढ़ाया गया तब कहीं इस रूप तक पहुंच पाया हूं। मैं तो प्रारंभ में अपनी मां की गोद में सोया पड़ा था। मुझ अबोध को तो अपनी आरंभिक अवस्था का ठीक से ज्ञान भी नहीं है। परंतु दीदी ! आप तो बड़ी हैं आपने सब कुछ देखा होगा। तब आप ही सुनाइए ना मेरी कहानी।

लड़की ----.दीदी ! दीपक की मां इसकी लंबी कहानी यह सब क्या बोले जा रहा है मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा है । दीदी आप ही बताइए ना कौन है इसकी मां ! और कैसे हुआ इसका जन्म?


दीदी---- यह नन्हा सा दीपक बिल्कुल ठीक कह रहा है इस दीपक के रूप में आने के लिए इसे त्याग और बलिदान की एक बहुत लंबी यात्रा तय करनी होती है। जीवन के अनेक पड़ावो से गुजरना होता है इसे ही क्यों? महान बनने के लिए प्रत्येक प्राणी को अपने जीवन में मुश्किलों के अनेक पड़ाव पार करने पड़ते हैं।

लड़की--- यह तो ठीक है परंतु इस दीपक की मां कौन है? यह तो बताइए।

दीदी---- दीपक की मां मिट्टी है। इस दीपक की ही क्यों? हम सब की मां भी तो मिट्टी है। आज से हजारों वर्ष पूर्व की बात है जब यह दीपक अपनी मां के गर्भ में अचेतन अवस्था में सोया पड़ा था। इसे स्वयं को तथा दुनिया वालों को इसके अस्तित्व का ज्ञान भी न था । जिसने कभी सोचा भी ना था कि कभी मां के गर्भ के बाहर निकल कर इसे दुनिया वालों के सामने भी आना पड़ेगा । अपनी मां के गर्भ में ,मिट्टी की सोंधी सोंधी सुगंध, मंद सुगंधित हवा और आद्रता का सेवन करता हुआ उसी प्रकार सोया पड़ा था जिस प्रकार कोई अबोधबालक दुनिया की रंगीनियों से बेखबर अपनी मां के सानिध्य का आनंद लेता हुआ प्रेम पूर्वक उसकी गोद में सोया रहता है। इसी प्रकार से मां के गर्भ में पड़े पड़े बहुत लंबा समय व्यतीत हो गया।

बालक ----फिर मैं बाहर कैसे आया दीदी? और मेरा जन्म कब और कैसे हुआ?

दीदी---- बहुत लंबा समय बीतने के बाद अचानक एक दिन मानव के मन में मिट्टी को नए रूपों में ढालने की भावना जागृत हुई। और तभी मानव ने कुदाली और फावड़ा लेकर मिट्टी को खोदना शुरू कर दिया। कुदाली और फावड़ा के अनगिनत करोड़ों प्रहार इसकी मां मिट्टी को अपनी छाती पर झेलने पड़े। परंतु इसकी मां मिट्टी तो मानो सहनशीलता की साक्षात मूर्ति है। करोड़ों प्रहार सहने पर भी उसने उफ तक नहीं की क्योंकि वह मां थी । उसने इन प्रहारों को इसलिए सहन किया क्योंकि उसे अपने बच्चों को जन्म देना था। प्रत्येक मां अपने बालक के जन्म लेने की प्रतीक्षा में बड़े से बड़ा कष्ट सहन कर जाती है।

लड़की---- प्रत्येक मां इतने कष्ट सहन करती हैं? तब तो हमें अपनी मां का बहुत आदर करना चाहिए।

बालक ---फिर क्या हुआ दीदी ! मेरा जन्म किस प्रकार हुआ?

दीदी ----हां तो फावड़े और कुदाली से खोजने के पश्चात गाड़ियों में भर-भर कर मिट्टी को कुम्हार के घर ले जाया गया।

लड़की--- यह कुम्हर कौन होता है? दीदी ! और कुम्हार के घर मिट्टी को क्यों ले जाया गया?

दीदी ----मिट्टी के बर्तन बनाने वाले व्यक्ति को कुम्हार कहते हैं और मिट्टी को वहां इसलिए ले जाया गया क्योंकि कुम्हार के घर पर ही इस नन्हे से दीपक का जन्म हुआ। वही इसका सृजन कर्ता है। तथा इसे स्वरूप प्रदान करने वाला भी वही है।

बालक---- दीदी ! ठीक से विस्तारपूर्वक बताइए ना, कि मेरा जन्म किस प्रकार हुआ?

दीदी----- हां भाई दीपक मैं समझ रही हूं कि तुम अपने जन्म की कहानी को विस्तार से सुनने के लिए कितने लालायित हो रहे हो। तो सुनो, जब मिट्टी को कुम्हार के घर लाया गया तो कुम्हार ने उस मिट्टी में पानी डालकर गीला होने के लिए रख दिया और तब कुछ दिनों तक और मिट्टी पानी की आद्रता को अपने में समेटती हुई उस घर के एक कोने में पड़ी रही । और तभी अचानक एक दिन कुम्हार का ध्यान उस मिट्टी की ओर आकर्षित हुआ जो कई दिनों से पानी से गीली होने के कारण पूरी तरह मुलायम बन चुकी थी। परंतु उतना मुलायम बन जाने पर भी अभी कुम्हार का मन संतुष्ट न था उसने मिट्टी में कुछ और पानी डालकर जोर-जोर से उसे पैरों से रौंदना शुरू कर दिया।

- बालक--- क्यों दीदी? मेरे जन्म के लिए क्या मेरी मां को इतने अधिक कष्ट सहन करने पड़े कि उसे पैरों तक से रौंदा गया।

दीदी---- हां दीपक संसार को कुछ देने के लिए कष्ट तो उठाने पडते हैं और फिर तुम्हारी मां तो सहनशीलता की साक्षात देवी है । संसार में त्याग और सहनशीलता के लिए सदैव तुम्हारी ही मां का उदाहरण दिया जाता है । वह बड़े से बड़ा कष्ट सहकर भी सदैव मोन रहती है । इतनी अधिक सहनशील होने के कारण ही तो उसने तुम जैसे बेटे को जन्म दिया। तुम भी तो अपने त्याग के कारण जगत प्रसिद्ध हो।

लड़की----- हां यह बात तो ठीक है कि दीपक स्वयं जलकर भी दूसरों को प्रकाश देता है परंतु इसके जन्म की कहानी तो पूरी कीजिए। मुझे सब कुछ जानने की बहुत उत्सुकता हो रही है।

दीदी---- हां तो जब कुम्हार ने मिट्टी को पैरों तले रौंदना शुरू किया तो वह बेचारी चुपचाप सब कुछ सहन करती रही। इतना ही नहीं वल्कि, जितना अधिक वह पैरों के तले रौंदता रहा मिट्टी उतनी ही और अधिक कोमल और मुलायम होती चली गई।

बालक ----धन्य है मेरी मां । वास्तव में उसकी सहनशक्ति की जितनी अधिक प्रशंसा की जाए उतनी ही कम है।

- दीदी----- मिट्टी के पूर्णत: मुलायम हो जाने पर कुम्हार ने उसे हाथ से एकत्रित कर मिट्टी के बड़े-बड़े कई लौंदे या गोले बना लिए। और अब बारी थी उसे चाक पर चढ़ाने की। अब कुम्हार ने बैठकर एक लकड़ी के द्वारा उस गोल चाक को जोर-जोर से घुमाना प्रारंभ कर दिया। चाक के घूमना शुरू हो जाने पर मिट्टी के लौंदे को चाक की धरी पर लगा दिया । और अब समय आ पहुंचा था दीपक के जन्म लेने का।

बालक--- तो क्या दीदी ! मेरे जन्म से पूर्व मेरी मां को उस नुकीली धूरी पर भी चढ़ना पड़ा?

दीदी--‐-- हां दीपक ! चाक की उस धूरी पर मिट्टी के चढ़ जाने पर ही तुम्हारा जन्म संभव था।

लड़की ----फिर क्या हुआ दीदी ! जल्दी बताइए ना।

दीदी ---मिट्टी को चाक पर चढ़ाने के बाद कुम्हार ने अपने हाथों का सहारा देना प्रारंभ किया और तब धीरे-धीरे देखते ही देखते मिट्टी और कुम्हार के हाथों की सहायता से बहुत ही सुंदर, सलोना, रूपवान इस नन्हे से दीपक का जन्म हुआ। चारों ओर खुशी दौड़ गई। कुम्हार की पत्नी और बच्चे भी तुम्हारे इस मनमोहक रूप को देखकर फूले नहीं समा रहे थे। कुम्हार भी अपनी इस सफलता पर अत्यधिक आनंदित था।

लड़की---- फिर क्या हुआ दीदी?

दीदी ----फिर क्या था । अपनी सफलता से प्रेरित होकर कुम्हार ने सैकड़ों ,हजारों , लाखों ही नहीं बल्कि करोड़ों दीपको का सृजन किया और तभी से इस नन्हे से दीपक के करोड़ों भाइयों के जन्म की गाथा प्रारंभ हो गई।

बालक--- दीदी ! मेरे उन करोड़ों भाइयों का क्या हुआ? क्या वे कुम्हार के घर में ही पड़े रहे?

दीदी ----अरे क्या तुम नहीं जानते कि तुम्हारे उन करोड़ों भाइयों का क्या हुआ? जब तुम यहां तक आ पहुंचे हो तो तुम्हारे अन्य करोड़ों भाई कुम्हार के घर में ही पड़े रहना क्यों पसंद करेंगे?

लड़की -----तो फिर इसके भाइयों का क्या हुआ? वे सब कहां है दीदी?

बालक ----हां दीदी बताइए न। मेरे भाइयों को कौन ले गया और उनका क्या हुआ?

दीदी---- अरे भाई दीपक ! अपने भाइयों की बात बाद में करना। अभी तो तुम्हारा केवल जन्म हुआ है। जन्म के बाद यहां तक आने की और दूसरों को प्रकाश देने योग्य बनने की लंबी कथा तो अभी शेष है।

दोनों ----अरे हां ! हम तो भूल ही गए । किस-किस जन्म के बाद क्या हुआ दीदी?

दीदी ----कुम्हार ने दीपक का निर्माण करने के बाद उसे सूर्य का ताप प्राप्त करने के लिए धूप में रख दिया। सूर्य का ताप प्राप्त करने के पश्चात इस दीपक को इसके अनेकों भाइयों के साथ और अधिक मजबूत बनाने की दृष्टि से अग्नि से तपती हुई भट्टी में रख दिया गया। भट्टी में तपने के बाद , दीपक अब लालायित था--- कुम्हार के घर से बाहर निकल कर समाज में हजारों लाखों लोगों के हाथों तक पहुंचने के लिए।

लड़की -‐--फिर क्या हुआ दीदी? वहां से यह बाहर कैसे निकल पाया?

दीदी ----कुम्हार के घर के कोने में पडा हुआ दीपक और इसके लाखों भाई पड़े पड़े परेशान हो रहे थे। वे सोच रहे थे कि क्या हम लोग भी कभी बाहर की रंग बिरंगी मनमोहक दुनिया को देख पाएंगे? क्या हम लोग भी समाज के कुछ काम आ सकेंगे? या फिर इस तरह कोने में पड़े पड़े ही हमारा जीवन नष्ट हो जाएगा।

बालक--- तो फिर दीदी ! समाज ने हमारे अर्थात दीपक के महत्व को समझना कब और कैसे प्रारंभ किया?

दीदी -----दीपक की जन्म के साथ ही मानव की सभ्यता और संस्कृति का विकास भी हो रहा था। उसने दीपावली और दशहरा जैसे अनेकों त्योहारों को मनाना भी सीख लिया था। अपने आसपास के अंधेरे को भगाने के लिए वह दीपक का प्रयोग करना सीख चुका था। तभी अचानक एक दिन एक दुकानदार , कुम्हार के घर बहुत सारे दीपको को अपने साथ ले जाने के लिए आ पहुंचा। तब कुम्हार ने भी खुशी खुशी और दुकानदार के साथ दीपको को जाने की अनुमति दे दी।

लड़की ----दीदी ! फिर उस दुकानदार ने ढेर सारे दीपको का क्या किया?

बालक ----हां दीदी ! दुकानदार के पास से यहां तक की यात्रा मैंने कैसे पूर्ण की?

दीदी ----वह दुकानदार तुम्हें लाया था ----घर घर पहुंचाने के लिए। जिससे तुम प्रत्येक घर को प्रकाश दे सको। ऐसा ही हुआ। दीपावली का पावन पर्व आया। सभी लोग भगवान श्री राम और देवी सीता के अयोध्या वापस लौटने की खुशी मना रहे थे। कुछ लोग रावण के मारे जाने पर असत्य पर सत्य की जीत की खुशी मैं आनंदित थे। उधर जैन लोग महावीर स्वामी के निर्वाण प्राप्ति का उत्सव मना रहे थे। समाज के सभी लोगों के खुशी मनाने के कारण भिन्न हो सकते हैं , परंतु खुशी को प्रकट करने का स्वरूप लगभग एक सा ही था । सभी लोग इस खुशी के अवसर पर अपने अपने घरों पर दीपक सजा रहे थे। दुकानदार से दीपक ले आने के बाद दीपक को बाती से सजाया गया। दीपक और बाती का अटूट संबंध है , यह मानव उसकी जीवनसंगिनी है। दीपक को बाती से सजाने के बाद उसे स्नेह अर्थात तेल से युक्त किया गया और फिर इस प्रकार सजने संवरने के बाद दीपक प्रज्वलित हो उठा। सारा घर प्रकाश से जगमगा उठा । मैंने तुम्हें पहले ही बताया है कि ढेर सारे दीपको को पंक्ति बद्ध रखकर जलाने के कारण ही इस पर्व का नाम दीपावली पड़ा।

बालक---- अब तो समझ गई न तुम मेरे प्रकाश का महत्व। मैं नन्हा सा दीपक लोगों के कितने काम आता हूं।

लड़की ----हां भाई दीपक ! तुम तो बड़े ही काम के हो। सभी लोगों के घरों के अंधेरों को दूर करते हो। दीपावली के त्यौहार पर तो तुम अपने प्रकाश द्वारा हमारी खुशी को चौगुना कर देते हो। इस दीपावली पर मैंने भी बहुत सारे दीपक जलाए थे । इन ढेर सारे नन्हें-नन्हें दीपको को टिमटिमाते हुए देखना मुझे बहुत ही अच्छा लगता है।

बालक ----अरे ! तुम्हें ही क्या? प्रकाश तो सभी को बहुत ही अच्छा लगता है। भला कोई अंधेरे में भी रहना पसंद करता है क्या? तभी तो मैं कहता हूं

मैं नन्हा सा दीपक, सब को प्रकाश देता हूं।
मैं खुद को मिटा कर भी , उजालों का संसार देता हूं।

दीदी---- इस प्रकार तुमने इस नन्हे से दीपक के जन्म से लेकर आज तक की लंबी यात्रा की कहानी सुनी। इसकी जगमगाहट से ही दीपावली जगमगाने लगती है । तभी तो कहते हैं


दीपक के जलते प्राण
दिवाली तभी सुहावन होती है।

परंतु इसके तिल तिल जलने की कहानी यहीं समाप्त नहीं होती
इसे तो अनंत काल तक जलते रहना है। यह अपने प्राणों की आहुति देकर भी ,सदैव दूसरों को प्रकाश देता रहेगा और सभी के जीवन को खुशियों से भरता रहेगा।

दीपावली की अनेक शुभकामनाओं के साथ हम विदा लेते हैं।



इति