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स्त्री.... - (भाग-14)

स्त्री.......(भाग-14)

मेरी सास की सहमति के बाद मेरे पति ने विरोध करना ठीक नहीं समझा.... सुनील भैया हमेशा से ही मेरे साथ खड़े रहे हैं, उस दिन भी उन्होंने अपने भाई साहब को मना ही लिया क्योंकि वो माँ के सामने चुप तो रहे, पर उनकी आँखो में गुस्सा सबको साफ दिखायी दे रहा था।
अगले ही दिन माँ के साथ जा कर एक साड़ी और एक डबल बेड की चादर खरीद ली....उनको सब पता था कि कौनसी चीज कहाँ मिलती है, कपड़े की जानकारी भी थी तो कपड़े से लेकर छपाई और धागे सब ले कर आ गए। आने वाला टाइम सुमन दीदी के लिए जी जान से पढने का था और वो बहुत मेहनत कर रही थी....सुबह वो बहुत जल्दी उठ कर पढती और अपने भाइयों के जाने के बाद ऊपर जा कर पढती रहती.....मैं सबसे पहले ऊपर की साफ सफाई कर आती....जिससे दीदी को कोई काम न करना पड़े, ऐसा नहीं था कि वो काम नहीं करना चाहती थी, या मुझे कुछ कहती थी, ये सब मैं अपनी खुशी से करती थी, मैं चाहती थी कि उनका हर सपना पूरा हो....जो बहुत पढने का था।
वो रात को नीचे माँ की वजह से नहीं पढ पाती थी क्योंकि कमरा एक ही था...तो हमने उसका समाधान भी ढूँढ लिया। सुनील भैया अपने भाई साहब के कमरे में सोने लगे और दीदी रात को ठीक से पढ सके, इसके लिए उनके लिए बीच बीच में चाय, फल या बिस्किट देती रहती। मैं उनके पास रात को बैठ कर कढाई करती रहती.....जब वो सोती तो मैं नीचे आ कर सो जाती......माँ सुबह के कामों में मेरे मना करने के बाद भी खूब करती....मैंने अपने गाँव में देखा और सुना भी कि सास बहु को खुश नहीं देख सकती या हर काम में रोक टोक करना, ताने देना यही करती हैं, पर मेरी सास वैसी बिल्कुल नहीं थी, शायद तभी इस घर मे रह भी रही हूँ और जी भी रही हूँ। दीदी के पास सोने से मुझे अपने पति से कुछ दिनों दूर रहने को मौका मिल गया था, जो मुझे खुश रख रहा था..। माँ की गहरी नजरें मेरी हर हरकत पर नजर रखी थीं.....सच भी है माँ से कुछ नहीं छिपता उनके पास बहुत अनुभव था, बस वो कहती कुछ नहीं थी.... मुझे देखती जब मेरे पति मेरे आसपास होते, मैं ये बात जानती थी, पर नाटक नहीं कर पाती थी, क्यों करती और किसलिए करना था मुझे नाटक ? फिर हमारी तो आपस मैं वैसे ही अनबन नहीं थी, बस नहीं था तो एक दूसरे के लिए प्यार और भावनाएँ ।
सुजाता दीदी भी काम और घर परिवार मैं उलझी सी रहने लगी हैं। जब तक दोनो पति पत्नी अकेले थे तब कुछ भी बनाया और खा लिया....पर पिछले कुछ दिनों से सास ससुर दोनों रहने आए हैं, तब से हर काम उन दोनो के हिसाब से और समय पर चाहिए.....जिसके चक्कर में हमारा छत पर मिलना बहुत कम हो गया है। शेखर मित्रा सर ने एक लड़के को हमारे घर भेजा था पता करने के लिए कि मैं क्यों नहीं आ रही.....मैंने बता दिया कि मुझे फुर्सत नहीं है कुछ दिन......इधर दीदी के पेपर खत्म हुए और मेरी दो महीने की मेहनत भी तैयार हो गयी।साड़ी और चादर दोनों ही सबको खूब पसंद आयी..... उस दिन माँ ने मेरी नजर भी उतारी। दीदी के पेपर खत्म और कुछ दिन की उनकी छुट्टियाँ हो गयी। मैं एक बार फिर से अपने कमरे में आ गयी थी।2-3 दिन तो दीदी ने मुझे कोई काम ही नहीं करने दिया....सब काम उन्होंने खुशी खुशी किया। मुझे अपने कमरे में आए हुए 2-3 दिन तो हो ही गए थे। मेरे पति मुझे कुछ परेशान लग रहे थे......वजह
जानना चाहती थी, पर डर लगता था कि गुस्सा न होने लगें....फिर भी तीसरे दिन हिम्मत करके पूछ ही लिया, आप कुछ दिन से परेशान लग रहे हैं, कोई परेशानी है ऑफिस में?? अगर आप चाहें तो बता सकते हैं!! बस ऐसे ही कुछ काम की परेशानी है, तुम्हें बताने से क्या होगा? तुम समझोगी नहीं और दस सवाल पूछोगी??
वो जवाब दै कर मुँह फेर कर लेट गए।आपने सही कहा कि मैं आपकी परेशानी न समझ सकती हूँ और शायद दूर भी नहीं कर सकती पर कहने से मन हल्का हो जाता है...। उनकी तरफ से कोई हलचल न देख में भी लेट गयी। जानकी, तुम सो गयी क्या? कुछ देर बाद उनकी आवाज आयी, मैं उठ कर बैठ गयी, नहीं अभी नहीं, आप बताओ, आप को कुछ चाहिए?? नहीं, चाहिए तो कुछ नहीं मैं कुछ दिन से परेशान हूं क्योंकि मुझे लग रहा है कि मेरी नौकरी खतरे में है, तो बस यही सोच कर डर लग रहा है कि फिर से नयी नौकरी ढूँढनी पड़ेगी.....अभी सुनील इतना नहीं कमाता कि अगर दो तीन महीने काम न मिला तो घर चला पाएँगे।
हाँ ये तो सचमुच परेशानी की बात है, पर आपको किसी ने कुछ कहा? आपको क्यों लग रहा है कि आपकी नौकरी जाने वाली है? कुछ दिनों से मेरे मालिक इंटरव्यू ले रहे हैं नए एकाउंटेंट के लिए। कुछ दिन पहले मुझे जगन ने बताया,जो वहीं काम करता है....। पति का जवाब सुन कर मैं भी चिंता में पड़ गयी पर मैंने अपनी चिंता को छुपा लिया। जब तक आपके मालिक कुछ न कहें आप को सुनी सुनायी बात पर यकीन नहीं करना चाहिए और आपके पास समय है,तब तक आप नौकरी देखना शुरू कर सकते हैं.....कहा तो वो बोले हाँ, मैं भी यही सोच रहा हूँ। बस यही सोच रहा था कि इतने सालों से मैं अपना काम ईमानदारी से करता रहा हूँ, अपनी समझ से मैंने कोई गलती भी नहीं की....। आप इतना मत सोचिए जब जो होगा देखा जाएगा। मैंने कहने को कह तो दिया पर मेरी नींद गायब हो गयी थी। हमारा रिश्ता कैसा भी चल रहा हो, पर हमारा घर तो एक ही है, और तकलीफ आएगी तो दर्द हम सब को उतना ही होगा....तुम ठीक कह रही हो, अभी सोच सोच कर परेशान होने से अच्छा है कि मैं कल 2-3 दिन की छुट्टी ले कर दूसरी जगह काम देखता हूँ, शायद वो इस महीने की सैलरी देते हुए निकालें। तब तक इंतजाम तो करना ही होगा....।
उनकी बात सुन कर मैंने उनके माथे पर हाथ रखा, ऐसा करते हुए मुझे डर लग रहा था, पर उन्होंने कुछ कहा नहीं तो मैं उनका सर दबाने लगी......दर्द होगा शायद तभी उन्होंने मना नहीं किया। सुबह काम पर जाते हुए मुझे थैंक्यू बोल गए और मैं जवाब में मुस्करा दी। मेरा सारा ध्यान उस दिन पति की बातों पर ही लगा रहा.....अगर जो सोच रहे है, वैसा हुआ तो क्या होगा ? माँ मेरे हाथ की बनी साड़ी और चादर आस पास की जान पहचान की औरतों को दिखाने गयी हुई थी.....मैंने ही कहा था उन्हें कि क्या पता कोई बनाने को कह दे। सुनील भैया भी देर से आने लगे थे, कहते काम बहुत है। खाना भी आ कर कम ही खाते क्योंकि उनके सर सब को खाना खिला देते थे।
मुझे रात का इंतजार था, दिल बहुत बेचैन था....पता नहीं क्या हुआ होगा क्या नही्, ये न हो छुट्टी माँगें तो आने को ही मना न कर दे....जब इंतजार होता है किसी का,बस तभी वक्त ठहरा सा ही लगने लगता है.....एक एक पल मुश्किल से कटता है। उस दिन वो रोज से पहले आ गए तो दिल धड़क गया अंजानी आशंका से....। वो अंदर आते ही बोले माँ देखो, इस लिफाफे में क्या है!! कह कर माँ के पैर छू कर लिफाफा उनके हाथ में दे दिया। माँ से वो लिफाफा जल्दी से सुमन दीदी ने ले लिया.....वो पढने लगी, कई भाव उनके चेहरे पर थे....पर दुख के नहीं थे ये तो मैं जान गयी थी, जब उन्होंने पैर छुए। क्या है सुमन जल्दी से बता?? माँ ने दीदी को कहा.....माँ भैया की तरक्की हो गयी है, एक शोरूम खोल रहे हैं इनके मालिक तो वहाँ भाई साहब संभालेंगें। ये तो बहुत अच्छी खबर है, माँ ने दीदी की बात सुन कर खुश हो कर कहा। माँ इतना ही नहीं, मुझे मेरे बॉस वहीं आसपास एक फ्लैट भी दे रहे हैं, हम सबके रहने के लिए। मैंने तो आज 2-3 दिन की छुट्टी के लिए पूछा तो उन्होंने कहा कि बहुत काम है अभी तो छुट्टी बिल्कुल नहीं। उनकी बात सुन कर हम सब के चेहरे खिल गए।
क्रमश:
स्वरचित
सीमा बी.