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प्यारी सासू माँ

 

मेरी सासू माँ, नहीं; माँ कहना ठीक नहीं होगा, सास ही ठीक है क्योंकि माँ तो वह केवल अपने बेटे की है। मेरी तो बॉस है।

मैं तो बिना पगार की मेड हूँ, झाड़ू-पोंछा, जाले साफ करना, खिड़की दरवाजे की सफाई, बर्तन कपड़े धोना फिर कहना कि तुम काम ही क्या करती हो?

मैं दिन भर घर का काम करती हूँ और सास बैठी-बैठी केवल नुस्ख निकालती रहती है, ऐसे नहीं वैसे करो। कभी काम में हाथ नहीं बँटाती।

छोटी से छोटी बात को मुद्दा बनाकर मुझे बुरा भला कहती है। मेरे पति की गलती के लिए भी मुझे सुनना पड़ता जैसे पति गीला तौलिया  टांगना या अपना टिफिन ले जाना भूल जाय । 

किसी दिन देर से उठी तो उनका उपदेश शुरू हो जाता बहू को टाइम से उठना चाहिए। जबकि उनका बेटा जितनी मर्जी देर से उठे। 

बेटा थोड़ी देर क्या बैठा? कहने लगती- कब से बैठा है खाना नहीं दे सकती?’ तुझे मेरे बेटे का जरा भी ख्याल नहीं है।

‘बहू आज मूंग की दाल का हलवा बना देना।‘                                  

‘मुझसे नहीं बनेगा आप ही बना लो।‘ फिर ताना कि ‘तेरी माँ ने तुझे कुछ सिखाया भी है।’ 

 उन्हें मेरा जॉब करना पसंद नहीं था। कहती घर कौन संभालेगा? हमारे घर की औरतें बाहर जाकर काम नहीं करती। तो मैंने जॉब छोड़ा और घर से ही फ्री लांचिंग का काम शुरू कर दिया। अब ठीक है जब घर बैठे कमाई हो सकती है तो बाहर जाने की क्या जरूरत है? 

जब कभी अपने पति के साथ बाहर जाती हूँ वह कपड़ों के चयन पर नाक भौं सिकोड़ लेती। देर से आने पर डांटती और तरह तरह के प्रश्न पूछती कहाँ गए थे? क्या-क्या खाया ? क्या-क्या खरीदा ?

 

मेरा फोन करना उन्हें बिल्कुल नहीं भाता। पति के साथ फिल्म देखने या मेरे भाई बहन की बर्थ डे पार्टी अटेंड करने में भी उनको परेशानी है।

मुझे अपने मायके जाने की परमिसन सास से लेनी पड़ती और वह ना कह दे तो नहीं जा सकती।

मेरी मम्मी के साथ उसका व्यवहार रूखा रहता है। मेरे परिवार के बारे में हमेशा कुछ न कुछ बुरा ही कहती।

फिर भी वह मेरी माँ से अपेक्षा रखती है कि हम सब के लिए हर महीने डिनर रखे और जाते वक्त गिफ्ट दे। 

अगर उन्हें लगे कि हम मेरे परिवार के साथ कहीं जा रहे हैं तो साफ कह देती कहीं जाने की जरूरत नहीं।

वह हमेशा इस बात की टोह लेती रहती है कि हम पति-पत्नी आपस में क्या बात कर रहे हैं। कोई षडयंत्र तो नहीं कर रहे।

बेटे-बहू को साथ में समय बिताने नहीं देती। कहती ‘रूम में बैठी क्या कर रही हो नीचे आकर चावल पीस दो।   

मेरे दोस्तों के साथ घूमना फिरना फिल्म देखना उन्हें पसंद नहीं ‘शादी के बाद यह सब लड़की को छोड़ना ही पड़ता है शौक पूरे करेगी कि घर संभालेगी।’ 

किसी भी महत्वपूर्ण मसले पर बातचीत के पहले देख लेती कि कहीं मैं सुन तो नहीं रही।  

 

पति मेरा कभी पक्ष नहीं लेता न ही किसी तरह से सपोर्ट करता है कहता है माँ है कह दिया तो क्या हुआ !

अब बताइए ऐसी सास को मैं कैसे पसंद कर सकती हूँ?

मैंने अपनी माँ का घर और परिवार छोड़ा, अपनी जीवन शैली छोड़ी, यहाँ तक की करियर भी छोड़ा और इन सबके बदले मुझे मिला क्या? कुछ जली कटी और अपमानजनक फब्तियाँ । क्या मुझे ऐसे ससुराल से मुक्ति पा लेनी चाहिए?