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विस्थापन

 

 

25 विस्थापन   (बेताल कथा 1)     

रास्ता लंबा था। रास्ते को रोमांचक बनाने के लिए बेताल ने राजा विक्रम को एक कहानी सुनाई।   

एक बार की बात है राजतन्त्र ने इतनी उन्नति कर ली कि राज्य में बड़े-बड़े हाई वे बन गए, स्मार्ट सिटी बन गए, मेट्रो और बुलेट ट्रेन दौड़ने लगी, राज्य की सुरक्षा के लिए विदेशों से बड़े-बड़े सौदे किये गए। खनिजों के लिए खदानों ने जंगल खोद दिए।    

दरबार लगा था वजीर ने सलाम करते कहा, “महाराज, देश में विकास बहुत तेज गति से हो रहा है। विकास के रास्ते में आने वाली सभी बाधाओं को समाप्त कर दिया है।” पूरा दरबार चीयर-चीयर करता महाराज की जै जै बोलने लगा।

इतने में एक फ़क़ीर राज दरबार में उपस्थित हुआ। हाथ ऊपर कर चिमटा बजाते-बजाते नाचने लगा। ‘विकास पागल थयो छे। देख राजन तेरे विकास की सताई प्रजा को देख। सुरक्षा कर्मियों ने फ़क़ीर को पकड कर पुलिस को सौंप दिया।       

इतने में बाहर खड़ी आदिवासियों की फ़ौज दरबार में घुस आई। आदिवासी तीर तलवारों से लैस थे। एक आदिवासी युवक ऊंचे स्वर में बोल रहा था राजन, आपकी सरकार व कोर्पोरेट पुलिस दल बल के साथ जंगल में घुस कर हमें बेदखल कर दिया जैसे हम तो इस देश के निवासी ही नहीं है। असल में तो मूलनिवासी हम ही हैं।’ फिर नारे लगे  ‘जल जंगल जमीन हमारे हैं, [कोरस] हमारे रहेंगे।’ ‘विस्थापन बंद करो’ ‘बंद करो बंद करो’  हम लड़ेंगे अपने हक़ के लिए, ‘हाँ हाँ लड़ेंगे’ सब एक स्वर में बोले।  

राजा एकबारगी थरथरा गया। ‘सेनापति ये क्या तमाशा है? ये हमें चुनौती दे रहे हैं। नेस्तनाबूद कर डालो।’ सेनापति और सुरक्षा अधिकारियों ने घेर कर बंधक बना दिया। जेलों में डालकर यातनाएं दी गई।

सेनापति –हजूर लड़ाकू विमानों को आदिवासी इलाकों में तैनात करने के आदेश दे दिए हैं। सेना को मार्च करने का हुक्म दे दिया है। ड्रोन से निगरानी हो रही है। जमीनी सुरंगे बिछा रखी है, नक्सल है सब साले। एक तरह का युद्ध चल रहा है।

विकास जहाँ-जहाँ भी गया आदिवासियों का सफाया करता गया तभी तो बाकी सब की जनसँख्या बढ़ रही है लेकिन इनकी घट रही है। वे उन्हें मुख्य धारा में लाना चाहते है सभ्य बनाना चाहते हैं जो मुख्य धारा में आए उन्होंने भारी कीमत चुकाई अपनी भाषा संस्कृति और जीवन शैली की बलि चढ़ाकर जो मुख्य धारा में नहीं आए उन्हें पुलिस, सेना और जेल ने बर्बाद कर दिया। दुनिया भर के मानवतावादी चिल्लाते रह गए।

दुनिया भर के मूलनिवासी सरकारों के आतंक में जी रहे हैं और बलिदान दे रहे हैं। आदिवासियों को घेर कर मार देने से कई जनजातियाँ विश्व के नक़्शे से गायब हो गई।

एक विशेष जनजाति का आखिरी मूल निवासी अमेजोन के जंगल के एक गड्ढे में रह कर बच गया था वह आखिरी निशान भी अब मौत की नींद सो गया।             

राजन बताओ कि आदिवासी लड़ के ले पाएंगे अपना जल, जंगल, जमीन और अपना घर।

राजन बोला, “दुनिया भर का अनुभव यह बताता है कि आधुनिक हथियारों से सुसज्जित सेना के आगे तीर तलवार नहीं चल पाएंगे। वे विस्थापन का दर्द भोगने को अभिशप्त है।”  

विक्रम के इतना कहते ही बेताल फिर उड़कर पेड़ पर जा लटका।